बुद्ध खोज रहे थे कि कैसे चेतना की इस शुद्धता को फिर से प्राप्त किया
जाए कैसे अतीत से मुक्त हुआ जाए। क्योंकि जब तक तुम अतीत से मुक्त नहीं
होते, तुम बंधन में रहोगे, तुम गुलाम बने रहोगे। अतीत तुम पर बोझ की तरह
है, और इस अतीत के कारण वर्तमान सदा अनजाना रह जाता है। अतीत ज्ञात है, और
इस अतीत के चलते तुम वर्तमान को चूकते जाते हो, जो बहुत आणविक है, सूक्ष्म
है। और अतीत के कारण ही तुम भविष्य का प्रक्षेपण करते हो, निर्माण करते
हो। अतीत ही भविष्य में प्रक्षेपित हो जाता है; और दोनों ही झूठ हैं। अतीत
बीत चुका और भविष्य होने को बाकी है, दोनों नहीं हैं। और जो है, वह
वर्तमान, वह अस्तित्व इन दो अनस्तित्वों के बीच छिपा है, दबा है।
बुद्ध खोज में थे, वे एक गुरु से दूसरे गुरु के पास गए। वे खोज में थे और अनेक गुरुओं के पास गए जो सबके सब जाने-माने गुरु थे। उन्होंने उनकी बात सुनी; उन्होंने उनके अनुसार साधना की। गुरुओं ने जो कुछ करने को कहा, बुद्ध ने सब किया। उन्होंने अनेक ढंग से अपने को अनुशासित किया, साधा; लेकिन वे तृप्त न हुए। और कठिनाई यही थी कि गुरु भविष्य में उत्सुक थे, मृत्यु के बाद किसी मोक्ष में उत्सुक थे। वे किसी भविष्य में, किसी ईश्वर में, किसी निर्वाण में, किसी मोक्ष में उत्सुक थे। और बुद्ध अभी और यहां में उत्सुक थे। इसलिए दोनों के बीच कोई तालमेल नहीं हो सका।
बुद्ध ने हरेक गुरु से कहा कि मैं अभी और यहां में उत्सुक हूं मैं अभी और यहां में समग्र होना चाहता हूं पूर्ण होना चाहता हूं। और गुरु कहते कि यह उपाय करो, वह उपाय करो; और अगर ठीक से उपाय करोगे तो भविष्य में किसी दिन, किसी भविष्य जीवन में, किसी भविष्य अवस्था में तुम पा लोगे। देर अबेर बुद्ध ने एक एक करके सभी गुरुओं को छोड़ दिया, और फिर उन्होंने स्वयं ही, अकेले ही प्रयोग किया।
क्या किया उन्होंने?
बुद्ध ने बहुत सरल काम किया। तुम इसे एक बार जान लो तो यह बहुत सरल है, सीधा साफ है। लेकिन नहीं जानने पर वह बहुत कठिन है, असंभव सा ही है। उन्होंने एक ही काम किया; वे वर्तमान क्षण में रहे। वे अपने अतीत को भूल गए, अपने भविष्य को भूल गए। उन्होंने कहा कि मैं अभी और यहीं होऊंगा, मैं सिर्फ होऊंगा।
और अगर तुम एक क्षण के लिए भी सिर्फ हो सके तो तुमने स्वाद जान लिया, अपनी शुद्ध चेतना का स्वाद। और एक बार ले लेने पर यह स्वाद भूलता नहीं है। वह स्वाद तुम्हारे साथ रहता है; और वही रूपांतरण बन जाता है।
अतीत से अपने को अनावृत करने के, धूल को हटाकर अपने मन के दर्पण में झांकने के अनेक उपाय हैं। ये सारी विधियां उसके ही भिन्न-भिन्न उपाय हैं। लेकिन स्मरण रहे, प्रत्येक विधि के प्रति एक गहरी समझ जरूरी है। ये विधियां यांत्रिक नहीं हैं; क्योंकि उन्हें चेतना को अनावृत करना है, उघाड़ना है। वे यांत्रिक नहीं हैं।
तंत्र सूत्र
ओशो
बुद्ध खोज में थे, वे एक गुरु से दूसरे गुरु के पास गए। वे खोज में थे और अनेक गुरुओं के पास गए जो सबके सब जाने-माने गुरु थे। उन्होंने उनकी बात सुनी; उन्होंने उनके अनुसार साधना की। गुरुओं ने जो कुछ करने को कहा, बुद्ध ने सब किया। उन्होंने अनेक ढंग से अपने को अनुशासित किया, साधा; लेकिन वे तृप्त न हुए। और कठिनाई यही थी कि गुरु भविष्य में उत्सुक थे, मृत्यु के बाद किसी मोक्ष में उत्सुक थे। वे किसी भविष्य में, किसी ईश्वर में, किसी निर्वाण में, किसी मोक्ष में उत्सुक थे। और बुद्ध अभी और यहां में उत्सुक थे। इसलिए दोनों के बीच कोई तालमेल नहीं हो सका।
बुद्ध ने हरेक गुरु से कहा कि मैं अभी और यहां में उत्सुक हूं मैं अभी और यहां में समग्र होना चाहता हूं पूर्ण होना चाहता हूं। और गुरु कहते कि यह उपाय करो, वह उपाय करो; और अगर ठीक से उपाय करोगे तो भविष्य में किसी दिन, किसी भविष्य जीवन में, किसी भविष्य अवस्था में तुम पा लोगे। देर अबेर बुद्ध ने एक एक करके सभी गुरुओं को छोड़ दिया, और फिर उन्होंने स्वयं ही, अकेले ही प्रयोग किया।
क्या किया उन्होंने?
बुद्ध ने बहुत सरल काम किया। तुम इसे एक बार जान लो तो यह बहुत सरल है, सीधा साफ है। लेकिन नहीं जानने पर वह बहुत कठिन है, असंभव सा ही है। उन्होंने एक ही काम किया; वे वर्तमान क्षण में रहे। वे अपने अतीत को भूल गए, अपने भविष्य को भूल गए। उन्होंने कहा कि मैं अभी और यहीं होऊंगा, मैं सिर्फ होऊंगा।
और अगर तुम एक क्षण के लिए भी सिर्फ हो सके तो तुमने स्वाद जान लिया, अपनी शुद्ध चेतना का स्वाद। और एक बार ले लेने पर यह स्वाद भूलता नहीं है। वह स्वाद तुम्हारे साथ रहता है; और वही रूपांतरण बन जाता है।
अतीत से अपने को अनावृत करने के, धूल को हटाकर अपने मन के दर्पण में झांकने के अनेक उपाय हैं। ये सारी विधियां उसके ही भिन्न-भिन्न उपाय हैं। लेकिन स्मरण रहे, प्रत्येक विधि के प्रति एक गहरी समझ जरूरी है। ये विधियां यांत्रिक नहीं हैं; क्योंकि उन्हें चेतना को अनावृत करना है, उघाड़ना है। वे यांत्रिक नहीं हैं।
तंत्र सूत्र
ओशो
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