धीरे-धीरे ध्यान तुम्हारे संपूर्ण जीवन में व्याप्त हो जाना चाहिए।
यहां तक की सोने के लिए जाते समय भी। बिस्तर पर लेटने पर कुछ ही मिनटों
में तुम नींद की गोद में चले जाओगे।
इन कुछ मिनटों में मौन, अँधेरा और विश्रांत शरीर इनके संबंध में सजग रहो। जब तक पूरी तरह से नींद न आ जाए तब तक ऊँघते समय सजग रहो और तुमको आश्चर्य होगा। जब तक पूरी तरह नींद आती है तब तक के अंतिम क्षण तक यदि तुम ऐसा अभ्यास जारी रखते हो तो फिर सुबह में भी पहला विचार सजगता के संबंध में ही होगा। सोते समय जो तुम्हारा अंतिम विचार होगा वही सुबह में जागने पर पहला विचार होगा क्योंकि तुम्हारी नींद के दौरान यह अंतर-प्रवह के रूप में जारी रहता है।
ध्यान के लिए किसी के पास समय नहीं है-दिन में बहुत व्यस्तता रहती है। लेकिन रात के छह आठ घंटों को ध्यान में बदला जा सकता है। तुम पानी से नहाते हो। ऐसा तुम सजगता के साथ क्यों नहीं करते हो? रोबट की तरह यांत्रिक रूप से क्यों? तुम ऐसा हर रोज करते हो। इसलिए तुम करते जाते हो। और यह यंत्रवत हो जाता है। हर काम जीवंत होकर करो। धीरे-धीरे तुम्हारा संपूर्ण दिन, चौबीसों घंटे ध्यान से भर जाएगा। तभी तुम सही मार्ग पर हो। तब तुम्हें सफलता मिलने की पूरी गारंटी है।
रात को बत्ती बुझा दो, बिस्तर पर बैठ जाओ। और ‘ओ’ ध्वनि करते हुए मुंह से गहरी श्वास छोड़ो। पूरी तरह से श्वास छोड़ने के बार एक मिनट के रूक जाओ। न तो श्वास लो और न ही छोड़ो केवल रूक जाओ। इस ठहराव में तुम कुछ भी नहीं कर रहे हो। श्वास भी नहीं ले रहे हो।
केवल एक क्षण के लिए उस ठहराव में रहो। और साक्षी बनो। देखो कि क्या हो रहा है। सजग रहो कि तुम कहां हो। उस ठहराव के एक क्षण में संपूर्ण परिस्थिति का साक्षी बनो। वहां समय नहीं रहता। क्योंकि समय श्वास के साथ चला जाता है। तुम श्वास लेते हो इसलिए तुम महसूस करते हो कि समय बीत रहा है। समय रूक गया है तो सब कुछ रूक गया है…उस ठहराव में तुम अपने अंतस और ऊर्जा के गहनत्म स्त्रोत के प्रति सजग हो सकते हो।
तब नाक से श्वास लो, श्वास लेने के लिए अतिरिक्त प्रयास मत करो। श्वास छोड़ने के लिए ही पूरा प्रयास करो। तुमने श्वास छोड़ दिया, फिर एक क्षण के लिए रूक जाओ, तब शरीर को श्वास लेने दो। तुम केवल शरीर पर ध्यान दो। और जब शरीर श्वास लेगा तब तुम अपने चारों और एक गहन मौन महसूस करोगे। क्योंकि तब तुम जानोंगे कि जीवन के लिए प्रयास करने की आवश्यकता नहीं है। जीवन स्वयं श्वास लेता है। जीवन स्वयं अपने तरीके से चलता है। यह एक नदी है। तुम इसमें अनावश्यक ही वेग उत्पन करने का प्रयास करते हो।
