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Friday, August 14, 2015

मैं एक घर में मेहमान था....

  ....... एक बहुत प्यारी चिड़िया उस घर के लोगों ने पिंजड़े में कैद कर रखी थी। चिड़िया को बाहर का जगत दिखायी पड़ता होगा, लेकिन पिंजड़े की दीवालों के भीतर बंद चिड़िया को पता भी नहीं हो सकता कि बाहर एक खुला आकाश है, और बाहर खुले आकाश में उडने का भी एक आनंद है। शायद वह चिड़िया उडने का खयाल भी भूल गयी होगी। शायद, पंख किस लिये हैं, यह भी उसे पता नहीं रहा होगा। और अगर आज उसे पिंजड़े के बाहर भी कर दिया जाये, तो शायद वह बाहर आने से घबड़ायेगी और अपने सुरक्षित पिंजड़े में वापस आ जायेगी। शायद, पंख उसे अब निरर्थक लगते होंगे, बोझ लगते होंगे। और उसे यह भी पता नहीं होगा कि खुले आकाश में सूरज की तरफ बादलों के पार उड़ जाने का भी एक आनंद है, एक जीवन है। अब उसे कुछ भी पता नहीं होगा।
उस चिड़िया को तो कुछ भी पता नहीं होगा-क्या हमें पता है? हमने भी अपने चारों और दीवालें बना रखी हैं। उन दीवालों के पार, बियांड भी जहां कोई सीमा नहीं है। जहां आगे, और आगे अनंत विस्तार है। जहां कोई लोक है, सूरज है, जहां बादलों के पार आगे खुला आकाश है।

नहीं, हमें भी उनका कोई पता नहीं है। शायद हमें भी आत्मा एक बोझ मालूम पड़ती है। और हममें से बहुत-से लोग अपनी आत्मा को खो देने की हर चेष्टा करते हैं। शराब पीकर आआ को भुला देने की कोशिश करते हैं। संगीत सुनकर आत्मा को भुला देने की कोशिश करते हैं। किसी तरह आत्मा भूल जाये, इसकी चेष्टा करते हैं। हमें अपनी आत्मा भी एक बोझ मालूम पड़ती है, जैसे पिंजड़े में बंद एक चिड़िया को उसके पंख बोझ मालूम होते हैं। लेकिन हमें पता नहीं है कि एक आकाश है, जहां आत्मा भी एक पंख बन जाती है। और आकाश की एक उड़ान है, जिस उड़ान की उपलब्धि का नाम है-प्रभु-परमात्मा।

धर्म मनुष्य को मुक्त करने की कला है।

सम्भोग से समाधी की ओर 

ओशो 

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