तो यदि तुम इस संसार में सफल होना चाहते हो, तो पुरुष मन चाहिए। यदि तुम
भीतर के संसार में सफल होना चाहते हो, तो स्त्रैण मन चाहिए। लेकिन वह केवल
शुरुआत है, स्त्रैण मन
केवल एक शुरुआत है। वह अ-मन की ओर जाने की एक सीडी है। असली बात यही है.
पुरुष मन स्त्रैण मन की अपेक्षा थोड़ा ज्यादा दूर है अ-मन से। इसीलिए
स्त्रैण मन रहस्यमय मालूम पड़ता है।
असल में तुम किसी स्त्री को जीवन भर प्रेम कर सकते हो, लेकिन तुम कभी
उसे समझ न पाओगे। वह एक रहस्य ही बनी रहेगी। उसके व्यवहार के संबंध में कोई
भविष्यवाणी नहीं हो सकती। वह विचारों की अपेक्षा भाव दशाओं से अधिक जीती
है। वह मौसम की भांति अधिक है यंत्र की भांति कम। सुबह बदलियां छाई होती
हैं और दोपहर बदलियां छंट जाती हैं और धूप निकल आती है। स्त्री को प्रेम
करके देखो और तुम जान जाओगे। सुबह बादल घिरे होते हैं और वह उदास होती है,
और शीघ्र ही, प्रत्यक्ष में कुछ खास हुआ भी नहीं होता, और बादल छंट जाते
हैं और फिर धूप निकल आती है और वह गुनगुना रही होती है।
पुरुष के लिए बिलकुल बेबूझ है यह बात। क्या क्या बेतुकी बातें चलती रहती
हैं स्त्री में? हां, तुम्हें बेतुकी लगती हैं क्योंकि पुरुष के लिए चीजों
की तर्कसंगत व्याख्या होनी चाहिए।’क्यों उदास हो तुम?’ तो स्त्री सरलता से
कह देती है, ‘बस मुझे उदासी पकड़ती है।’ पुरुष यह बात नहीं समझ सकता। कोई
कारण होना चाहिए उदास होने का। बस, ऐसे ही उदास हो जाना? ‘तुम खुश क्यों
हो?’ स्त्री कहती है, ‘बस वह खुशी अनुभव कर रही है।’ वह भाव दशाओं द्वारा
जीती है।
निश्चित ही, पुरुष के लिए कठिन है स्त्री के साथ जीना। क्यों? क्योंकि
यदि चीजें तर्कसंगत हों, तो चीजें संभाली जा सकती हैं। यदि चीजें एकदम
बेबूझ हों चीजें अनायास, अकारण आ जाएं और चली जाएं तो कोई तालमेल बिठाना
बहुत कठिन हो जाता है। कोई पुरुष कभी किसी स्त्री के साथ तालमेल नहीं बैठा
पाया। अंततः वह समर्पण कर देता है, अंततः वह तालमेल बैठाने का पूरा प्रयास
ही छोड़ देता है।
पुरुष मन ज्यादा दूर है अ-मन से; वह ज्यादा यंत्रवत है, ज्यादा
तर्कपूर्ण है, ज्यादा बौद्धिक है; सिर में ज्यादा जीता है। स्त्रैण मन
ज्यादा निकट है, ज्यादा स्वाभाविक है, ज्यादा अतार्किक है; हृदय के ज्यादा
निकट है। और हृदय से नीचे नाभि में उतरना कहीं ज्यादा आसान है जहां कि अ-मन
का अस्तित्व है।
पतंजलि योगसूत्र
ओशो
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