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Thursday, August 20, 2015

‘प्रयोग करो कि एक आग तुम्‍हारे पाँव के अंगूठे से शुरू होकर पूरे शरीर में ऊपर उठ रही है……।’


बस लेट जाओ। पहले भाव करो कि तुम मर गए हो। शरीर एक शव मात्र है। लेटे रहो और अपने ध्‍यान को पैर के अंगूठे पर ले जाओ। आंखें बंद करके भीतर गति करो। अपने ध्‍यान को अँगूठों पर ले जाओं और भाव करो कि वहां से आग ऊपर बढ़ रही है। और सब कुछ जल रहा है,जैसे-जैसे आग बढ़ती है वैसे-वैसे तुम्‍हारा शरीर विलीन हो रहा है। अंगूठे से शुरू करो और ऊपर बढ़ो।

अंगूठे से क्‍यों शुरू करो। यह आसान होगा। क्‍योंकि अंगूठा तुम्‍हारे ‘मैं’ से, तुम्‍हारे अहंकार से बहुत दूर है। तुम्‍हारा अहंकार सिर में केंद्रित है; वहां से शुरू करना कठिन होगा। तो बिंदु से शुरू करो; भाव करो कि अंगूठे जल रहे है। और वहां अब राख ही बची है।

और फिर धीरे-धीरे ऊपर बढ़ो और जो भी आग की राह में पड़े उसे जलाते जाओ। सारे अंग—पैर,जांघ—विलीन हो जाएंगे। और देखते जाओ कि अंग-अंग राख हो रहे है; जिन अंगों से होकर आग गुजरी है वे अब नहीं है। वे राख हो गए है। ऊपर बढ़ते जाओ; और अंत में सिर भी विलीन हो जाता है। प्रत्‍येक चीज राख हो गई है; धूल-धूल में मिल रही है। और तुम देख रहे हो।


‘और अंतत: शरीर जलकर राख हो जाता है। लेकिन तुम नहीं।’


तुम शिखर पर खड़े द्रष्‍टा रह जाओगे, साक्षी रह जाओगे। शरीर वहां पडा होगा, मृत जला हुआ, राख-और तुम द्रष्‍टा होगे, साक्षी होगे। इस साक्षी का कोई अहंकार नहीं है।

यह विधि निरहंकार अवस्‍था की उपलब्‍धि के लिए बहुत उपयोगी है। क्‍यो? क्‍योंकि इसमें बहुत सी बातें घटती है। यह विधि सरल मालूम पड़ती है। लेकिन यह उतनी सरल है नहीं। इसकी आंतरिक संरचना बहुत जटिल है।
पहली बात यह है कि तुम्‍हारी स्‍मृतियां शरीर का हिस्‍सा है। स्‍मृति पदार्थ है; यही कारण है कि उसे संग्रहीत किया जा सकता है। स्‍मृति मस्‍तिष्‍क के कोष्‍ठों में संग्रहीत है। स्‍मृतियां भौतिक है, शरीर का हिस्‍सा है। तुम्‍हारे मस्‍तिष्‍क का आपरेशन करके अगर कुछ कोशिकाओं को निकाल दिया जाए तो उनके साथ कुछ स्‍मृतियां भी विदा हो जायेगी। स्‍मृतियां मस्‍तिष्‍क में संग्रहीत रहती है। स्‍मृति पदार्थ है; उसे नष्‍ट किया जा सकता है।
और अब तो वैज्ञानिक कहते है कि स्‍मृति प्रत्‍यारोपित कि जा सकती है। देर-अबेर हम उपाय खोज लेंगे कि जब आइंस्‍टीन जैसा व्‍यक्‍ति मरे तो हम उसके मस्‍तिष्‍क की कोशिकाओं को बचा लें। और उन्‍हें किसी बच्‍चे में प्रत्‍यारोपित कर दें। और उस बच्‍चे को आइंस्टीन के अनुभवों से गूजरें बिना ही आइंस्टीन की स्‍मृतियां प्राप्‍त हो जाएगी।

तो स्‍मृति शरीर का हिस्‍सा है। और अगर सारा शरीर जल जाए, राख हो जाए,तो कोई स्‍मृति नहीं बचेगी। याद रहे,यह बात समझने जैसी है। अगर स्‍मृति रह जाती है तो शरीर अभी बाकी है। और तुम धोखे में हो। अगर तुम सचमुच गहराई से इस भाव में उतरोगे कि शरीर नहीं है। जल गया है, आग ने उसे पूरी तरह राख कर दिया है। तो उसे क्षण तुम्‍हें कोई स्‍मृति नहीं रहेगी। साक्षित्‍व के उस क्षण में कोई मन नहीं रहेगा। सब कुछ ठहर जाएगा। विचारों की गति रूक जाएगी। केवल दर्शन,मात्र देखना रह जाएगा कि क्‍या हुआ है।

और एक बार तुमने यह जान लिया तो तुम इस अवस्‍था में निरंतर रह सकते हो। एक बार सिर्फ यह जानना है कि तुम अपने को अपने शरीर से अलग कर सकते हो। यह विधि तुम्‍हें अपने शरीर से अलग जानने का, तुम्‍हारे और तुम्‍हारे शरीर के बीच एक अंतराल पैदा करने का, कुछ क्षणों के लिए शरीर से बाहर होने का एक उपाय है। अगर तुम इसे साध सको तो तुम शरीर में होते हुए भी शरीर में नहीं होगे। तुम पहले की तरह ही जीए जा सकते हो; लेकिन अब तुम फिर कभी वही नहीं हो सकते हो।

इस विधि में कम से कम तीन महीने लगेंगे। इसे करते रहो; यह एक दिन में नहीं होगी। लेकिन यदि तुम प्रतिदिन इसे एक घंटा देते हो तो तीन महीने के भीतर किसी दिन अचानक तुम्‍हारी कल्‍पना सफल होगी। और एक अंतराल निर्मित हो जाएगा। और तुम सचमुच देखोगें कि तुम्‍हारा शरीर राख हो रहा है। तब तुम उसका निरीक्षण कर सकते हो। और उस निरीक्षण में एक गहन तथ्‍य को बोध होगा। कि अहंकार असत्‍य है, झूठ है; उसकी कोई सत्‍ता नहीं है। अहंकार था; क्‍योंकि तुम शरीर से विचारों से मन से तादात्‍म्‍य किए बैठे थे। तुम उनमें से कुछ भी नहीं हो न मन, न विचार, न शरीर। तुम उस सब से भिन्‍न हो जो तुम्‍हें घेर हुए है। तुम अपनी परिधि से सर्वथा भिन्‍न हो।

तो उपर से यह विधि सरल मालूम पड़ती है। लेकिन यह तुम्‍हारे भीतर गहन रूपांतरण ला सकती है। लेकिन पहले मरघट में जाकर ध्‍यान करो, जो लोगों को जलाया जाता है। देखो कि कैसे शरीर जलता है। कैसे शरीर फिर मिट्टी हो जाता है। ताकि तुम फिर आसानी से कल्‍पना कर सको। और जब अँगूठों से आरंभ करो और बहुत धीरे-धीरे उपर बढ़ो।

और इस विधि में उतरने के पहले श्‍वास छोड़ने पर ज्‍यादा ध्‍यान दो। इस विधि को करने के ठीक पहले पंद्रह मिनट तक श्‍वास छोड़ो और आंखे बंद कर लो, फिर शरीर को श्‍वास लेने दो और आंखें खोल दो। पंद्रह मिनट तक गहन विश्राम में रहो। और फिर विधि में प्रवेश करो।

विज्ञान भैरव तंत्र

ओशो

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