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Tuesday, March 1, 2016

विदेह

इस जीवन में, कोई ‘विदेह’ जो जान लेता है कि वह देह नहीं है, जो असंप्रज्ञात समाधि को उपलब्ध हो चुका है संसार में आता है मात्र हिसाब किताब बंद करने को ही। उसका सारा जीवन समाप्त हो रहे हिसाबों से बना होता है। लाखों जन्म, ढेरों संबंध, बहुत सारे उलझाव और वादे हर चीज को समाप्त हो जाने देना है।


ऐसा घटित हुआ कि बुद्ध एक गांव में आये। सारा गांव एकत्रित हुआ; वे उत्सुक थे उन्हें सुनने को। यह एक दुर्लभ अवसर था। राजधानियां भी सतत बुद्ध को आमंत्रित करती रहती थीं, और वे नहीं पहुंचते थे। किंतु वे इस गांव में आये जो जरा मार्ग से हट कर था और बिना किसी निमंत्रण के आये क्योंकि ग्रामबासी कभी साहस न जुटा सकते थे उनके पास जाने और उन्हें गांव में आने के लिए कहने का। यह थोड़ी सी झोपड़ियों वाला एक छोटा सा गांव था, और बुद्ध बगैर किसी निमंत्रण के ही आ गये थे। सारा गांव उत्तेजना से प्रज्वलित था, और वे वृक्ष के नीचे बैठे हुए थे और बोल नहीं रहे थे।


कुछ लोग कहने लगे, ‘ आप अब किसके लिए प्रतीक्षा कर रहे हैं? सब लोग है यहां; सारा गांव यहां है। आप आरंभ करें।’ बुद्ध बोले, ‘पर मुझे प्रतीक्षा करनी है क्योंकि मैं किसी के लिए यहां आया हूं जो यहां नहीं है। एक वचन पूरा करना है, एक हिसाब पूरा करना है। मैं उसी के लिए प्रतीक्षा कर रहा हूं।’ फिर एक युवती आयी, तो बुद्ध ने प्रवचन आरंभ किया। उनके बोलने के बाद लोग पूछने लगे, ‘क्या आप इसी युवती की प्रतीक्षा कर रहे
यह युवती तो अछूत है, सबसे नीच जाति की। कोई सोच तक न सकता था कि बुद्ध उसकी प्रतीक्षा कर सकते थे। 


वे बोले, ‘हां, मैं उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। जब मैं आ रहा था, वह मुझे राह में मिली और वह बोली, जरा प्रतीक्षा कीजिएगा, मैं दूसरे शहर किसी काम से जा रही हूं। पर मैं जल्दी आऊंगी।’ और पिछले जन्मों में कहीं मैंने उसे वचन दिया था कि जब मैं संबोधि को उपलब्ध हो जाऊं तो मैं आऊंगा और जो कुछ मुझे घटा उस बारे में उसे बताऊंगा। वह हिसाब पूरा करना ही था। वह वचन मुझ पर लटक रहा था। और यदि मैं इसे पूरा नहीं कर सकता तो मुझे फिर आना होता।’


‘विदेह’ या ‘प्रकृतिलय’ दोनों शब्द सुंदर हैं।’विदेह’ का अर्थ है वह, जो देहविहीनता में जीता है। जब तुम असंप्रशांत समाधि को उपलब्ध होते हो तो देह तो होती है, लेकिन तुम देहशन्य होते हो। तुम अब देह नहीं रहे। देह निवासस्थान बन जाती है। तुमने तादात्‍म्य नहीं बनाया।

पतंजलि योगसूत्र 


ओशो 


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