जीसस ने भी यही बात कही है। कहा है कि निर्णायक मत बनना, “जज ये नाट!’ दूसरे
के न्यायाधीश मत बनना। दूसरा स्वयं जिम्मेवार है अपने कृत्यों के लिए;
अपने कृत्यों का फल स्वयं पा लेगा। तुम बीच में निंदा, तुम बीच में विरोध
और व्याख्या मत करना। और ध्यान रखना, जैसे दूसरे के गुणों को देखना जरूरी,
दुर्गुणों को देखना जरूरी नहीं–अपने दुर्गुणों को देखना जरूरी है, अपने
गुणों को देखना जरूरी नहीं है। क्योंकि जो व्यक्ति अपने गुणों को बहुत
देखने लगता है, वह फूलने लगता है गुब्बारे जैसा। उसका अहंकार मजबूत होने
लगता है। तो अपने गुब्बारे को, अहंकार के गुब्बारे को दोषों को देख-देखकर
फोड़ते रहना, ताकि अहंकार बड़ा न हो। और अपने गुणों की कोई चर्चा मत करना।
क्योंकि अगर वे हैं तो उनकी सुगंध अपने से पहुंच जाएगी। अगर वे नहीं हैं तो
चर्चा करने से कुछ सार नहीं।
जिन सूत्र
ओशो
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