मैंने तो सुना है, एक जौहरी ने अपनी दुकान पर यह हिसाब बना लिया था बड़ी
दुकान थी-जैसे ही ग्राहक आता…दुकानदार की बड़ी प्रसिद्धि थी उस जौहरी की कि
बड़ा भक्त है! भगत जी ही लोग उनको कहते थे। और भगत जी वे थे। मगर वैसे ही
भगत जी जैसे बगुला भगत होते हैं। बगुला देखा है कैसा खड़ा होगा है? शुद्ध
खादी के वस्त्र पहने हुए बगुला खड़ा होता है। और एक टांग पर खड़ा होता
है: बगुलासन! बड़े बड़े योगी मुश्किल से साध पाते हैं। एक टांग पर खड़ा रहता
है, बिलकुल थिर-हिलता ही नहीं, डुलता ही नहीं। हिले डुले तो मछली फंसे
कैसे! हिले डुले तो पानी हिल डुल जाए, पानी हिल डुल जाए तो बगुले का बनता
हुआ प्रतिबिंब हिल डुल जाए, मछली संदिग्ध हो जाए कि मामला कुछ गड़बड़ है, भगत
जी खड़े हैं! तो भगत जी ऐसे खड़े रहते हैं कि पानी हिलता ही नहीं। जब कुछ भी
नहीं हिलता और गतिमान नहीं होता तो मछली निश्चिंत गुजरती रहती है। उसी में
मछली फंसती है तो वे भगत जी बड़े जाहिर भगत जी थे।
मछलियों को कुछ पता
नहीं था। मछली यानी ग्राहक। वे ग्राहक को देख कर ही जपने लगते थे एकदम। कभी
कहते, राम राम, राम राम का अर्थ था: बेकाम; किसी मतलब
का नहीं है, इसको जाने दो। वे अपने नौकर चाकरों को कह रहे थे, बेकार मेहनत
मत करो, मैं इसको भलीभांति जानता हूं। राम राम करो! समय खराब मत करो। इससे
कुछ निकलेगा नहीं। इस पर कुछ है भी नहीं। तो जब भगत जी राम राम कहते, दुकान
पर जो उनके नौकर चाकर थे, टाल टूल करके खिसका देते ग्राहक को।
किसी ग्राहक को देख कर भगत जी कहते: हरे हरे! हरे हरे! मतलब: लूटो!
लूटो! हरि का मतलब होता है: लूटो। लुटेरा। हरण करो, छोड़ो मत। काटो इसको! ये
उनके कोड शब्द थे।
राम राम यानी बेकाम। जाने भी दो! छुटकारा पाओ, राम राम करो। और हरि हरि,
जाने मत देना! अब आ ही गया है तो छूट न जाए, फांसो। ऐसे उन्होंने मंत्रों
के भी अर्थ तय कर रखे थे। जब वे एकदम मंत्रजाप करने लगते, उनके नौकर चाकर
सब समझ जाते क्या करना है। कितना दाम बताना है, कितना नहीं बताना है।
दुगुना बताना है कि तीन गुना बताना है। कम करना है कि नहीं करना है। इस सब
के धार्मिक मंत्र तय कर रखे थे। कभी गायत्री जपने लगते…मगर ये सब प्रतीक
थे।
तुम राम राम जप सकते हो यंत्र की भांति तुम्हारी जीभ दोहराए जाए,
तुम्हारा कंठ दोहराए जाए, इससे कुछ भी न होगा, होश चाहिए। अगर राम राम भी
जपने में तुम्हें रस हो, तो खयाल रखना, राम राम जपना और भीतर साक्षीभाव
रखना कि मैं राम राम जप रहा हूं। राम कहा, राम कहा, भीतर देखते जाना। जैसे
बुद्ध ने कहा: श्वास देखना, ऐसे तुम राम राम देखना। मगर उलटा राम राम में
कहां उलझना? यह तो ज्यादा आसान श्वास है। क्योंकि अपने आप चल रही है।
राम राम तो चलाना पड़ेगा। और राम राम चलाने में थोड़ा खतरा भी है। जैसे कार
ड्राइव कर रहे हो और राम राम जपने लगे और मन राम राम पर लगाया, तो
एक्सीडेंट हो सकता है। सायकिल पर चले जा रहे हो और राम राम कर रहे हो, तो
एक्सीडेंट हो सकता है। तुम राम राम जप रहे हो और ट्रक वाला हार्न बजा रहा
है, तुम्हें सुनाई ही न पड़े।
सपना यह संसार
ओशो
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