जहां भी जीवन में कुछ करने में हमने तनाव लाया, वहीं सब विकृत हो जाता
है। अगर हम प्रेम करने में भी तनाव ले आएं तो प्रेम दुख का जन्मदाता है।
उससे बढ़ा फिर दुख का जन्मदाता पाना, खोजना मुश्किल है। अगर प्रार्थना भी
हमारी तनाव बन जाए तो वह भी एक बोझ है, पत्थर की तरह छाती पर रखा हुआ। उससे
हम और डूबेंगे अंधकार में, प्रकाश की तरफ उड़ेंगे नहीं। लेकिन हम हर चीज को
तनाव बना लेने में कुशल हैं। हम किसी चीज को बिना तनाव के करना ही भूल गए
हैं।
निसर्ग तनावरहित है। जब एक कली फूल बनती है तो कोई भी प्रयास नहीं होता;
बस कली फूल बन जाती है। यह कली का स्वभाव है फूल बन जाना; इसके लिए कोई
चेष्टा नहीं करनी पड़ती। और नदी जब सागर की तरफ बहती है तो हमें लगता है कि
बह रही है; नदी का होना ही उसका बहना है। बहने के लिए कोई अतिरिक्त प्रयास
नहीं करना होता। इसलिए नदी कहीं भी थकी हुई नहीं दिखाई पड़ेगी। कली खिलने
में थकेगी नहीं। अगर कली खिलने में थक जाए तो फूल नहीं बन पाएगा फिर।
क्योंकि थकान से कहीं फूल का कोई जन्म है? कली तो जब खिलती है तो थकती
नहीं, खिलती है, और ताजी होती है, और नई हो जाती है। और नदी जब सागर में
गिरती है तो थकी हुई नहीं होती इतनी लंबी यात्रा के बाद; पूर्ण प्रफुल्लित
होती है।
ताओ उपनिषद
ओशो
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