Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Sunday, March 13, 2016

वासना के वाहन पर विचार

विचार चला गया है वासना के वाहन पर बैठ कर और हम वहीं हैं। यानी यह जो बेसिक ट्रूथ अगर खयाल में आ जाए कि हम वहीं हैं, वासना के वाहन पर बैठ कर विचार चला गया है।

समझ लें, एक आदमी यहां बैठा है, कलकत्ते में विचार है। अब वह कहता है, मैं कैसे घर लौटूं? तो उसको हम कहें कि तुम हवाई जहाज पकड़ो और लौट जाओ! तो वह कहां जाएगा? कहां का हवाई जहाज पकड़ेगा? वह जितना कलकत्ता झूठा है, उतना ही कलकत्ते में पकड़ा गया हवाई जहाज होगा। कलकत्ते में वह है ही नहीं आदमी। वह जितना झूठा हवाई जहाज होगा, उतनी झूठी टिकट होगी, उतना ही झूठा हवाई जहाज का पायलट होगा, उतना ही हवाई जहाज तक पहुंचाने वाला गाइड होगा। क्योंकि कलकत्ता में होना चूंकि बुनियादी रूप से झूठा है, इसलिए अब कलकत्ते में जो भी किया जाएगा वह सच तो हो नहीं सकता, वह झूठ ही होगा। और झूठ लौटाने वाला नहीं होता।


इसलिए सवाल सिर्फ इतना है कि हमें यह जानना है.. .यह हमें आना नहीं है अपने भीतर, आते तो हम तब जब हम बाहर चले गए होते। हम भीतर हैं, आना हमें है नहीं, गए हम हैं नहीं, सिर्फ विचार हमारा बाहर चला गया है। विचार न हो जाए, हम फौरन पाएंगे कि हम भीतर हैं। जैसे कि आप बैठे दिवास्वप्न में खो गए कि कलकत्ते थे और मैंने आपको आकर हिला दिया, तो आप कलकत्ते में थोड़े ही जागोगे, आप जगेंगे यहां! और कलकत्ते से लौटने के लिए कोई वाहन काम में नहीं आएगा, कोई जरूरत नहीं वाहन की।


यह जो बुनियादी सत्य है कि हम कभी अपने से बाहर गए ही नहीं हैं! हम जिसके बाहर जा सकते हैं, वह हमारा स्वरूप नहीं हो सकता। जो हमारा बुनियादी स्वरूप है उससे हम बाहर जा कैसे सकते हैं? लेकिन हम गए हुए मालूम पड़ते हैं। एक तो भूल यह हो गई है कि हम गए हुए मालूम पड़ते हैं, एक झूठ यह हो गया। अब दूसरा झूठ इसमें यह पालना है कि हम लौटें कैसे? तो मेथड, रिलीजन, पूजा, रिचुअल, ये सब हम पकड़ेंगे। ये लौटने के रास्ते हम पकड़ रहे हैं।


अब यह बड़े मजे की बात है कि जिस आदमी का जाना ही भूल भरा है, उसके लौटने की क्या बात है? उस आदमी को सिर्फ इतनी बात के प्रति सजग करना जरूरी है कि तुम कहीं गए ही नहीं हो, अनंत काल से तुम वहीं हो। लेकिन अनंत काल से तुम्हारा चित्त भटक रहा है, कल्पना भटक रही है, ड्रीम में तुम खो रहे हो। तो कृपा करो, थोड़ी देर के लिए ड्रीम मत लो, थोड़ी देर के लिए सोचो मत, थोड़ी देर को वहीं हो जाओ जहां हो। तो तुम पा लोगे, जो पाया ही हुआ है।

इसलिए सवाल मेथड का नहीं है, नो मेथड का है। क्योंकि मेथड ले जाने वाला है, रास्ता ले जाने वाला है। इसलिए पाथ का सवाल नहीं है, नो पाथ का सवाल है। गुरु कहीं पहुंचाने वाला है। हमें कहीं पहुंचना ही नहीं है, हम वहीं हैं। कौन गुरु हमको वहां पहुंचा सकता है? इसलिए गुरु की कोई जरूरत नहीं है, इसमें गुरु का कोई सवाल नहीं है। गुरु तो उसी ड्रीम लैंड का हिस्सा है जिसमें हम भटकने को सच मानते हैं, फिर हम ले जाने वाले को भी सच मानते हैं। फिर उसके चरण को छूते हैं, फिर उसको गुरु मानते हैं। और वह जो हमको ले जा रहा है, वह कहां ले जाएगा हमको? क्योंकि कलकत्ते में हम हैं नहीं।


जीवन रहस्य 

ओशो 

No comments:

Post a Comment

Popular Posts