अचानक ढब्बूजी को खबर लगी कि चंदूलाल अस्पताल में भरती हैं। उसके शरीर
में घाव ही घाव हो गए हैं और करीब बीस फैक्चर हुए हैं; हालत गंभीर है।
समाचार मिलते ही ढब्बूजी भागे भागे अस्पताल पहुंचे। देखा कि पूरे शरीर में
पट्टियां ही पट्टियां बंधी हैं, आक्सीजन लगी है, ग्लूकोज की बोतल लटकी है,
और पास ही में बैठी गुलाबो सिर के बाल नोंचकर जार जार रो रही है, छाती पीट
रही है। ढब्बूजी ने कहा : “भाभी, यह क्या हो गया; कोई दुर्घटना हो गयी
क्या?”
“मुझसे क्या पूछते हो”, गुलाबो ने दहाड़ मारते हुए रोकर कहा, “अपने भैया से ही पूछो न!”
“क्या हुआ, भाई चंदूलाल”, ढब्बूजी ने उदास स्वर में पूछा, “क्या कर बैठे
यह? आखिर ऐसी कौन—सी गलती हो गयी कि जिससे पूरे शरीर पर प्लास्टर ही
प्लास्टर चढ़ गया?”
बेचारे चंदूलाल ने बामुश्किल मुंह खोलकर जवाब दिया, “क्या बताऊं, दोस्त, मैंने तो बस इतना ही कहा था कि दाल में ज़रा नमक कम है।”
यह सुनते ही गुलाबो की आंखें गुस्से से लाल हो गयीं। “शर्म नहीं आती झूठ
बोलते”, वह पूरी ताकत लगाकर चीखी, “तुमने यह नहीं कहा था कि नमक ज़रा कम
है, तुमने यह कहा था कि नमक है ही नहीं।”
“मगर भाभी इतने नाराज होने की तो कोई बात नहीं थी”, ढब्बूजी ने समझाया, “आपको दाल में और नमक डाल देना था।”
गुलाबो बोली, “यदि घर में नमक होता तो मैंने पहले ही न डाल दिया होता!
एक हफकीरते से घर में नमक है ही नहीं। कहो अपने भैया से, घर में सामान लाकर
क्यों नहीं रखते?”
“क्या बात करती हो, जी!” चंदूलाल बोले, “मैंने पिछले शनिवार को ही तो दस किलो नमक लाकर तुम्हें दिया था।”
गुलाबो का गुस्सा तो अब आसमान पर चढ़ गया। वह बोली, “अरे कलमुंहे, मुझे
बताया क्यों नहीं कि वह नमक है। मैं तो उसे शक्कर समझकर रोज चाय में डालकर
तुझे पिलाती रही!”
ऐसी जिंदगी चल रही है!
तुम पूछते हो, क्राइस्ट ने कहा : गांव के मुरदे मुरदे को दफना देंगे।
कबीर ने कहाः साधो, ई मुरदन के गांव। और मलूक कहते हैं : मुरदे मुरदे लड़ि
मरे। लोकजीवन मृत है, इसका क्या कारण है?
एकमात्र कारण है कि लोग बेहोश हैं, मूर्छित हैं। और एकमात्र औषधि,
रामबाण औषधि, और वह बुद्धत्व है। इसके सिवाय न कभी कोई उपाय था, न है, न हो
सकता है।
जागो! और जाग तुम सकते हो, वह तुम्हारी संभावना है। वह तुम्हारा जन्मसिद्ध अधिकार है!
राम दुवारे जो मरे
ओशो
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