तिब्बतियों के पास एक विशेष घंटा होता है, शायद आपमें से किसी ने देखा
हो। वह घंटा ऐसा लटकाने वाला नहीं होता। बर्तन की तरह बड़ा होता है, और
बजाने को उसके अंदर एक गोल डंडा घुमाकर चोट करनी पड़ती है। जैसे एक बाल्टी
रखी हो, उसके अंदर गोल घुमाकर डंडे से चोट करनी पड़ती है। उस डंडे और घंटे
के बीच चोट का एक विशेष क्रम है। उस चोट करने से, घंटे से जोर की आवाज
निकलती है–ॐ मणि पद्मे हुं–यह पूरा सूत्र तिब्बत का उससे निकलता है। और यह
सूत्र बार-बार मंदिर में गूंजता रहता है। और इस सूत्र के कुछ उपाय हैं। ये
सूत्र हमारे भीतर जाकर कुछ चक्रों पर चोट करना शुरू कर देते हैं और उन
चक्रों की शक्ति ऊपर की तरफ उठनी शुरू हो जाती है।
ओम का उपयोग भीतर, उसकी गूंज, शक्ति को ऊपर ले जाने के लिए थी। अकेले ओम
का ही नहीं, मुसलमान कहते हैं आमीन, वह ओम का ही रूप है। क्रिश्चियन भी
कहते हैं, आमीन, वह ओम का ही रूप है। अंग्रेजी में शब्द हैं: ओमनीसाइंट,
ओमनीपोटेंट, ओमनीप्रेजेंट; वह सब ओम से ही बने हुए शब्द हैं। ओमनीसाइंट का
मतलब है, जिसने ओम को देख लिया। ओम का मतलब है, विराट ब्रह्म।
ओमनीप्र्रेजेंट का अर्थ है, जो ओम के साथ मौजूद हो गया। ओमनीपोटेंट का अर्थ
है, जो ओम की तरह शक्तिशाली हो गया। जो परमात्मा के बराबर शक्ति-बीज से भर
गया।
अब यह जो ओम शब्द है उसमें ए यू एम, अ ऊ म मूल ध्वनियां हैं। ये
ध्वनियां अगर व्यवस्था से गुंजायी जायें तो ऊर्जा को ऊपर ले जाने लगती हैं।
इससे उलटी ध्वनियां भी हैं, जो चोट की जायें तो ऊर्जा नीचे जाने लगती है।
आज अमरीका में जाज है, टि्वस्ट है, शेक है, और जमाने भर के नृत्य हैं।
उन सबकी ध्वनि-लहरी, उन सबके रिदम, सेक्स-ऊर्जा को नीचे की तरफ ले जानेवाली
हैं। इसलिए अगर आप टि्वस्ट देख रहे हों तो थोड़ी देर में आप पायेंगे कि
आपके भीतर टि्वस्ट होना शुरू हो गया। आपके भीतर कोई शक्ति डावांडोल होने
लगी। आधुनिक जगत में विकसित सभी नृत्य और सभी संगीत की व्यवस्थाएं मनुष्य
के काम का शोषण हैं।
इसलिए आहार का मतलब बड़ा है। इसलिए जो भोजन हम ले रहे हैं उसके परिणाम
होंगे ही, उसके परिणाम से हम बच नहीं सकते। क्योंकि हमारा पूरा का पूरा जो
जीवनऱ्यंत्र है वह साइको केमिकल है। उसमें पीछे मन है, तो नीचे रसायन है।
वह रसायन पूरे वक्त काम कर रहा है। केमिस्ट्री हमारे पूरे शरीर में पूरे
वक्त काम कर रही है। हम क्या खाते हैं, क्या पीते हैं, उसके परिणाम होंगे।
ऐसे भी भोजन हैं जो मनुष्य को ज्यादा कामुक बनाते हैं।
मधुमक्खियों के छत्ते में एक खास तरह की जैली होती है। मधुमक्खियों के
बाबत आपको शायद थोड़ा पता हो कि मधुमक्खियों में एक ही रानी मक्खी होती है
जो बच्चे पैदा करती है। और बाकी सारी मधुमक्खियां, मादा स्त्री मधुमक्खी जो
सिर्फ मजदूर का काम करती हैं, उनकी जिंदगी में सेक्स जैसी कोई चीज नहीं
