सूत्र:
12—पूछो अपने ही अंतरतम, उस एक से,जीवन के परम रहस्य को,
जो कि उसने तुम्हारे लिए युगों से छिपा रखा है।
जीवात्मा की वासनाओं को
जीत लेने का बड़ा और कठिन कार्य युगों का है।
इसलिए उसके पुरस्कार को पाने की आशा तब तक मत करो,
जब तक युगों के अनुभव एकत्रित न हो जाएं।
जब इस बारहवें नियम को सीखने का समय आता है,
तब मानव मानवेतर (अतिमानव) अवस्था की डचोढी पर पहुंच जाता है।
जो ज्ञान अब तुम्हें प्राप्त हुआ है
वह इसी कारण तुम्हें मिला है कि तुम्हारी आत्मा सभी शुद्ध आत्मओं से एक है
और उस परम—तत्व से एक हो गयी है।
यह ज्ञान तुम्हारे पास उसी सर्वोच्च (परमात्मा) की धरोहर है।
इसमें यदि तुम विश्वासघात करो,
उस ज्ञान का दुरुपयोग करो या उसकी अवहेलना करो,
तो अब भी संभव है कि तुम जिस उच्च पद तक पहुंच चुके हो,
उससे नीचे गिर पड़ो।
बड़े पहुंचे हुए लोग भी अपने दायित्व का भार न सम्हाल सकने के कारण
और आगे न बढ़ सकने के कारण
डचोढ़ी से गिर पड़ते हैं और पिछड़ जाते हैं।
इसलिए इस क्षण के प्रति श्रद्धा और भय के साथ सजग रहो
और युद्ध के लिए तैयार रहो।
साधनासूत्र
ओशो
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