इस जन्म का भी तो कोई महत्व नहीं है; और वे बीते
हुए जन्म भी एक ही चीज की बार-बार पुनरावृति के आलावा और कुछ नहीं था।
उनका क्या महत्व हो सकता है। इस जीवन के स्वप्न को देख लो, तो तुमने वे
सारे स्वप्न देख लिए जिन्हें तुमने पहले जीया है। स्वप्नों का कोई
महत्व नहीं होता।
पाश्चात्य मनोविश्लेषण का बड़ा आग्रह है कि स्वप्नों का
महत्व होता है। पूरब के देशों में, हम कहते है कि स्वप्नों को कोई
महत्व नहीं होता। केवल स्वप्न द्रष्टा महत्वपूर्ण है। स्वप्न विषय
है, उन्हें देखने वाला तुम्हारी आत्म परकता है। स्वप्न परिवर्तित होते
रहे है। स्वप्न द्रष्टा वहीं रहता है। विज्ञान परिवर्तित होता रहता है।
किंतु दृष्टा वहीं रहता है। दृष्टा का महत्व है। यही पर पाश्चात्य
मनोविज्ञान और पूर्वीय मनोविज्ञान में भेद। पूरब के रहस्यवादी के लिए वे
सारे खोल जो मनोविश्लेषण, उनकी शाखाएं वे उनके संस्थापक खेलते है, मात्र
पहेली है। मनोविश्लेषण एक सुंदर खेल है। तुम खेलते रह सकते हो, मगर तुम
पूर्ण रूप से वही रहते हो।
वास्तविक चीज तो परिवर्तन है, चेतना को स्वप्न से हटा कर
स्वप्न द्रष्टा में ले जाना है। पूरे गेस्टाल्ट का परिवर्तन वस्तु की
और नहीं देखना बल्कि देखने वाले को देखना है। तब फिर सब कुछ सपना हो जाता
है।
पुनर्जन्म, जन्म, और मृत्यु, अच्छा और बुरा। तुम सम्राट हो या भिखारी, तुम हत्यारे हो या महात्मा सब कुछ सपना है।
लेकिन एक बात तय है कि सपने के लिए साक्षी की जरूरत नहीं है।
साक्षित्व सत्य है। उस साक्षित्व को जान लेना अपने बुद्ध स्वभाव को जान
लेना है
टेक इट ईजी
ओशो
No comments:
Post a Comment