जब व्यक्ति अपने अंतर्जगत को जान लेता है, तो बहुत सी बातें जान
सकना संभव हो जाता है। तुमने भी इस पर कई बार ध्यान दिया होगा। लेकिन
तुम्हें मालूम नहीं होता है कि क्या हो रहा है। कई बार बिना किसी विशेष
प्रयास के सफलता मिलती चली जाती है। और कई बार कठोर परिश्रम करने के बाद भी
असफलता मिलती चली जाती है। इसका मतलब है कि उस समय अंतर व्यवस्था ठीक
नहीं है। तुम गलत केंद्र से काम कर रहे हो।
जब कोई योद्धा युद्ध के मैदान में जाता है, युद्ध के मोर्चे पर
जाता है, तो उसे तब ही जाना चाहिए जब मृत्यु केंद्र उसके हाथ में हो।
तब….तब वह बड़ी आसानी से लोगों को मार सकता है। तब वह साक्षात मृत्यु का
ही रूप धारण कर लेता है। बुरी नजर की यहीं अर्थ होता है, वह व्यक्ति
जिसका मृत्यु केंद्र उसकी आंखों में ठहर गया है। अगर ऐसा आदमी किसी की और
देख भी ले तो वह मुसीबतों में फँसता चला जाएगा। उसका देखना भी अभिशाप हो
जाता है।
और ऐसे लोग भी है जिनकी आंखों में जीवन-केंद्र होता है। वे अगर
किसी की तरफ देख भर लें, तो ऐसा लगता है जैसे आशीष बरस गए हों, ऐसे
व्यक्ति का देखना और सामने वाला आदमी आनंद से भर जाता है। उसका देखना और
सामने वाला व्यक्ति एकदम जीवंत सा हो जाता है।
पतंजलि योगसूत्र
ओशो
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