जैसे ही चित्त यौन की मांग करता है, सेक्स की मांग करता है, शरीर सेक्स
की तैयारी करने लगता है। यौन-केंद्र मूलाधार से दूसरे की मांग की स्फुरणा
शुरू हो जाती है। यौन-केंद्र बहिर्गामी हो जाता है। इस क्षण में तंत्र कहता
है कि अगर यौन-केंद्र को अंतर्गामी किया जा सके, भीतर की तरफ खींचा जा
सके–जिसे यौन-मुद्रा का नाम दिया है–अगर यौन-केंद्र मूलाधार को भीतर की तरफ
खींचा जा सके, तो तत्काल आप दो क्षण में पायेंगे कि शरीर ने यौन की मांग
बंद कर दी। मांग लेकिन पैदा हो गई थी। शक्ति जग गई थी, और अब मांग बंद हो
गई। इस शक्ति को ऊपर ले जाया जा सकता है।
जैसे ही हम सेक्स का विचार करते हैं वैसे ही हमारा चित्त जननेंद्रिय की
तरफ बहने लगता है। तो तुरंत जननेंद्रिय को भीतर की ओर खींच लेते ही
जननेंद्रिय से बाहर जानेवाले सब द्वार बंद हो जाते हैं। और जो ऊर्जा जग गई
है, अगर उस क्षण में हम आंखों को बंद कर लें और आंख बंद करके सिर की छत की
तरफ, अंदर से जैसे ऊपर की तरफ देख रहे हों, देखना शुरू कर दें, तो ऊर्जा
ऊपर की तरफ बहना शुरू हो जाती है।
यह एक महीने भर के प्रयोग से अभूतपूर्व अनुभव में किसी भी व्यक्ति को
उतार दिया जा सकता है। जब भी यौन का खयाल उठे तभी यौन-केंद्र को, मूलाधार
को भीतर की ओर खींच लें, आंख बंद करें और सिर की छत की तरफ अंदर से जैसे
ऊपर देख रहे हों, देखना शुरू कर दें। और आप एक महीने भर के भीतर, इक्कीस
दिन के भीतर पायेंगे कि आपके भीतर से कोई चीज नीचे से ऊपर की तरफ जानी शुरू
हो गई है। यह वस्तुतः अनुभव होगा कि कोई चीज ऊपर बहने लगी, कोई चीज ऊपर
उठने लगी। उसे कोई कुंडलिनी का नाम कहता है, उसे कोई और कोई नाम दे सकता
है।
इसमें दो बिदुओं पर ध्यान देना जरूरी है। एक तो सेक्स-सेंटर पर, मूलाधार
पर, और दूसरे सहस्रार पर। सहस्रार हमारे ऊपर का केंद्र है सबसे ऊपर, और
मूलाधार हमारे सबसे नीचे का केंद्र है। मूलाधार को सिकोड़ लें भीतर की तरफ।
तो उसमें जो शक्ति पैदा हुई है, वह शक्ति मार्ग खोज रही है। और अपने चित्त
को ले जायें ऊपर की तरफ, तो वही मार्ग खुला रह जाता है। चित्त जिस तरफ
देखता है उसी तरफ शरीर की शक्तियां बहनी शुरू हो जाती हैं। यह
ट्रांसफार्मेशन की छोटी-सी विधि है।
तो इसका अगर प्रयोग करें तो ब्रह्मचर्य बिना सप्रेशन के फलीभूत होता है।
यह सप्रेशन नहीं है, यह सब्लीमेशन है। यह दमन नहीं है। दमन का तो मतलब है
कि ऊपर का द्वार नहीं खुला है और नीचे के द्वार पर रोके चले जा रहे हैं। तब
उपद्रव होगा, तब विक्षिप्तता होगी, पागलपन होगा। अगर मार्ग भी है शक्ति के
लिए, तो दमन नहीं होगा, सिर्फ ऊर्ध्वगमन होगा। शक्ति नीचे से ऊपर की तरफ
उठनी शुरू हो जाएगी।
यह तो एक प्रायोगिक बात मैंने आपसे कही। यह प्रयोग करें और समझें। यह
कोई सैद्धांतिक बात नहीं है। न कोई बौद्धिक या शास्त्रीय बात है। यह करोड़ों
लोगों की अनुभूत घटना है और सरलतम प्रयोग है। कठिन बहुत नहीं है। और एक
बार मस्तिष्क के ऊपरी छोरों पर रस के फूल खिलने शुरू हो जायें तो आपकी
जिंदगी से यौन विदा होने लगेगा। वह धीरे-धीरे खो जाएगा और एक नई ही ऊर्जा
का, नई ही शक्ति का, एक नये ही वीर्य का, एक नई दीप्ति का, एक नये आलोक का
एक नया संसार शुरू हो जाता है।
ज्यों की त्यों रख दीन्हि चदरिया
ओशो
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