एक स्त्री को मेरे पास लाया गया। उसका पति मर गया, और तीन महीने से उसे
हिस्टीरिया हो गया था, बेहोश हो जाती थी। तो मैंने पूछा कि यह स्त्री पति
के मरने पर रोई या नहीं? तो जो लाए थे, उन्होंने बड़ी प्रशंसा से कहा, कि
बड़ी हिम्मतवर स्त्री है, युनिवर्सिटी में प्रोफेसर है, बड़ी बुद्धिमान है,
इसने एक आंसू नहीं गिराया। मैंने कहा कि हिस्टीरिया उसका परिणाम है। और तुम
नासमझों ने इसकी प्रशंसा की होगी, कि तू गजब की है, क्या हृदय पाया है
मजबूत!
हृदय और कहीं मजबूत होता है? हृदय की तो खूबी ही, उसकी मजबूती तो उसकी कोमलता ही है। वह तो फूल जैसी कोमल चीज है। मजबूत हृदय का क्या मतलब? कोई पत्थर का फूल बनाया हुआ है?
उन सबने उसकी खूब प्रशंसा की, उन सबने हिस्टीरिया पैदा करवा दिया। और कोई नहीं सोचता कि इसका कर्मफल किसको भोगना पड़ेगा? और वह स्त्री बेहोश हो—हो जाती है। वह रो नहीं पाई। मैंने उस स्त्री को कहा कि तू इन नासमझों की बातो में पड़ी है, तू रो ले। क्योंकि प्रोफेसर होने से कोई ऐसा थोड़े है कि तू स्त्री नहीं रह गई। लेकिन प्रोफेसर भारी है, युनिवर्सिटी में किसी डिपार्टमेंट की हेड है वह, कैसे रो सकती है? समझदार है। समझदारी से रोने से क्या वैपरीत्य है? समझदार हृदयपूर्वक रोएगा, बस इतना फर्क होगा।
वह कहने लगी, आप क्या कहते हैं, मुझे रोना चाहिए था?
तुझे रोना ही चाहिए था। क्योंकि जिसको तूने प्रेम किया है, और जिससे तूने सुख पाया है, तो दुख क्या मैं पाऊंगा? दुख तुझे पाना होगा। सुख पाते वक्त तू मेरे पास कभी नहीं आई। अब दुख कौन लेगा? संसार द्वंद्व है, वहां सुख तूने पाया, तो दुख तुझे पाना होगा। तब तराजू तुल जाएंगे, संतुलन पैदा हो जाएगा। तू खूब छाती पीट, रो, लोट।
उसने कहा कि आप क्या बातें कर रहे हैं! मैंने कहा, तो फिर हिस्टीरिया होगा।
यह हिस्टीरिया, जो दबा है, वेगपूर्वक दबा है, उसका उफान है, उसका धक्का है। जो नहीं बह पा रहा है दुख, वह इतना धक्का मार रहा है कि तेरे स्नायु जाल में पूरी की पूरी जकड़न पैदा हो जाती है। यह हालत ऐसी ही है, जैसे कोई कार चला रहा हो; एक्सीलेटर भी दबा रहा हो, और ब्रेक भी दबा रहा हो, तो कार की जो हालत हो जाए, वह हिस्टीरिया उसका नाम होगा।
इस औरत का पूरा हृदय रोना चाहता है। क्योंकि मैंने उससे पूछा कि तूने अपने पति से आनंद पाया? उसने कहा, मैंने बहुत आनंद पाया। मैं बहुत सुखी थी। तो फिर मैंने कहा कि उतना ही दुखी होना जरूरी है। तो तेरा पूरा हृदय बहना चाह रहा है। और तेरा प्रोफेसर, तेरा ज्ञान और यह नासमझों की कतार, जो चारों तरफ मौजूद है, इनकी प्रशंसा, कि तू गजब की है, ऐसा होना चाहिए- तू ब्रेक लगा रही है। और एक्सीलेटर भी दबा रही है और ब्रेक भी लगा रही है! जब भी किसी व्यक्तित्व में एक्सीलेटर और ब्रेक एक साथ दबता है, तो हिस्टीरिया पैदा हो जाता है। या तो ब्रेक ही लगा, एक्सीलेटर मत दबा। लेकिन वह तभी संभव है, जब तूने पति से कोई सुख न पाया हो। लेकिन सुख तूने पाया है, तो उसका दूसरा पहलू झेलना ही पड़ेगा।
