मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन अपनी पत्नी को लेकर हवाई-अड्डे पर गया।
वहां सौ रुपये में पूरे गांव का चक्कर लगवाने की व्यवस्था थी। अनेक लोग
उड़े, वापिस लौट गये, पायलट देखता रहा कि मुल्ला नसरुद्दीन और उसकी पत्नी
दोनों खड़े विचार करते हैं; हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं। सौ रुपया! जब कोई भी
न रहा और सारे उड़नेवाले जा चुके तो वह पायलट उतर कर आया और उसने कहा कि
कंजूस मैंने बहुत देखे। अब तुम कब तक सोचते रहोगे? बंद होने का समय भी आ
गया।
दोनों नसरुद्दीन पति-पत्नी एक दूसरे की तरफ देखने लगे। बड़ी आकांक्षा कि एक दफा हवाई जहाज में उड़ लें; लेकिन सौ रुपये को छोड़ना!
आखिर पायलट को दया आ गई। उसने कहा, तुम एक काम करो। मैं तुम्हें मुफ्त
घुमा देता हूं, लेकिन एक शर्त है। और वह शर्त यह है कि तुम एक भी शब्द
बोलना मत। अगर तुम एक भी शब्द बीच में बोले, तो सौ रुपये देना पड़ेंगे।
नसरुद्दीन प्रसन्न हो गया और उसने कहा कि बिलकुल ठीक!
वे दोनों बैठे। पायलट ने बड़ी बुरी तरह खतरनाक ढंग से हवाई जहाज उड़ाया।
उलटा, नीचा, तिरछा, कलाबाजियां कीं, और बड़ा हैरान हुआ कि सब मुसीबत में वे
चुप रहे दोनों। कई दफा जान को खतरा भी आ गया होगा, उलटे हो गये, लेकिन वे
चुप ही रहे। नीचे उतर कर उसने कहा कि मान गये नसरुद्दीन! तुम जीत गये। पर
उसने कहा, ‘तुम्हारी पत्नी कहां है?’
नसरुद्दीन ने कहा, ‘ऐसा वक्त भी आया जब मैं बोलने के करीब ही था, लेकिन
संयम बड़ी चीज है। मेरी पत्नी तो गिर गई। तब मैं बिलकुल बोलने के करीब था
लेकिन संयम बड़ी चीज है, शास्त्रों में कहा है। मैंने बिलकुल सांस रोक कर
आंख बंद करके संयम रखा है। और संयम का फल सदा मीठा होता है। दोहरे फायदे
हुए। सौ रुपया भी बचा, पत्नी से झंझट भी मिटी। संयम का फल मीठा है।’
संयम का अर्थ है जबर्दस्ती। तो तुम यह भी कर सकते हो कि तुम्हारा मन तो
था शाही वस्त्र पहनने का और तुमने संयम से लंगोटी लगा ली। यह सादा जीवन
नहीं है। इसमें चेष्टा है। इसमें समझ नहीं है, इसमें प्रयास है। और तुम्हें
लंगोटी को थोपने के लिए अपने ऊपर निरंतर जद्दोजहद करनी पड़ेगी। मन की
आकांक्षा तो शाही वस्त्रों की थी। तुमने किसी प्रलोभन के वश, स्वर्ग, ईश्वर
का दर्शन, योग, अमृत, कुछ पाने की आकांक्षा में लंगोटी लगा ली।
ध्यान रहे, संयम सदा लोलुपता का अंग है। तुम कुछ पाना चाहते हो, इसीलिए
तुम्हें कुछ करना पड़ता है। सादगी लोलुपता से मुक्ति है। सादा आदमी वह है
जिसे लंगोटी लगाने में आनंद आ रहा है। वह कोई संयम नहीं है। उसके भीतर कोई
संघर्ष नहीं चल रहा है, कि पहनूं शाही वस्त्र, और वह लंगोटी लगा रहा है।
कोई लड़ाई नहीं है। सादा आदमी अपने भीतर लड़ता नहीं। और जो भी लड़ता है, वह
जटिल है।
दिया तले अँधेरा
ओशो
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