पहली तो बात, मेरा जोर अभ्यास पर नहीं है। मेरा जोर समझ पर है,
अभ्यास पर नहीं। मेरी बातों को समझो। अभ्यास की जल्दी मत करो। लेकिन वह
ग्रंथि भी हमारे भीतर गहरी पड़ी है। समझने की हमें फिकर नहीं है, अभ्यास
करना है। तुम यह बात ही भूल गए हो कि समझ पर्याप्त है। मैं तुमसे कहता
हूं; यह रहा दरवाजा, इससे निकल जाओ; दाएँ तरफ मत जाना, वहाँ दीवाल है, जाओगे
तो टकराओगे। तुम कहते हो; ठीक, अब अभ्यास कैसे करें? मैं तुमसे कहता
हूं: अगर बात समझ गए कि बायीं तरफ दरवाजा है, तो अब अभ्यास क्या करना है?
निकल जाओ। लेकिन तुम कहते हो: आपकी बात तो सुन ली, लेकिन बड़ी कठिन है,
अभ्यास तो करना ही पड़ेगा।
अभ्यास किस बात का करना है? इस बात का अभ्यास कि दीवाल से नहीं
निकलेंगे? दीवाल के सामने खड़े होकर कसम खाओगे कि अब कभी तुझसे न निकलेंगे?
दृढ़ प्रतिज्ञा करता हूं कि चाहे लाख चित्त में विचार उठें, भावनाएँ उठें,
आकर्षण उठें, मगर कभी अब तुझसे न निकलँगा? दरवाजे के सामने कसम खाओगे कि
व्रत लेता हूं कि अब सदा तुझसे ही निकलँगा? बात समझ में आ गयी तो अभ्यास
अपने आप हो जाता है। अभ्यास नासमझ करते हैं। समझदार तो सिर्फ देखते हैं
चीजों को। समझदार समझते हैं, नासमझ अभ्यास करते हैं। अभ्यास का मतलब ही यह
होता है कि तुम समझे नहीं। समझ गए तो पूछना ही मत कि अभ्यास कैसे करें।
जिसको समझ में आ गया कि सिगरेट पीना जहर है, वह यह नहीं पूछेगा कि अब
मैं इसको छोड़ँ कैसे? अगर हाथ में आधी जली सिगरेट थी, वहीं से गिर जाएगी। बस
समझ में आ जाना चाहिए कि सिगरेट पीना जहर है। हाँ, यह समझ में न आए, सुन
तो लो, समझ में न आए, तो सिगरेट हाथ से नहीं गिरती और नए सवाल उठते हैं कि
ठीक कहते हैं आप, कहते हैं तो ठीक ही कहते होंगे, आप कहते हैं तो मेरे हित
में ही कहते होंगे, अब अभ्यास कैसे करूँ? अब सिगरेट को छाड़ूँ कैसे?
ज़रा सोचना, यह मूढ़ता का लक्षण है, जो आदमी कहता है मैं सिगरेट को छोड़ूँ
कैसे? यह आदमी मूढ़ भी है और बेईमान भी। मूढ़ इसलिए कि इसको एक सीधीसी बात
दिखायी नहीं पड़ रही है और बेईमान इसलिए कि यह भी नहीं देखना चाहता कि मुझे
दिखायी नहीं पड़ रही है। बेईमान इसलिए कि यह दिखाना यह चाहता है कि समझ में
तो मुझे आ गया मैं कोई नासमझ थोड़े ही हूं समझ में तो मुझे बात आ गयी कि यह
काम ठीक नहीं है, अब अभ्यास… अभ्यास का मतलब है, कल छोड़ँगा; पहले
दंड बैठक लगाऊँगा, सिर के बल खड़ा होऊँगा, माला फेरूँगा, मंदिर जाऊँगा,
भजन कीर्तन करूँगा कल छोड़ँगा। और कल कभी आता नहीं। कल कभी आया है, कि आएगा?
कल भी यह आदमी यही कहेगा कि अभी क्या करूँ, अभ्यास कर रहा हूं। यह
जिंदगी भर अभ्यास करेगा। यह दोहरी मूढ़ता हो गयी। सिगरेट ही पीता रहता तो
कम से कम उतना ही समय जाया हो रहा था। अब अभ्यास भी हो रहा है सिगरेट छोड़ने
का। यह दोहरा समय व्यय हो रहा है। पहले ही ठीक थी बात। उतना ही काफी था।
संतो मगन भया मन मेरा
ओशो
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