उसे खोजो और पहले उसे अपने हृदय में ही सुनो।
आरंभ में तुम कदाचित कहोगे कि यहां गीत तो है नहीं,
मैं तो जब ढूंढता हूं तो केवल बेसुरा कोलाहल ही सुनाई देता है।
और अधिक गहरे ढूंढो,
यदि फिर भी तुम निष्फल रहो
तो ठहरो और भी अधिक गहरे में फिर ढूंढ़ों।
एक प्राकृतिक संगीत,
एक गुप्त जल—स्रोत प्रत्येक मानव हृदय में है।
वह भले ही ढंका हो, बिलकुल छिपा हो
और नीरव जान पड़ता हो— किंतु वह है अवश्य।
तुम्हारे स्वभाव के मूल में तुम्हें श्रद्धा,
आशा और प्रेम की प्राप्ति होगी।
जो पाप—पथ को ग्रहण करता है,
वह अपने अंतरंग में देखना अस्वीकार कर देता है,
अपने कान हृदय के संगीत के प्रति मूंद लेता है
और अपनी आंखों को अपनी आत्मा के प्रकाश के प्रति अंधी कर लेता है।
उसे अपनी वासनाओं में लिप्त रहना सरल जान पड़ता है,
इसी से वह ऐसा करता है।
परंतु समस्त जीवन के नीचे एक वेगवती धारा बह रही है,
जिसे रोका नहीं जा सकता।
सचमुच गहरा पानी वहां मौजूद है, उसे ढूंढ निकालो।
इतना जान लो कि तुम्हारे अंदर निःसंदेह वह वाणी मौजूद है।
उसे वहां ढूंढ़ों और जब एक बार उसे सुन लोगे,
तो अधिक सरलता से तुम उसे अपने आसपास के लोगों में पहचान सकोगे।
साधनसूत्र
ओशो
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