वह स्त्री मेरे सामने बैठी बैठी रोने लगी। और मैंने उससे कहा कि तू आधा घंटा यहीं बैठ, और हृदयपूर्वक रो ले। और आधा घंटे बाद उसने कहा कि मैं जानती हूं कि हिस्टीरिया अब नहीं आएगा। और मैंने कहा कि तू किसी की मत सुनना। चार-छह महीने लगेंगे, दुख को भोगना ठीक से। दुख का भोगना भी कीमती है, जरूरी है। वह भी जीवन-शिक्षा का अंग है। हिस्टीरिया वापस नहीं लौटा। कोई आठ महीने हो गए, फिट नहीं आया है। लेकिन वह जो समझदारों की कतार है, उन जैसे नासमझ खोजने कठिन हैं।
व्यक्तित्व को अपने पहचानना और अपने व्यक्तित्व को तोड़ना।
मेरे ध्यान की प्रक्रिया आपके व्यक्तित्व को तोड्ने के लिए व्यवस्था है। वह ध्यान नहीं है, वह आपके व्यक्तित्व का हटाना है! और वह हट जाए, तो ध्यान तो बड़ी सहज बात है। आपका पत्थर हट जाए, तो झरने के बहने के लिए कुछ करना थोड़े ही पड़ता है। झरना अपने से बहता है, सिर्फ पत्थर नहीं चाहिए। ध्यान तो स्वभाव है। अगर व्यक्तित्व के पत्थर न हों, तो वह आ जाएगा। लेकिन कुछ तो सहज बनने दो। आंसू मुस्कुराहट, नाचना, कुछ तो सहज होने दो। तो फिर वह जो परम सहज है, वह भी हो सकता है।
‘जब तक तुम अपने व्यक्तित्व से अलग एक ओर खड़े नहीं होते, तब तक वह अपने को तुम पर प्रकट नहीं करेगा।’
वह जो तुम्हारा स्वरूप है, तुम पर प्रकट नहीं होगा।
‘तभी तुम उसे समझ सकोगे और उसका पथ प्रदर्शन कर सकोगे, उससे पहले नहीं। तभी तुम उसकी समस्त शक्तियों का उपयोग कर सकोगे और उन्हें किसी योग्य सेवा में लगा सकोगे, उससे पहले नहीं।’
साधनसूत्र
ओशो
हृदय और कहीं मजबूत होता है? हृदय की तो खूबी ही, उसकी मजबूती तो उसकी कोमलता ही है। वह तो फूल जैसी कोमल चीज है। मजबूत हृदय का क्या मतलब? कोई पत्थर का फूल बनाया हुआ है?
उन सबने उसकी खूब प्रशंसा की, उन सबने हिस्टीरिया पैदा करवा दिया। और कोई नहीं सोचता कि इसका कर्मफल किसको भोगना पड़ेगा? और वह स्त्री बेहोश हो—हो जाती है। वह रो नहीं पाई। मैंने उस स्त्री को कहा कि तू इन नासमझों की बातो में पड़ी है, तू रो ले। क्योंकि प्रोफेसर होने से कोई ऐसा थोड़े है कि तू स्त्री नहीं रह गई। लेकिन प्रोफेसर भारी है, युनिवर्सिटी में किसी डिपार्टमेंट की हेड है वह, कैसे रो सकती है? समझदार है। समझदारी से रोने से क्या वैपरीत्य है? समझदार हृदयपूर्वक रोएगा, बस इतना फर्क होगा।
वह कहने लगी, आप क्या कहते हैं, मुझे रोना चाहिए था?
