बुद्ध को वैराग्य उत्पन्न होने की जो बड़ी कीमती घटना है, वह मैं आपसे कहूं।
बुद्ध के पिता ने बुद्ध के महल में उस राज्य की सब सुंदर स्त्रियां
इकट्ठी कर दी थीं। रात देर तक गीत चलता, गान चलता, मदिरा बहती, संगीत होता
और बुद्ध को सुलाकर ही वे सुंदरियां नाचते-नाचते सो जातीं। एक रात बुद्ध की
नींद चार बजे टूट गई। एर्नाल्ड ने अपने लाइट आफ एशिया में बड़ा प्रीतिकर,
पूरा वर्णन किया है।
चार बजे नींद खुल गई। पूरे चांद की रात थी। कमरे में चांद की किरणें भरी
थीं। जिन स्त्रियों को बुद्ध प्रेम करते थे, जो उनके आस-पास नाचती थीं और
स्वर्ग का दृश्य बना देती थीं, उनमें से कोई अर्धनग्न पड़ी थी; किसी का
वस्त्र उलट गया था; किसी के मुंह से घुर्राटे की आवाज आ रही थी; किसी की
नाक बह रही थी; किसी की आंख से आंसू टपक रहे थे; किसी की आंख पर कीचड़
इकट्ठा हो गया था।
बुद्ध एक-एक चेहरे के पास गए और वही रात बुद्ध के लिए घर से भागने की
रात हो गई। क्योंकि इन चेहरों को उन्होंने देखा था; ऐसा नहीं देखा था।
लेकिन ये चेहरे असलियत के ज्यादा करीब थे। जिन चेहरों को देखा था, वे मेकअप
से तैयार किए गए चेहरे थे, तैयार चेहरे थे। ये चेहरे असलियत के ज्यादा
करीब थे। यह शरीर की असलियत है।
लेकिन जैसी शरीर की असलियत है, वैसे ही सभी सुखों की असलियत है। और
एक-एक सुख को जो एक्सरे मेडिटेशन करे, एक-एक सुख पर एक्सरे की किरणें लगा
दे, ध्यान की, और एक-एक सुख को गौर से देखे, तो आखिर में पाएगा कि हाथ में
सिवाय दुख के कुछ बच नहीं रहता। और जब आपको एक सुख की व्यर्थता में समस्त
सुखों की व्यर्थता दिखाई पड़ जाए, और जब एक सुख के डिसइलूजनमेंट में आपके
लिए समस्त सुखों की कामना क्षीण हो जाए, तो आपकी जो स्थिति बनती है, उसका
नाम वैराग्य है।
वैराग्य का अर्थ है, अब मुझे कुछ भी आकर्षित नहीं करता। वैराग्य का अर्थ
है, अब ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसके लिए मैं कल जीना चाहूं। वैराग्य का अर्थ
है, ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसके लिए मैं कल जीना चाहूं। ऐसा कुछ भी नहीं
है, जिसे पाए बिना मेरा जीवन व्यर्थ है।
वैराग्य का अर्थ है, वस्तुओं के लिए नहीं, पर के लिए नहीं, दूसरे के लिए
नहीं, अब मेरा आकर्षण अगर है, तो स्वयं के लिए है। अब मैं उसे जान लेना
चाहता हूं, जो सुख पाना चाहता है। क्योंकि जिन-जिन से सुख पाना चाहा, उनसे
तो दुख ही मिला। अब एक दिशा और बाकी रह गई कि मैं उसको ही खोज लूं, जो सुख
पाना चाहता है। पता नहीं, वहां शायद सुख मिल जाए। मैंने बहुत खोजा, कहीं
नहीं मिला; अब मैं उसे खोज लूं, जो खोजता था। उसे और पहचान लूं, उसे और देख
लूं।
वैराग्य का अर्थ है, विषय से मुक्ति और स्वयं की तरफ यात्रा।
चित्त दो यात्राएं कर सकता है। या तो आपसे पदार्थ की तरफ, और या फिर
पदार्थ से आपकी तरफ। आपसे पदार्थ की तरफ जाती हुई जो चित्त की धारा है,
उसका नाम राग है। पदार्थ से आपकी तरफ लौटती हुई जो चेतना है, उसका नाम
वैराग्य है।
कभी आपने ऐसा अनुभव किया, जब पदार्थ से आपकी चेतना आपकी तरफ लौटती हो?
सबको छोटा-छोटा अनुभव आता है वैराग्य का। लेकिन थिर नहीं हो पाता। थिर
इसलिए नहीं हो पाता कि वैराग्य का हम कोई अभ्यास नहीं करते हैं। राग का तो
अभ्यास करते हैं। वैराग्य का क्षण भी आता है, तो चूंकि अभ्यास नहीं होता,
इसलिए खो जाता है।
करीब-करीब ऐसे जैसे आपने कबूतर पालने वाले लोगों को देखा होगा, अपने घर
पर एक छतरी लगाकर रखते हैं। कबूतर आता है, तो छतरी पर बैठ पाता है। हमारे
ऊपर भी वैराग्य का कबूतर कई बार आता है, लेकिन कोई छतरी नहीं होती, जिस पर
बैठ पाए। फिर उड़ जाता है। अभ्यास, छतरी का बनाना है कि जब वैराग्य का कबूतर
आए, जब वैराग्य का पक्षी आए अपनी तरफ उड़कर, तो हमारे पास उसके बैठने की,
बिठाने की, निवास की जगह हो।
अभ्यास वैराग्य को थिर करने का उपाय है। वैराग्य तो सबके भीतर पैदा होता
है, अभ्यास थिर करने का उपाय है। वैराग्य तो सबके ऊपर आता है, अभ्यास उसे
रोक लेने का उपाय है, उसे प्राणों में आत्मसात कर लेने का उपाय है।
अभी हमारी जैसी स्थिति है, वह ऐसी है कि राग का तो हम अभ्यास करते हैं।
राग का हम अभ्यास करते है। हर राग व्यर्थ होता है, लेकिन अभ्यास जारी रहता
है। और वैराग्य कभी-कभी आता है राग की असफलता में से, लेकिन उसका कोई
अभ्यास न होने से वह कहीं भी ठहर नहीं पाता; हमारे ऊपर रुक नहीं पाता; वह
बह जाता है।
इसलिए कृष्ण कहते हैं, वैराग्य और अभ्यास।
गीता दर्शन
ओशो
No comments:
Post a Comment