Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Saturday, March 19, 2016

प्रेम से अभय

सिकंदर ने एक भारतीय संन्यासी को कहा कि अगर तुम मेरे साथ चलने को राजी न हुए तो तुम्हारी गर्दन काट दूंगा। उस संन्यासी ने कहा, जिस गर्दन को काटने की तुम धमकी दे रहे हो उसे मैं बहुत पहले काट चुका हूं। अगर तुम्हें मजा आए तो तुम काट डालो। लेकिन एक बात ध्यान रखना, तुम भी गिरते देखोगे गर्दन को जमीन पर और मैं भी गिरते देखूंगा।


सिकंदर तो बेबूझ हालत में हो गया। उसकी कुछ समझ में न पड़ा। वह तो तलवार की भाषा जानता था, केवल भय की भाषा जानता था। कभी प्रेमी से तो उसका मिलना ही न हुआ था। किसी ऐसे व्यक्ति को तो उसने देखा ही न था जो प्रार्थना को उपलब्ध हुआ हो। उसने तलवार तो म्यान में रख ली और उस आदमी को कहा, मेरी समझ में नहीं आता कि बात क्या है! लेकिन लाखों लोगों को मैंने डरा दिया है। और अगर मैं पहाड़ों को भी कहूं कि चलो मेरे साथ, तो वे भी चलने को राजी हो जाएंगे। एक नंगा फकीर! तेरे पास है क्या जिसके बल पर तू डर नहीं रहा है?


उस फकीर ने कहा, जीवन से जो पाना था वह मैंने पा लिया; अब जीवन को छीन कर तुम कुछ भी न छीन पाओगे। नवनीत तो पा लिया है, अब तो जीवन की छाछ पड़ी रह गई है। तुम उसे ले जाओ। डर तो तब तक था जब तक जीवन दूध था और नवनीत पाया नहीं था। तुम ले जाते तो सब ले जाते। अब तो छाछ पड़ी रह गई है। जो पाना था वह पा लिया। अगर तुम्हें डराना था तो कुछ समय पहले आना था।


स्वभावतः, जब तुम भोजन कर चुके और कोई थाली को छीनने लगे तो तुम भेंट ही कर दोगे, यह जूठन को ले जाए, हर्ज क्या है! लेकिन तुम भूखे बैठे थे, भोजन शुरू भी न हुआ था, और कोई थाली छीनने लगा, तब कठिनाई होगी। जिसने जीवन के अवसर का उपयोग कर लिया–अवसर के उपयोग का एक ही अर्थ है कि जिसने जीवन के पार कुछ जान लिया, जिसके लिए जीवन सीढ़ी हो गया और जो सीढ़ी से पार हो गया–जिसने जीवन की सरिता को जीवन के पार के सागर से मिला दिया, अब सरिता बचे या सूख जाए, अब कोई अंतर नहीं पड़ता।


प्रेम का शास्त्र तो सिखाता है अभय; प्रेम में लिप्त व्यक्ति अभय को उपलब्ध हो जाता है। और प्रेम में लिप्त व्यक्ति के जीवन में शुभ का संचार होता है–चुपचाप, पगध्वनि भी सुनाई नहीं पड़ती। एक मां अपने बेटे को प्रेम करती हो तो प्रेम के कारण बेटा शांत होता है; मां मौजूद होती है। क्योंकि प्रेम का प्रतिकार असंभव है। प्रेम की तो प्रतिध्वनि ही होती है। भय का प्रतिकार होता है, कोई प्रतिध्वनि नहीं होती। एक मां अगर अपने बेटे को प्रेम करती है तो मां मौजूद है इसलिए बेटा चुप बैठता है। एक बाप अगर अपने बेटे को प्रेम करता है तो प्रतिध्वनि होती है बेटे से भी प्रेम की। बाप काम कर रहा है तो बेटा सम्हल कर चलता है, आवाज न हो।


यह तो शांति और तरह की है। यह प्रेम का प्रतिफल है। यहां भीतर अशांति को बेटा दबा नहीं रहा है। बाप की मौजूदगी और बाप का प्रेम एक शांति को जन्म दे रहा है। अगर बाप की भाषा में काव्य हो और बाप की भाषा में संस्कार हो और बाप ने बेटे के आस-पास शब्दों के गीत निर्मित किए हों, तो बेटे से गाली निकलना असंभव होता है। इसलिए नहीं कि वह डरता है, बल्कि इसलिए कि बाप के प्रेम ने उसे इतने ऊपर उठाया है कि गाली देकर नीचे गिरना असंभव हो जाता है।


प्रेम से शुभ का संचार होता है सहज। तुम जिसे प्रेम करते हो तुम उसे ऊपर उठा लेते हो, आकाश में उठा देते हो। तुमने अगर किसी भी व्यक्ति को प्रेम किया तो तुमने कीचड़ से कमल को ऊपर उठा लिया। जैसे कीचड़ से कमल पार हो जाता है ऐसे ही जिसे तुम प्रेम करते हो, प्रेम के क्षण में ही तत्क्षण क्रांति घटित होती है–कीचड़ नीचे पड़ी रह जाती है, कमल पार हो जाता है। बड़ा फासला हो जाता है। तुम कभी किसी को प्रेम करके देखो। जिसे तुम प्रेम करते हो, अगर तुम्हारा प्रेम प्रगाढ़ है, तो तुम्हारे प्रेम की प्रगाढ़ता के अनुपात में ही उस व्यक्ति में परमात्मा का जन्म होना शुरू हो जाता है।


ताओ उपनिषद 

ओशो 


No comments:

Post a Comment

Popular Posts