अरे कंजूस!
तुम भारत के सच्चे प्रतिनिधि मालूम होते हो! यह भारतीय बुद्धि
का इतिहास है। कुछ खर्च न हो जाए! बस खर्च न हो, बचा बचाकर मर जाओ!
हर चीज में यह दृष्टि है, तुम इसे थोड़ा समझने की कोशिश करना। यह भारत के बुनियादी रोगों में से एक है: कंजूसी, कृपणता। कहीं खर्च न हो जाए। और मर जाओगे! तब यह कुंड़लिनी और यह ऊर्जा और यह सब पड़ा रह जाएगा। इस देश में अधिक लोग कब्जियत से परेशान हैं। डाक्टरों से पूछो, वे भी यही कहते हैं। भारत जितना कब्जियत से परेशान है, दुनिया का कोई देश इतना कब्जियत से परेशान नहीं है। यह कब्जियत आध्यात्मिक है। इसमें मनोविज्ञान है। हर चीज को पकड़ लो! मल मूत्र को भी पकड़ लो! और अगर ज्यादा आगे बढ़ जाओ, तो मोरारजी जैसा पी जाओ उसे वापिस। वह भी कंजूसी का हिस्सा है। कहीं निकल न जाए! कोई सारतत्व खो न जाए! ‘रि साइक्लिंग’। फिर डाल दो भीतर फिर फिर डालते रहो। उसको बिलकुल चूस लो। कुछ निकल न जाए! इसलिए तुम मल तक को पकड़ लेते हो भीतर उसको छोड़ते ही नहीं कुछ खर्चा हुआ जा रहा है। सड़ गये हो इसी में। इसलिए जीवन यहां फैल नहीं सका, सिकुड़ गया। हर बात में एक कृपणता छा गयी।
तुम जिसको ब्रह्मचर्य कहते हो, मेरे देखे, तुम्हारे सौ ब्रह्मचारियों में निन्यानबे सिर्फ कृपणता की वजह से ब्रह्मचर्य को स्वीकार कर लिये। कहीं वीर्य ऊर्जा खर्च न हो जाए! कंजूस हैं। एक ब्रह्मचर्य है जो आनंद से फलित होता है, ब्रह्म के शान से फलित होता है, वह तो बात अलग। मगर जिनको तुम आमतौर से ब्रह्मचारी कहते हो, ये ब्रह्मचारी सिर्फ कृपण हैं, कंजूस हैं। इनका सिर्फ भाव इतना ही है कि कहीं कुछ खर्च न हो जाए। ये मरे जा रहे हैं, हर चीज को रोक लो और सब पड़ा रह जाएगा! तुम्हारा वीर्य, तुम्हारी ऊर्जा, तुम्हारी कुंड़लिनी सब पड़ी रह जाएगी! सब मरघट पर जलेगी। और मजा यह है कि जो जितना रोकेगा उतना ही कम उसके पास ऊर्जा होगी, इस विज्ञान को ठीक से खयाल में ले लेना, क्योंकि कुछ चीजें हैं जो बांटने से बढ़ती हैं और रोकने से घटती हैं।
परमात्मा तुम्हारे साधारण अर्थशास्त्र को नहीं मानता। ऐसा समझो कि एक कुआ है, उसमें तुम रोज पानी भर लेते हो ताजा ताजा, तो नया ताजा पानी आ जाता है, झरनों से नया पानी आ रहा है। तुम अगर कुएं से पानी न भरोगे, तो तुम यह मत समझना कि कुएं में पानी के झरने बहते रहेंगे और कुआ भरता जाएगा भरता जाएगा और एक दिन पूरा भर जाएगा। कुएं में उतना ही पानी रहेगा। फर्क इतना ही रहेगा अगर तुम भरते रहे तो ताजा पानी आता रहेगा, कुएं का पानी जीवंत रहेगा। और अगर तुमने न भरा, तो कुएं का पानी सड़ जाएगा, मर जाएगा, जहरीला हो जाएगा। और जो झरने कुएं को पानी दे सकते थे, तुमने भरा ही नहीं, उन झरनों की कोई जरूरत नहीं रही, वे झरने भी धीरे— धीरे अवरुद्ध हो जाएंगे। उन पर पत्थर जम जाएंगे, कीच जम जाएगी, मिट्ठी जम जाएगी; उनका बहाव बंद हो जाएगा। तुमने हत्या कर दी कुएं की।
