सिद्ध पुरूष में वह सारी शक्तियां जिनकी योग बात करता है, और पतंजलि बात
करेंगे जिनके बारे में वे उसे आसानी से उपलब्ध होंगी। वह चमत्कारों से
भरा होगा; उसका स्पर्श चमत्कारिक होगा। कोई भी चीज संभव होगी क्योंकि
उसके पास निन्यानवे प्रतिशत विधायक मन होता है। विधायकता एक सामर्थ्य है,
एक शक्ति है। वह बहुत शक्तिशाली होगा। लेकिन फिर भी वह संबोधी को उपलब्ध
तो नहीं है। और वास्तविक बुद्ध की अपेक्षा इस व्यक्ति को तुम आसानी से
बुद्ध कहना चाहोगे। क्योंकि संबोधी को उपलब्ध व्यक्ति तो तुम्हारे पार
ही चला जाता है। तुम नहीं समझ सकते उसे; वह अगम्य हो जाता है।
वस्तुत: संबोधी को उपलब्ध व्यक्ति के पास कोई शक्ति नहीं
होती क्योंकि कोई मन नहीं होता उसके पास। वह चमत्कारी नहीं होता। उसका
कोई मन नहीं, वह कुछ कर नहीं सकता। वह गैर-क्रियात्मक होने का शिखर है।
चमत्कार घट सकते है उसके पास। लेकिन वह घटते है तुम्हारे ही कारण। उसके
कारण नहीं। तुम्हारी श्रद्धा, तुम्हारी आस्था करेगी चमत्कार। क्योंकि
उस घड़ी तुम हो जाते हो एक विधायक मन।
वह व्यक्ति जो संबोधी को उपलब्ध है। बहुत साधारण हो जाता है।
उसके पास कुछ विशिष्ट नहीं है। और यही होता है विशिष्टता। वह इतना साधारण
होता है कि सड़क पर तुम उसके पास गुजर सकेत हो। तुम आध्यात्मिक व्यक्ति
के पास से यूं ही गुजर नहीं सकते। वह अपने चारों और एक लहराती तरंग ले
आयेगा। वह तर गायित उर्जा होगा। यदि वि सड़क पर तुम्हारे पास से गुजर जाये
तो तुम एकदम स्नान कर लोगे। उसके चली आयी बौछारों द्वारा। वह आकर्षित
करता है चुंबक की भांति।
लेकिन बुद्ध के पास से यूं ही गुजर सकते हो। यदि तुम नहीं जानते
हो वे बुद्ध हैं, तो तुम नहीं ही जान पाओगे। लेकिन तुम रास पुतिन से नहीं
बच सकते। और रास पुतिन कोई बुरा आदमी नहीं है: वह एक अध्यात्मिक आदमी है।
जिस घड़ी तुम देखते हो उसे, तुम चुंबकीय आकर्षण में बंध जाते हो। तुम उसी
के पीछे चलोगे सारी जिंदगी। ऐसा घटित हुआ जार के साथ। एक बार उसने देखा रास
पुतिन को तो वह गुलाम हो गया उसका। उसके पास जबरदस्त शक्ति थी। वह हवा
के तेज झोंके की भांति आता होगा; कठिन था उसके आकर्षण से बचना।
संबोधि को उपलब्ध व्यक्ति कोई व्यक्ति ही नहीं होता: यह है एक
बात। और दूसरी बात, वह है ही नहीं। लगता है कि वह है। पर वह है नहीं। जितना
ज्यादा तुम उसे खोजते हो उतनी ही कम संभावना होती है उसे पाने की। उस खोज
में ही तुम खो जाते हो। वह ब्रह्मांड बन चुका होता है। आध्यात्मिक
व्यक्ति फिर भी एक व्यक्ति ही होता है।
तो ध्यान रखना तुम्हारा मन आध्यात्मिक होने की कोशिश करेगा।
तुम्हारे मन में ललक रहती है और ज्यादा शक्तिशाली होने की। ‘’ना कुछ’’
लोगों के इस संसार में कुछ हो जाने की ललक। इस बात के प्रति सचेत रहना। यदि
इसके द्वारा बहुत लाभ भी पहुंचा सकते हो, तो भी यह खतरनाक है। लाभ होता है
केवल सतह पर ही। गहरे में तो तुम मार रहे होते हो स्वयं को। और जल्दी ही
वह बात खो जायेगी। और तुम फिर से जा पड़ोगे नकारात्मक में ही। वह एक खाज
उर्जा है। तुम उसे खो सकते हो। तुम उपयोग कर सकते हो उसका फिर वह चली जाती
है।
एक बात ख्याल में ले लेना : कभी प्रयत्न मत करना किन्हीं
आध्यात्मिक शक्तियों को पाने का। चाहे वे तुम्हारे मार्ग में स्वयं भी
चली आयें तो जितनी जल्दी संभव हो गिरा देना उन्हें। उनके संग-साथ मत
बढ़ना और उनकी चालबाज़ियों को मत सुनना। आध्यात्मिक व्यक्ति तो कहेंगे,
इसमे गलत ही क्या है? तुम दूसरों की मदद कर सकते हो; तुम एक महान उपकारक
बन सकेत हो। वह मत बनना। यही कह देना, ‘’मैं शक्ति की खोज में नहीं हूं और
कोई किसी की मदद नहीं कर सकता है। तुम एक मनोरंजन भरा तमाशा बन सकते हो
शक्ति के द्वारा, लेकिन तुम किसी की मदद नहीं कर सकते हो।
और तुम मदद कर सकेत हो किसी की? हर कोई चलता है उसके अपने कर्मों
के अनुसार ही। वस्तुत: यदि कोई आध्यात्मिक शक्तिसंपन्न व्यक्ति
तुम्हें छू लेता है और रोग मिट जाता है। तो क्या घटता है? किसी ने किसी
ढंग से गहरे में तिरोहित होना ही था तुम्हारे रोग को; तुम्हारे कर्म पूरे
हो गये थे। यह तो मात्र एक बहाना है कि रोग तिरोहित हुआ आध्यात्मिक
व्यक्ति के स्पर्श द्वारा। किसी भी तरह उसे तो तिरोहित होना ही था।
क्योंकि तुम ने कुछ किया था, इसीलिए रोग था। फिर वह समय आ गया उसके मिटने
का।
पतंजलि योगसूत्र
ओशो
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