तुम देखोगें कि शरीर श्वास लेता है। इसमें तुम्हारे प्रयास की आवश्यकता नहीं है। इसमें तुम्हारे अहं की आवश्यकता नही, तुम्हारी आवश्यकता नहीं। तुम केवल एक साक्षी हो जाते हो। तुम केवल शरीर को श्वास लेते देखते हो। गहन मौन की अनुभूति होगी। शरीर में पूरी तरह श्वास भर जाने पर एक क्षण के लिए फिर से रूक जाओ। फिर गौर करो।
ये दोनों क्षण एक दूसरे से बिलकुल भिन्न है। जिन्होंने जीवन की आंतरिक प्रक्रिया को देखा है वे गहराई के साथ कहते है कि प्रत्येक बार श्वास लेने के साथ तुम जन्मते हो और प्रत्येक श्वास छोड़ने के साथ तुम मरते हो। प्रत्येक क्षण जन्म लेते हो। एक बार तुम जान लेते हो कि यह जीवन है और यह मृत्यु है। तब तुम इन दोनों से पार हो जाते हो। साक्षी होना न तो जीवन है और न ही मृत्यु। साक्षी न तो कभी जन्म लेता है और न ही कभी मरता है। केवल शरीर मरता है। केवल कायित संरचना समाप्त होती है।
इसी रात बीस मिनट तक इस ध्यान को करो और फिर सो जाओ। सुबह जब तुम महसूस करो कि नींद तुम्हें छोड़ कर चली गई है तब तुरंत अपनी आंखें मत खोलों। जब नींद तुम्हें छोड़ देती है और जीवन ऊर्जा तुम्हारे अंदर जगने लगती है तब तुम उसे देख सकते हो। ध्यान की गहराई में जाने के लिए यह देखना सहायक होगा।
रात भर के विश्राम के बाद मन ताजा है, शरीर ताजा है; सब कुछ तरोताजा है। भारहीन है। कोई धूल नहीं, थकान नहीं—तुम गहराई से गौर से देखते हो। तुम्हारी आंखें स्वच्छ है। सब कुछ जीवंत है। इस क्षण को मत गंवाओ। नींद से जागरण में बदलने वाली ऊर्जा को महसूस करो। ध्यान से देखो।
तीन मिनट तक अपने शरीर को बिल्ली की तरह खींचो-लेकिन आंखें बंद करके। अंतस से शरीर को देखो। खींचो, आगे बढ़ो और ऊर्जा को प्रवाहित होने दो। तथा इसे महसूस करो। जब यह तरोताजा रहता है। तब इसे महसूस करना अच्छा है। यह अनुभूति पूरे दिन तुम्हारे साथ रहेगी। इसे दो तीन मिनट तक करो। यदि तुम्हें आनंद आ रहा है तो पाँच मिनट तक। और तब दो-तीन मिनट तक पागल की तरह जोर से हंसों, लेकिन आंखे मूंदकर। ऊर्जाऐं प्रवाहित हो रही है। शरीर सजग, सचेत और जीवंत है। नींद जा चुकी है। तुम नई ऊर्जा से भर जाते हो।
पहला काम हंसना है क्योंकि यह दिन भर की गतिविधि तय करता है। यदि तुम ऐसा करते हो तो तुम महसूस करोगे कि तुम खुशमिजाज रहते हो। तुम्हारा पूरा दिन आनंदमय रहता है। दूसरे क्या कहेंगे उसकी परवाह मत करो। हंसों ओर उन्हें हंसने में मदद करो।
याद रखो कि दिन के पहले काम से दिन की दूसरी गतिविधि तय होती है। और रात का अंतिम काम भी रात की रूप रेखा तय करता है। इसलिए सोते समय विश्रांत रहो और जब जागों तो हंसते हुए जागों। हंसना दिन की पहली प्रार्थना बने। हंसी महन स्वीकृति दिखाता है। हंसी उत्सव दिखाता है। हंसी दिखाता है कि जीवन अच्छा है। सुबह का पहला काम यह है कि शरीर की बिल्ली की तरह खींचो और फिर हंसों, और इसके बाद ही बिस्तर छोड़ो। पूरा दिन अलग तरह से गुजरेगा।