होती। फेवरे, जिसने इन मधुमक्खियों का विराट गहन अध्ययन किया है, वह बड़ी
हैरानी में पड़ा कि लाखों मधुमक्खियों की जिंदगी में कोई सेक्स क्यों नहीं
होता! आखिर वे भी मादा हैं, उनकी जिंदगी में भी सेक्स का यंत्र पूरा है,
लेकिन फिर भी सेक्स नहीं है। बात क्या है? तो उसे बड़ी हैरानी का जो नतीजा
निकला वह यह कि मधुमक्खियां खास तरह की जैली इकट्ठी करती हैं जो सिर्फ मादा
रानी ही खाती है। बाकी सब मधुमक्खियों को सिर्फ तीन दिन के लिए, जन्म के
बाद, वह खाने को मिलती है, उसके बाद खाने को नहीं मिलती। उस जैली में ही
सारा राज है।
इसलिए उस जैली को रिजुवीनेशन के लिए कई पागलों ने प्रयोग किया…आदमी को
उसकी गोली बनाकर खिला दी जाये तो शायद बूढ़ा आदमी जवान हो जाये। उस जैली से
बहुत-सी क्रीम भी लोगों ने बनाई और लाखों स्त्रियों के चेहरे पर पोती कि
शायद उस जैली से सौंदर्य प्रगट हो जाये। वह जैली विशेष विटामिन्स लिए हुए
है, जो अति-कामुकता पैदा कर देती है।
तो वह जो रानी मधुमक्खी है उसकी कामुकता का हिसाब लगाना मुश्किल है। वह
दो हजार अंडे रोज देती है और देती ही चली जाती है। वह करोड़ों अंडे एक ही
मादा पैदा कर देती है, इतनी सेक्स ऐक्टीविटी उसके भीतर पैदा हो जाती है।
और अब तो हम जानते हैं कि हारमोन्स की खोज ने बड़ा स्पष्ट कर दिया है कि
अगर एक पुरुष को भी स्त्री हारमोन्स के इंजेक्शन दे दिए जायें तो उसका शरीर
पुरुष का न रहकर थोड़े दिनों में स्त्री का हो जाएगा। अगर एक स्त्री शरीर
को पुरुष-इंजेक्शन दे दिये जायें तो उसका शरीर थोड़े दिनों में स्त्री का न
रहकर पुरुष का हो जाएगा। पैंतालीस से पचास साल के बाद आमतौर से कुछ
स्त्रियों को मूंछ आनी शुरू हो जाती है। उसका कुल कारण इतना ही है कि
स्त्री हारमोन्स कम हो गए और शरीर में पड़े हुए पुरुष हारमोन प्रभावी होने
लगे, इसलिए मूंछ आनी शुरू हो जायेगी। स्त्रियों की आवाज पचास साल के बाद
पुरुषों से मेल खाने लगेगी। उसका कुल कारण यही है कि पुरुष हारमोन और
स्त्री हारमोन का अनुपात टूट गया। स्त्री हारमोन कम हो गए, पुरुष हारमोन
अनुपात में ज्यादा हो गए, तो आवाज में बदलाहट हो जाएगी। ये सारे केमिकल
मामले हैं।
हम जो भोजन ले रहे हैं उस पर बहुत कुछ निर्भर है। हम कैसा भोजन ले रहे
हैं, इस भोजन में यदि मादक तत्व हैं, इस भोजन में यदि मूर्च्छा लानेवाले
तत्व हैं, तो वे शरीर-ऊर्जा को, काम-ऊर्जा को नीचे की तरफ प्रवाहित करेंगे।
इस भोजन में अगर उत्तेजक स्टिमुलेंट हैं, एक्टीवाइजर्स हैं, तो वे शरीर की
काम-ऊर्जा को नीचे की तरफ प्रवाहित करेंगे। अगर इस भोजन में
ट्रैंकोलाइजर्स हैं, और शामक तत्व हैं जो कि मन को शांत करते हैं, उत्तेजित
नहीं करते हैं, तो वे ऊर्जा को ऊपर की तरफ ले जाने में सहयोगी होंगे।
ज्यों की त्यों रख दीन्हि चदरिया
ओशो
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