मैंने सुना, मुल्ला नसरुद्दीन अपने बेटे को सिखा रहा था कि गालियां देना
बुरा है। बेटा बड़ा होने लगा था, आस-पड़ोस भी जाने लगा था, स्कूल भी; वह
गालियां सीख कर आने लगा था। सब तरफ गालियों का बाजार है। तो मुल्ला
नसरुद्दीन ने वही किया जो कोई भी पिता करेगा। उसने बच्चे को कहा कि यह
देखो, यह दंड की व्यवस्था है। अगर तुमने इस तरह की गाली दी कि तुमने किसी
को गधा कहा, उल्लू का पट्ठा कहा, तो तुम्हें चार आने तुम्हें जो रुपया एक
रोज मिलता है–उसमें से चार आने कट जाएंगे, एक बार तुमने गाली दी तो। दो बार
दी, आठ आने कट जाएंगे। चार बार तुमने इस तरह की गाली का उपयोग किया, पूरा
रुपया कट जाएगा। ज्यादा गाली दी, कल का रुपया भी आज कटेगा। नंबर दो की
गाली, पिता ने कहा, कि और अगर तुमने किसी को कहा साला, बदमाश, तो आठ आने
कटेंगे। ऐसा उसने फेहरिस्त बना दी, चार तरह की गहरी से गहरी गालियां बता
दीं। एक रुपया कटने का इंतजाम कर दिया अगर चौथे ढंग की गाली दी। लड़के ने
कहा, यह तो ठीक है, लेकिन मुझे ऐसी भी गालियां मालूम हैं कि पांच रुपया भी
काटो तो भी कम पड़ेगा। उनका क्या होगा?
ऊपर से तुम दबा दोगे, भीतर चीजें भरी रह जाएंगी। ऊपर से तुम ढक्कन बंद
कर दोगे, आत्मा में धुआं गूंजता रह जाएगा। यह ढक्कन भी तभी तक बंद रहेगा जब
तक भय जारी रहेगा। कल बच्चा जवान हो जाएगा, तुम बूढ़े हो जाओगे, तब भय उलटे
रूप ले लेगा। तब तुमने जो-जो दबाया था वही-वही प्रकट होने लगेगा। बहुत कम
बच्चे हैं जो बड़े होकर अपने बाप के साथ सदव्यवहार कर सकें। पैर भी छूते हों
तो भी उसमें सदभाव नहीं होता। बूढ़े बाप के साथ अच्छा व्यवहार करना बड़ा ही
कठिन है। कारण?
कारण है कि जब तुम बच्चे थे तब बाप ने जो व्यवहार किया था वह अच्छा नहीं
था। इसे तो कोई भी नहीं देखता कि बाप बेटे के साथ बचपन में कैसा व्यवहार
कर रहा है। यह सभी को दिखाई पड़ेगा कि बेटा बाप के साथ बुढ़ापे में कैसा
व्यवहार कर रहा है। लेकिन जो तुम बोओगे उसे काटना पड़ेगा। उससे बचने का कोई
उपाय नहीं है। आज बच्चा सबल हो गया है, बाप अब बूढ़ा होकर दुर्बल हो गया है,
इसलिए नाव उलटी हो गई है। अब बच्चा भयभीत करेगा। अब वह जवान है, अब वह
तुम्हें डराएगा। वह तुम्हें दबाएगा।
भय से कुछ भी नष्ट नहीं होता, सिर्फ दब जाता है। और जब भय की स्थिति बदल
जाती है तो बाहर आ जाता है। तो तुम्हें समाज में दिखाई पड़ेंगे लोग जो भय
के कारण अच्छे हैं। उनका अच्छा होना नपुंसक ब्रह्मचर्य जैसा है। वे
जबरदस्ती अच्छे हैं। अच्छा होना नहीं चाहते; अच्छे का उन्हें स्वाद ही नहीं
मिला। वे सिर्फ बुरे से डरे हैं और घबड़ा रहे हैं, और भीतर कंप रहे हैं। इस
कंपन के कारण लोग अच्छे हैं।
ओशो
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