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Sunday, August 16, 2015

ये सूत्र महा सुख के सूत्र हैं।

मैं एक घर में रहता था। उस घर की गृहिणी बड़ी तलाश में रहती थी कि कब, कौन, कहां मर गया! न भी हो पहचान, तो भी वह गृहिणी संवेदना प्रकट करने जाती थी! और जब भी मैंने उस गृहिणी को संवेदना प्रकट करते जाते देखा, तो उसकी चाल का मजा ही और था! मैंने पूछा भी कि मामला क्या है? कोई मर जाता है, कुछ हो जाता है, तो तू इतनी क्यों प्रसन्न हो कर जाती है? उसने कहा कि दुख में तो साथ देना ही चाहिए। मैंने कहा कि तेरी आंखों से दुख का कोई पता नहीं चलता, तेरी चाल से कुछ पता नहीं चलता। मुझे तो ऐसा लगता है कि तू प्रतीक्षा में थी कि कब कोई मरे। तेरी जल्दी, तेरा रस, यह सब शक पैदा करते हैं।

आप अपने पर ध्यान करना। जब आप किसी के दुख में दुख प्रकट कर रहे हों, एक क्षण आँख बंद करके भीतर देखना कि रस तो नहीं आ रहा है। आपको अच्छा तो नहीं लग रहा है, मजा तो नहीं ले रहे हैं सहानुभूति में। अगर मजा ले रहे हैं, तो इस मजे को आप समझना कि रोग है। और जब कोई सुखी दिखाई पड़े, तो क्या आपको ईर्ष्या पकड़ती है? क्या यह होता है कि दूसरा आदमी सुखी है, तो आपको कष्ट होता है? अगर कष्ट होता है, तो आपके मन में जीवन का सम्मान नहीं है। जीवन कहीं भी खिलता हो और खुश होता हो, आपको खुश होना चाहिए।
और यह मैं इसलिए नहीं कह रहा हूं कि इससे दूसरों को लाभ होगा, यह मैं इसलिए कह रहा हूं कि इससे तुम रोग से मुक्त हो जाओगे। तुम्हारे घाव मिट जाएंगे। तुम अपने लिए दुख पैदा करना बंद कर दोगे। क्योंकि जो दूसरों के लिए दुख पैदा करता है, वह अपने ही लिए दुख पैदा कर रहा है; उसे इसका पता नहीं है। जो दूसरे के लिए सुख पैदा करता है, वह अपने लिए बड़े सुख का आयोजन कर रहा है।

अगर तुम दुखी हो तो तुम जिम्मेवार हो। और यह जिम्मेवारी तुम्हारी तभी तुम्हारे खयाल में आनी शुरू होगी। क्योंकि हर आदमी अपने को तो सुखी करना ही चाहता है। ऐसा आदमी खोजना कठिन है, जो अपने को सुखी नहीं करना चाहता। और बड़े मजे की बात है कि पृथ्वी पर चार अरब आदमी हैं, सभी आदमी अपने को सुखी करना चाहते हैं और सभी आदमी दुखी हैं! जरूर कहीं कुछ भूल हो रही है। और भूल कुछ बड़ी है और बुनियादी है। नहीं तो चार अरब आदमी एक ही भूल को कैसे दोहराते रहेंगे? और सभी सुखी होना चाहते हैं और कोई सुखी नहीं है!

भूल यह हो रही है कि आप खुद तो सुखी होना चाहते हैं, लेकिन दूसरे को दुखी करना चाहते हैं। और जो दूसरे को दुखी करना चाहता है, वह कभी सुखी नहीं हो सकता। भूल यह हो रही है कि आप खुद तो सुखी होना चाहते हैं, लेकिन किसी को सुखी नहीं देखना चाहते हैं। और जो किसी को सुखी नहीं देख सकता, वह दुखी रहेगा, वह कभी सुखी नहीं हो सकता। जो हम दूसरों के लिए चाहते हैं, वह हमें उपलब्ध हो जाता है। जो हम दूसरों के लिए करते हैं, वह प्रतिध्वनित हो कर हम पर बरस जाता है। यह जगत एक गज है। यहां सब जो तुम लुटाते हो, तुम पर ही बरस जाता है। तुम गालियां फेंकते हो, गालियां तुम पर लौट आती हैं। तुम सुख लुटाते हो, सुख तुम पर लौट आता है। यह जगत तुम्हें वही दे देता है, तुम जो इसे देने को तत्पर हो।

अगर तुमने जीवन का सम्मान किया है, तो यह सारा जगत, यह सारा अस्तित्व, तुम्हारे प्रति सम्मान से भर जाएगा। अगर तुमने जीवन का अपमान किया है, तो यह सारा अस्तित्व तुम्हारे प्रति अपमान से भर जाएगा।
और तब एक बहुत कठिन समस्या पैदा हो जाती है। अगर तुम जगत का अपमान करते हो, जीवन का अपमान करते हो, तो जगत और जीवन तुम्हारा अपमान करता है। और जब तुम्हारा अपमान जगत और जीवन करता है, तो तुम सोचते हो कि ठीक ही था मेरा दृष्टिकोण, यह जगत अपमान के ही योग्य है। अब तुम एक चक्कर में पड़ गए, जिसके बाहर आना बहुत मुश्किल हो जाएगा। अब तो तुम्हें लगेगा कि तुम्हारा यह खयाल ठीक ही था, कि यह जगत एक दुख है। यह कोई उत्सव नहीं है, यह एक रुदन है। अब तो तुम्हें पक्का ही हो जाएगा। क्योंकि यह जगत तुम्हें दुख देगा। और तुम्हें यह खयाल भी न आएगा कि यह दुख तुम्हारा ही बोया हुआ है, जो तुम्हारी तरफ वापस लौट रहा है।

अगर कर्म के सिद्धांत का कोई मौलिक अर्थ है, तो यह है कि तुम जो करते हो, वह तुम पर ही लौट आता है। तुम जो भी करते हो, वही तुम्हें मिल जाता है। तुम्हारा किया हुआ ही तुम्हारी संपदा बन जाती है। वही संपदा फिर तुम्हें ढोनी पडती है। वह संपदा दुख की है, तो तुम समझना कि तुमने जो किया है, वह दुख लाने वाला था। वह सुख की है, तो तुम समझना कि तुमने जो किया है, वह सुख लाने वाला था।

‘समग्र जीवन का सम्मान करो, 

साधनासूत्र 

ओशो 

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