मनुष्य एक कुआ है। जैसे हर कुआ सागर से जुड़ा है, नीचे झरनों से, दूर विराट सागर से जुड़ा है, जहां से सब झर—झर कर आ रहा है, ऐसे ही मनुष्य भी कुआ है और परमात्मा के सागर से जुड़ा है। कंजूसी की यहां जरूरत ही नहीं है। लेकिन प्रेम में आदमी ड़रता है कि कहीं खर्चा न हो जाए। छोटेमोटे आदमियों की तो बात छोड़ दो, सिग्मंड़ फ्राँयड़ जैसा आदमी भी यह लिखता है कि बहुत लप्तेगें को प्रेम मत करना नहीं तो प्रेम की गहराई कम हो जाएगी। जैसे एक को प्रेम किया तो ठीक; फिर दो को किया तो आधा आधा बंट गया, फिर तीन को किया तो एक बटा तीन मिला एक एक को। ऐसे पचास सौ आदमियों के प्रेम में पड़ गये कि बस फैल गया सब। बहुत पतला हो जाएगा, गहराई न रह जाएगी।
फ्राँयड़ बिलकुल नासमझी की बात कह रहा है।
फ्राँयड़ यहूदी था। वह यहूदी कंजूसी उसके दिमाग में सवार है! तुम जितना प्रेम करोगे, उतना ज्यादा तुम प्रेम पाओगे। उतना प्रेम करने की क्षमता बढेगी। उतनी प्रेम की कुशलता बढ़ेगी। और जितना तुम प्रेम लुटाते रहोगे, उतना तुम पाओगे परमात्मा से नये— नये झरने फूट रहे हैं और प्रेम आता जाता है। दो और तुम्हारे पास ज्यादा होगा। रोको और तुम कृपण हो जाओगे और कंजूस हो जाओगे और सब मर जाएगा, सब सड़ जाएगा। और ध्यान रखना, जो चीज बड़ी आनंदपर्णू है बांटने में, अगर रुक जाए, सड़ जाए, तो वही तुम्हारे लिए रोग का कारण बन जाती है। जिन लोगों ने प्रेम को रोक लिया है, उनका प्रेम ही रोग बन जाता है, कैंसर बन जाता है।
अब तुम आ गये हो यहां भूल से आ गये। तुम गलत जगह आ गये। यहां मैं उलीचना सिखाता हूं। यहां मैं बांटना सिखाता हूं। यहां मैं खर्च करने का आनंद तुम्हें सिखाना चाहता हूं। और तुम पूछते हो, जब कुंड़लिनी या सक्रिय ध्यान में ऊर्जा जाग्रत होती है तो उसे नाचकर क्यों खत्म कर दिया जाता है? नाचने से ऊर्जा खत्म नहीं होती है। नाचने से ऊर्जा निखरती है। नाचने से ऊर्जा बंटती है। और जितनी बंटती है, उतनी तुम्हारे भीतर पैदा होती है। जितना सृजनात्मक व्यक्ति होता है उतना शक्तिशाली व्यक्ति होता है। तुमने अगर एक गीत गाया तो तुम दूसरा गीत गाने में समर्थ हो जाओगे। और दूसरा गीत पहले से ज्यादा गहरा होगा। फिर तुम तीसरा गीत गाने में समर्थ हो जाओगे, वह उससे भी ज्यादा गहरा होगा। जैसे जैसे गीत गाते जाओगे वैसे तुम पाओगे नयी तले उघड़ने लगी, नयी गहराइयां प्रकट होने लगीं, तुम्हारे भीतर नये आयाम छूने लगे।!
अथातो भक्ति जिज्ञासा
ओशो
No comments:
Post a Comment