वेदांता: सेवन स्टेप्स टु समाधि
ओशो
इन कुछ मिनटों में मौन, अँधेरा और विश्रांत शरीर इनके संबंध में सजग रहो। जब तक पूरी तरह से नींद न आ जाए तब तक ऊँघते समय सजग रहो और तुमको आश्चर्य होगा। जब तक पूरी तरह नींद आती है तब तक के अंतिम क्षण तक यदि तुम ऐसा अभ्यास जारी रखते हो तो फिर सुबह में भी पहला विचार सजगता के संबंध में ही होगा। सोते समय जो तुम्हारा अंतिम विचार होगा वही सुबह में जागने पर पहला विचार होगा क्योंकि तुम्हारी नींद के दौरान यह अंतर-प्रवह के रूप में जारी रहता है।
ध्यान के लिए किसी के पास समय नहीं है-दिन में बहुत व्यस्तता रहती है। लेकिन रात के छह आठ घंटों को ध्यान में बदला जा सकता है। तुम पानी से नहाते हो। ऐसा तुम सजगता के साथ क्यों नहीं करते हो? रोबट की तरह यांत्रिक रूप से क्यों? तुम ऐसा हर रोज करते हो। इसलिए तुम करते जाते हो। और यह यंत्रवत हो जाता है। हर काम जीवंत होकर करो। धीरे-धीरे तुम्हारा संपूर्ण दिन, चौबीसों घंटे ध्यान से भर जाएगा। तभी तुम सही मार्ग पर हो। तब तुम्हें सफलता मिलने की पूरी गारंटी है।
रात को बत्ती बुझा दो, बिस्तर पर बैठ जाओ। और ‘ओ’ ध्वनि करते हुए मुंह से गहरी श्वास छोड़ो। पूरी तरह से श्वास छोड़ने के बार एक मिनट के रूक जाओ। न तो श्वास लो और न ही छोड़ो केवल रूक जाओ। इस ठहराव में तुम कुछ भी नहीं कर रहे हो। श्वास भी नहीं ले रहे हो।
केवल एक क्षण के लिए उस ठहराव में रहो। और साक्षी बनो। देखो कि क्या हो रहा है। सजग रहो कि तुम कहां हो। उस ठहराव के एक क्षण में संपूर्ण परिस्थिति का साक्षी बनो। वहां समय नहीं रहता। क्योंकि समय श्वास के साथ चला जाता है। तुम श्वास लेते हो इसलिए तुम महसूस करते हो कि समय बीत रहा है। समय रूक गया है तो सब कुछ रूक गया है…उस ठहराव में तुम अपने अंतस और ऊर्जा के गहनत्म स्त्रोत के प्रति सजग हो सकते हो।
तब नाक से श्वास लो, श्वास लेने के लिए अतिरिक्त प्रयास मत करो। श्वास छोड़ने के लिए ही पूरा प्रयास करो। तुमने श्वास छोड़ दिया, फिर एक क्षण के लिए रूक जाओ, तब शरीर को श्वास लेने दो। तुम केवल शरीर पर ध्यान दो। और जब शरीर श्वास लेगा तब तुम अपने चारों और एक गहन मौन महसूस करोगे। क्योंकि तब तुम जानोंगे कि जीवन के लिए प्रयास करने की आवश्यकता नहीं है। जीवन स्वयं श्वास लेता है। जीवन स्वयं अपने तरीके से चलता है। यह एक नदी है। तुम इसमें अनावश्यक ही वेग उत्पन करने का प्रयास करते हो।
तुम देखोगें कि शरीर श्वास लेता है। इसमें तुम्हारे प्रयास की आवश्यकता नहीं है। इसमें तुम्हारे अहं की आवश्यकता नही, तुम्हारी आवश्यकता नहीं। तुम केवल एक साक्षी हो जाते हो। तुम केवल शरीर को श्वास लेते देखते हो। गहन मौन की अनुभूति होगी। शरीर में पूरी तरह श्वास भर जाने पर एक क्षण के लिए फिर से रूक जाओ। फिर गौर करो।
