एक आदमी को महीने भर के लिए भूखा रख दिया गया है। जब वह भूखा है तब
चौबीस घंटे उसे याद आती है: भोजन करूं, भोजन करूं, भोजन करूं। चौबीस घंटे
उसके शरीर का रोआं-रोआं कहेगा कि भोजन करो। जागते में, सपने में, शरीर
कहेगा: भोजन करो। एक जगह खाली हो गई है। एक बायोलाजिकल गैप भीतर पैदा हो
गया है। शरीर कहेगा भोजन करो और वह इसी वक्त परमात्मा की प्रार्थना में
लगता है। शरीर चिल्ला रहा है भोजन की प्यास, और वह चिल्ला रहा है परमात्मा
की प्यास। थोड़े ही समय में, दिन दो-दिन, चार-दिन बीतेंगे और शरीर की जो
भोजन की प्यास है, कनवर्ट हो जाएगी और परमात्मा की प्यास बन जाएगी। वह जो
शरीर की भोजन की मांग है, अगर वह नहीं झुका और संकल्प किए ही चला गया कि
नहीं, भोजन नहीं, परमात्मा ही; नहीं, भोजन नहीं परमात्मा। अगर शरीर के
सामने नहीं झुका और कहता चला गया: भोजन नहीं, परमात्मा! तो चार-छह दिन के
भीतर शरीर भोजन की जगह परमात्मा को पुकारने लगेगा।
यह रूपांतरण हुआ। यह ट्रांसफार्मेशन हुआ। एनर्जी, जो भोजन को मांगती थी,
वह परमात्मा को मांगने लगी। इस तरह भोजन की तरफ जाते हुए संकल्प को
परमात्मा की तरफ मोड़ दिया गया है। यह बड़ा रूपांतरण है।
संकल्प शक्तियों के रूपांतरण का नाम है। जब चित्त मांगता है यौन, जब
चित्त मांगता है दूसरे को, अपोजिट को, स्त्री पुरुष को, पुरुष स्त्री को,
जब चित्त मांगता है कि दूसरे की तरफ बहो, तब बहाव का रूपांतरण करना पड़ेगा।
जब चित्त जिस ढंग से दूसरे को, मांगता है उससे उलटी प्रक्रिया करनी पड़ेगी
ताकि चित्त की यह मांग परमात्मा की, मोक्ष की, निर्वाण की मांग बन जाये।
ज्यों की त्यों रख दीन्हि चदरिया
ओशो
ज्यों की त्यों रख दीन्हि चदरिया
ओशो
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