यदि तुम चाहते हो कि तुम्हारे बच्चे बुद्धिमान हों, तो उन्हें
बुद्धिमत्ता कभी मत दो। यदि तुम चाहते हो कि तुम्हारे बच्चों के पास जीवन
के प्रति एक स्पष्टता और लोगों तथा स्थितियों के प्रति एक सहजस्फूर्त
जिम्मेदारी हो, तो उन पर अच्छे और बुरे की अवधारणाएं मत लादो, क्योंकि वे
तुम्हारे समय में नहीं रह रहे होंगे और तुम कल्पना भी नहीं कर सकते कि वे
किस समय में रह रहे होंगे, उनकी परिस्थितियां क्या होंगी। सारा कुछ जो तुम
कर सकते हो वह यह कि उन्हें अधिक मेधापूर्ण बनाओ, उन्हें अधिक सजग बनाओ,
उन्हें अधिक सचेत बनाओ, उन्हें अधिक प्रेमपूर्ण बनाओ, उन्हें अधिक शात व
मौन बनाओ। ताकि जहा कहीं भी वे हों उनका प्रत्युत्तर उनके मौन से निकले और
उनके प्रेम से निकले और उनकी सजगता से निकले; वह ठीक होने वाला है। उन्हें
यह मत बताओ कि अच्छा क्या है, बल्कि उन्हें ठीक संसाधन दो खोज निकालने के
लिए कि क्या अच्छा है एक भिन्न परिस्थिति में।
हम बच्चों को उत्तर प्रदान करने की इतनी जल्दी में होते हैं कि हम कभी
गहराई से पता नहीं करते कि उनके प्रश्न क्या हैं? कोई प्रश्न हैं भी अथवा
नहीं? एक धैर्यपूर्ण मा अथवा पिता को प्रतीक्षा करनी चाहिए। लेकिन नहीं,
बच्चा पैदा हुआ और तुरंत उसका एक ईसाई के रूप में बप्तिस्मा कर दिया जाना
है। उसका अर्थ यह है कि तुमने उसे वे समस्त उत्तर प्रदान कर दिये जो ईसाइयत
के पास हैं। अथवा उसका खतना कर दिया जाना है, और इस प्रकार तुमने वे सारे
उत्तर उसे प्रदान कर दिये जो यहूदी धर्म के पास हैं। अथवा हिंदू धर्म में,
बौद्ध धर्म में या इस्लाम धर्म में उसका संस्कार किया जाना है, और उन सबके
अपने क्रियाकांड हैं। लेकिन वह उत्तरों की शुरुआत है।
बच्चे से कोई पूछ ही नहीं रहा। और यह पूछने का समय तक नहीं है, क्योंकि
बच्चा कुछ भी जवाब नहीं दे सकता वह ऐसा नवागंतुक है अभी। वह भाषा नहीं
जानता, वह दुनिया के संबंध में कुछ भी नहीं जानता। उसे परवाह ही नहीं है कि
किसने बनायी दुनिया। उसे कोई अवधारणा ही नहीं स्कइ ‘ईश्वर’ कहने से
तुम्हारा क्या तात्पर्य है।
यह दुनिया उत्तरों से भरी हुई है। हर व्यक्ति का सिर उत्तरों से भरा हुआ
है जिसके लिए तुम्हारे पास अपना प्रामाणिक प्रश्न ही नहीं है। यही कारण है
कि तुम्हारे ज्ञान को मैं कचरा कहता हूं। पहले तुम्हारे भीतर प्रश्न तो
उठना चाहिए। और प्रश्न का उत्तर किसी अन्य व्यक्ति द्वारा नहीं दिया जा
सकता; तुम्हें खुद ही उत्तर पाना होगा। केवल तब, जब उत्तर तुम्हारा अपना
है, उसमें एक सत्य होता है। यदि वह तुम्हें किसी अन्य व्यक्ति द्वारा
प्रदान किया गया है तो वह पुराना, सड़ा गला और घृणित है। तुम्हारी अपनी ही
खोज तुम्हें एक ताजे उत्तर तक ले आएगी।
जरथुस्त्र : एक नाचता गाता मसीहा
ओशो
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