चित्त को वर्तमान में ले आना ही ध्यान है, वही मेडिटेशन है, वही समाधि
है। और चित्त को वर्तमान से यहां वहां भटकाए रहना, वही चंचलता है, वही
उपद्रव है। और ध्यान में रहे कि हम आखिर वर्तमान से चूक क्यों जाते हैं?
लोभ चुका देता है, लालच चुका देता है। क्योंकि लोभ हमेशा भविष्य की बातें
करता है। लोभ वर्तमान की बात करता ही नहीं। करेगा कैसे? जो भी पाना है वह
अभी तो पाया नहीं जा सकता। जो भी पाना है वह कल ही पाया जा सकता है, आगे ही
पाया जा सकता है, इसी वक्त पाने का तो कोई उपाय नहीं है। इसलिए लोभ हमेशा
भविष्य की भाषा बोलता है।
लोभ चुका देता है और अहंकार चुका देता है। अहंकार सदा अतीत की भाषा
बोलता है, पास्ट की जो पाया, जो मिला, जो किया, जो बनाया, वह सब पास्ट में
है। अहंकार सदा ही अतीत की भाषा बोलता है कि मैं फलां आदमी का बेटा हूं!
क्यों? जो होगा उसका तो पता नहीं है, जो हो चुका है उसी का मैं दावा कर
सकता हूं। मेरे पास इतने करोड़ रुपये हैं! होंगे उनका तो दावा नहीं कर सकते
आप, जो हो चुका है। मेरी तिजोड़ी इतनी बड़ी! और मैं इतनी बड़ी कुर्सी पर रहा
हूं! मैं कोई साधारण आदमी नहीं हूं। वह जो समबडी हूं मैं कुछ हूं वह हमेशा
पास्ट से आता है। वह हमारे अतीत का संग्रह है, जिसको हमने जोड़ कर खड़ा कर
लिया है। वह हमारा अहंकार है। अहंकार हमें पीछे ले जाता है, लोभ हमें आगे
ले जाता है। और गौर से देखें तो लोभ और अहंकार एक ही चीज के दो हिस्से हैं।
जो लोभ पूरा हो चुका है वह अहंकार बन गया, जो लोभ पूरा होगा वह अहंकार
बनेगा। जो लोभ पूरा हो चुका वह अहंकार बन गया, जो पूरा होगा वह अहंकार
बनेगा। जो अहंकार बन गया है वह लोभ है, जिससे आप गुजरे; और वह लोभ जो अभी
आगे पकड़ रहा है, वह भविष्य में बनने वाला अहंकार है, जिससे आप गुजरेंगे।
जीवन रहस्य
ओशो
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