तुझे रोना ही चाहिए था। क्योंकि जिसको तूने प्रेम किया है, और जिससे तूने सुख पाया है, तो दुख क्या मैं पाऊंगा? दुख तुझे पाना होगा। सुख पाते वक्त तू मेरे पास कभी नहीं आई। अब दुख कौन लेगा? संसार द्वंद्व है, वहां सुख तूने पाया, तो दुख तुझे पाना होगा। तब तराजू तुल जाएंगे, संतुलन पैदा हो जाएगा। तू खूब छाती पीट, रो, लोट।
उसने कहा कि आप क्या बातें कर रहे हैं! मैंने कहा, तो फिर हिस्टीरिया होगा।
यह हिस्टीरिया, जो दबा है, वेगपूर्वक दबा है, उसका उफान है, उसका धक्का है। जो नहीं बह पा रहा है दुख, वह इतना धक्का मार रहा है कि तेरे स्नायु जाल में पूरी की पूरी जकड़न पैदा हो जाती है। यह हालत ऐसी ही है, जैसे कोई कार चला रहा हो; एक्सीलेटर भी दबा रहा हो, और ब्रेक भी दबा रहा हो, तो कार की जो हालत हो जाए, वह हिस्टीरिया उसका नाम होगा।
इस औरत का पूरा हृदय रोना चाहता है। क्योंकि मैंने उससे पूछा कि तूने अपने पति से आनंद पाया? उसने कहा, मैंने बहुत आनंद पाया। मैं बहुत सुखी थी। तो फिर मैंने कहा कि उतना ही दुखी होना जरूरी है। तो तेरा पूरा हृदय बहना चाह रहा है। और तेरा प्रोफेसर, तेरा ज्ञान और यह नासमझों की कतार, जो चारों तरफ मौजूद है, इनकी प्रशंसा, कि तू गजब की है, ऐसा होना चाहिए- तू ब्रेक लगा रही है। और एक्सीलेटर भी दबा रही है और ब्रेक भी लगा रही है! जब भी किसी व्यक्तित्व में एक्सीलेटर और ब्रेक एक साथ दबता है, तो हिस्टीरिया पैदा हो जाता है। या तो ब्रेक ही लगा, एक्सीलेटर मत दबा। लेकिन वह तभी संभव है, जब तूने पति से कोई सुख न पाया हो। लेकिन सुख तूने पाया है, तो उसका दूसरा पहलू झेलना ही पड़ेगा।
वह स्त्री मेरे सामने बैठी बैठी रोने लगी। और मैंने उससे कहा कि तू आधा घंटा यहीं बैठ, और हृदयपूर्वक रो ले। और आधा घंटे बाद उसने कहा कि मैं जानती हूं कि हिस्टीरिया अब नहीं आएगा। और मैंने कहा कि तू किसी की मत सुनना। चार-छह महीने लगेंगे, दुख को भोगना ठीक से। दुख का भोगना भी कीमती है, जरूरी है। वह भी जीवन-शिक्षा का अंग है। हिस्टीरिया वापस नहीं लौटा। कोई आठ महीने हो गए, फिट नहीं आया है। लेकिन वह जो समझदारों की कतार है, उन जैसे नासमझ खोजने कठिन हैं।
व्यक्तित्व को अपने पहचानना और अपने व्यक्तित्व को तोड़ना।
मेरे ध्यान की प्रक्रिया आपके व्यक्तित्व को तोड्ने के लिए व्यवस्था है। वह ध्यान नहीं है, वह आपके व्यक्तित्व का हटाना है! और वह हट जाए, तो ध्यान तो बड़ी सहज बात है। आपका पत्थर हट जाए, तो झरने के बहने के लिए कुछ करना थोड़े ही पड़ता है। झरना अपने से बहता है, सिर्फ पत्थर नहीं चाहिए। ध्यान तो स्वभाव है। अगर व्यक्तित्व के पत्थर न हों, तो वह आ जाएगा। लेकिन कुछ तो सहज बनने दो। आंसू मुस्कुराहट, नाचना, कुछ तो सहज होने दो। तो फिर वह जो परम सहज है, वह भी हो सकता है।
‘जब तक तुम अपने व्यक्तित्व से अलग एक ओर खड़े नहीं होते, तब तक वह अपने को तुम पर प्रकट नहीं करेगा।’
वह जो तुम्हारा स्वरूप है, तुम पर प्रकट नहीं होगा।
‘तभी तुम उसे समझ सकोगे और उसका पथ प्रदर्शन कर सकोगे, उससे पहले नहीं। तभी तुम उसकी समस्त शक्तियों का उपयोग कर सकोगे और उन्हें किसी योग्य सेवा में लगा सकोगे, उससे पहले नहीं।’
साधनसूत्र
ओशो
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