ये दोनों क्षण एक दूसरे से बिलकुल भिन्न है। जिन्होंने जीवन की आंतरिक प्रक्रिया को देखा है वे गहराई के साथ कहते है कि प्रत्येक बार श्वास लेने के साथ तुम जन्मते हो और प्रत्येक श्वास छोड़ने के साथ तुम मरते हो। प्रत्येक क्षण जन्म लेते हो। एक बार तुम जान लेते हो कि यह जीवन है और यह मृत्यु है। तब तुम इन दोनों से पार हो जाते हो। साक्षी होना न तो जीवन है और न ही मृत्यु। साक्षी न तो कभी जन्म लेता है और न ही कभी मरता है। केवल शरीर मरता है। केवल कायित संरचना समाप्त होती है।
इसी रात बीस मिनट तक इस ध्यान को करो और फिर सो जाओ। सुबह जब तुम महसूस करो कि नींद तुम्हें छोड़ कर चली गई है तब तुरंत अपनी आंखें मत खोलों। जब नींद तुम्हें छोड़ देती है और जीवन ऊर्जा तुम्हारे अंदर जगने लगती है तब तुम उसे देख सकते हो। ध्यान की गहराई में जाने के लिए यह देखना सहायक होगा।
रात भर के विश्राम के बाद मन ताजा है, शरीर ताजा है; सब कुछ तरोताजा है। भारहीन है। कोई धूल नहीं, थकान नहीं—तुम गहराई से गौर से देखते हो। तुम्हारी आंखें स्वच्छ है। सब कुछ जीवंत है। इस क्षण को मत गंवाओ। नींद से जागरण में बदलने वाली ऊर्जा को महसूस करो। ध्यान से देखो।
तीन मिनट तक अपने शरीर को बिल्ली की तरह खींचो-लेकिन आंखें बंद करके। अंतस से शरीर को देखो। खींचो, आगे बढ़ो और ऊर्जा को प्रवाहित होने दो। तथा इसे महसूस करो। जब यह तरोताजा रहता है। तब इसे महसूस करना अच्छा है। यह अनुभूति पूरे दिन तुम्हारे साथ रहेगी। इसे दो तीन मिनट तक करो। यदि तुम्हें आनंद आ रहा है तो पाँच मिनट तक। और तब दो-तीन मिनट तक पागल की तरह जोर से हंसों, लेकिन आंखे मूंदकर। ऊर्जाऐं प्रवाहित हो रही है। शरीर सजग, सचेत और जीवंत है। नींद जा चुकी है। तुम नई ऊर्जा से भर जाते हो।
पहला काम हंसना है क्योंकि यह दिन भर की गतिविधि तय करता है। यदि तुम ऐसा करते हो तो तुम महसूस करोगे कि तुम खुशमिजाज रहते हो। तुम्हारा पूरा दिन आनंदमय रहता है। दूसरे क्या कहेंगे उसकी परवाह मत करो। हंसों ओर उन्हें हंसने में मदद करो।
याद रखो कि दिन के पहले काम से दिन की दूसरी गतिविधि तय होती है। और रात का अंतिम काम भी रात की रूप रेखा तय करता है। इसलिए सोते समय विश्रांत रहो और जब जागों तो हंसते हुए जागों। हंसना दिन की पहली प्रार्थना बने। हंसी महन स्वीकृति दिखाता है। हंसी उत्सव दिखाता है। हंसी दिखाता है कि जीवन अच्छा है। सुबह का पहला काम यह है कि शरीर की बिल्ली की तरह खींचो और फिर हंसों, और इसके बाद ही बिस्तर छोड़ो। पूरा दिन अलग तरह से गुजरेगा।
वेदांता: सेवन स्टेप्स टु समाधि
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