अब एक घंटा रोज आंख बंद करके, कल्पना को खुली छूट दो। कल्पना को पूरी
खुली छूट दो। वह किन्हीं पापों में ले जाये, जाने दो। तुम रोको मत। तुम
साक्षी-भाव से उसे देखो कि यह मन जो-जो कर रहा है, मैं देखूं। जो शरीर के
द्वारा नहीं कर पाये, वह मन के द्वारा पूरा हो जाने दो। तुम जल्दी ही पाओगे
कुछ दिन के…एक घंटा नियम से कामवासना पर अभ्यास करो, कामवासना के लिए एक
घंटा ध्यान में लगा दो, आंख बंद कर लो और जो-जो तुम्हारे मन में कल्पनाएं
उठती हैं, सपने उठते हैं, जिनको तुम दबाते होओगे निश्चित ही–उनको प्रगट
होने दो! घबड़ाओ मत, क्योंकि तुम अकेले हो। किसी के साथ कोई तुम पाप कर भी
नहीं रहे। किसी को तुम कोई चोट पहुंचा भी नहीं रहे। किसी के साथ तुम कोई
अभद्र व्यवहार भी नहीं कर रहे कि किसी स्त्री को घूरकर देख रहे हो। तुम
अपनी कल्पना को ही घूर रहे हो। लेकिन पूरी तरह घूरो। और उसमें कंजूसी मत
करना।
मन बहुत बार कहेगा कि “अरे, इस उम्र में यह क्या कर रहे हो!’ मन बहुत
बार कहेगा कि यह तो पाप है। मन बहुत बार कहेगा कि शांत हो जाओ, कहां के
विचारों में पड़े हो!
मगर इस मन की मत सुनना। कहना कि एक घंटा तो दिया है इसी ध्यान के लिए,
इस पर ही ध्यान करेंगे। और एक घंटा जितनी स्त्रियों को, जितनी सुंदर
स्त्रियों को, जितना सुंदर बना सको बना लेना। इस एक घंटा जितना इस
कल्पना-भोग में डूब सको, डूब जाना। और साथ-साथ पीछे खड़े देखते रहना कि मन
क्या-क्या कर रहा है। बिना रोके, बिना निर्णय किये कि पाप है कि अपराध है।
कुछ फिक्र मत करना। तो जल्दी ही तीन-चार महीने के निरंतर प्रयोग के बाद
हलके हो जाओगे। वह मन से धुआं निकल जायेगा।
तब तुम अचानक पाओगे: बाहर स्त्रियां हैं, लेकिन तुम्हारे मन में देखने
की कोई आकांक्षा नहीं रह गई। और जब तुम्हारे मन में किसी को देखने की
आकांक्षा नहीं रह जाती, तब लोगों का सौंदर्य प्रगट होता है। वासना तो अंधा
कर देती है, सौंदर्य को देखने कहां देती है! वासना ने कभी सौंदर्य जाना?
वासना ने तो अपने ही सपने फैलाये।
और वासना दुष्पूर है; उसका कोई अंत नहीं है। वह बढ़ती ही चली जाती है।
जिन सूत्र
ओशो
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