ऐसा समझें कि ये सब लोग कोई भी नहीं हैं यहां, माइक पर आप अकेले खड़े
हैं; फिर आप मजे से बोल सकते हैं, बड़े आनंद से बोल सकते हैं। अपनी ही आवाज
सुनना बहुत आनंदपूर्ण होता है। लेकिन लोग बैठे हैं, तब अड़चन होती है। आप
तनाव से भर गए।
मनसविद कहते हैं–आपको अनुभव हुआ होगा–गोली गटकनी मुश्किल होती है दवा
की; खाना आप रोज गटक जाते हैं। कभी खयाल भी नहीं आता कि खाने का कोई कौर
अटक गया हो और आपको चेष्टा करके लीलना पड़ा हो। लेकिन दवा की गोली जीभ पर
रखें–पानी अंदर चला जाता है, गोली जीभ पर रह जाती है। इस गोली में क्या
खूबी है? जब आप खाना ले जा रहे हैं, तब कोई चेष्टा नहीं है। गोली को गटकना
है। यह प्रयास है। वह प्रयास ही अटकाव बन जाता है।
जीवन के सब तलों पर विपरीत का नियम काम करता रहता है। जितनी आप चेष्टा
करेंगे, उतने ही आप विफल हो जाएंगे। सफलता का एक ही सूत्र है: चेष्टा ही न
करें। इसका यह मतलब नहीं है कि कुछ करें ही नहीं। यह मतलब नहीं है। इसका
मतलब है, ऐसे करें, जैसे करना आपसे निकलता हो। उस पर कोई बोझ न हो, उस पर
कोई भार न हो, उस पर कोई जबरदस्ती न हो, अपने को खींचना न पड़ता हो। नदी की
तरह बहना होता हो, कली की तरह खिलना होता हो, पक्षी की तरह गीत होता हो!
ताओ उपनिषद
ओशो
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