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Friday, August 28, 2015

विचार का संग्रह

एक मुसलमान फकीर हुआ, नसरुद्दीन। वह एक नदी पार कर रहा था एक नाव में बैठ कर। रास्ते में दोनों की कुछ बातचीत हुई। नसरुद्दीन बड़ा जानी आदमी समझा जाता था। ज्ञानियों को हमेशा यह कोशिश रहती है कि किसी को अज्ञानी सिद्ध करने का मौका मिल जाए तो वह छोड़ नहीं सकते हैं। तो उसने, मल्लाह अकेला था, मल्लाह से पूछा कि भाषा जानते हो? उस मल्लाह ने कहा भाषा! बस जितना बोलता हूं उतना ही जानता हूं। पढ़ना लिखना मुझे कुछ पता नहीं है।

नसरुद्दीन ने कहा तेरा चार आना जीवन बेकार हो गया; क्योंकि जो पढ़ना नहीं जानता उसकी जिंदगी में क्या उसे ज्ञान मिल सकता है? बिना पढ़े, पागल! कहीं ज्ञान मिला है? लेकिन मल्लाह चुपचाप हंसने लगा। फिर आगे थोड़े चले और नसरुद्दीन ने पूछा कि तुझे गणित आता है? उस मल्लाह ने कहा. नहीं, गणित मुझे बिलकुल नहीं आता है, ऐसे ही दो और दो चार जोड़ लेता हूं यह बात दूसरी है।

नसरुद्दीन ने कहा : तेरा चार आना जीवन और बेकार चला गया; क्योंकि जिसे गणित ही नहीं आता, जिसे जोड़ ही नहीं आता है वह जिंदगी में क्या जोड़ सकेगा, क्या जोड़ पाएगा। अरे, जोड़ना तो जानना चाहिए, तो कुछ जोड़ भी सकता था। तू जोड़ेगा क्या? तेरा आठ आना जीवन बेकार हो गया।

फिर जोर का तूफान आया और आधी आई और नाव उलटने के करीब हो गई। उस मल्लाह ने पूछा आपको तैरना आता है?

नसरुद्दीन ने कहा मुझे तैरना नहीं आता।

उसने कहा आपकी सोलह आना जिंदगी बेकार जाती है। मैं तो चला। न मुझे गणित आता है और न मुझे भाषा आती है, लेकिन मुझे तैरना आता है। तो मैं तो जाता हूं-और आपकी सोलह आना जिंदगी बेकार हुई जाती है।
जिंदगी में कुछ जीवंत सत्य हैं जो स्वयं ही जाने जाते हैं, जो किताबों से नहीं जाने जा सकते हैं, जो शास्त्रों से नहीं जाने जा सकते हैं। आत्मा का सत्य या परमात्मा का; स्वयं ही जाना जा सकता है और कोई जानने का उपाय नहीं है।

लेकिन शास्त्रों में सब बातें लिखी हैं, उनको हम पढ़ लेते हैं, उनको हम समझ लेते हैं, वे हमें कंठस्थ हो जाती हैं, वे हमें याद हो जाती हैं। दूसरों को बताने के काम भी आ सकती हैं, लेकिन उससे कोई ज्ञान उपलब्ध नहीं होता है।

विचार का संग्रह ज्ञान का लक्षण नहीं है अज्ञान का ही लक्षण है। क्योंकि जिस आदमी के पास अपने विवेक की शक्ति जाग्रत हो जाती है, वह विचार के संग्रह से मुक्ति पा लेता है। फिर उसे संग्रह करने का कोई सवाल नहीं रह जाता, वह स्वयं ही जानता है। और जो स्वयं जानना है, वह……वह मन को मधुमक्खियों का छत्ता नहीं रहने देता है-मन को एक दर्पण बना देता है, एक झील बना देता है।

अंतरयात्रा शिविर

ओशो 

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