तुम
बहुत बार जन्मे
हो और बहुत
बार ऐसे ही मर
गये! अवसर
तुमने कितना
गंवाया है—हिंसाब
लगाना
मुश्किल है!
अब और न गंवाओ।
यह कीमत चुका
दो। यह दुख से
थोड़ा गुजरना
पड़ेगा। और
जितने जल्दी
चुका दो, उतना
बेहतर है। यह
दुख ही
तपश्चर्या है।
यह दुख ही
साधना है। इस
दुख की सीढ़ी
से चढ़कर ही कोई
परमसुख को
उपलब्ध हुआ है।
और कोई उपाय
नहीं है। बचकर
नहीं जा सकते।
इसलिए
शास्त्र कहते
हैं कि देवता
भी देवलोक से
निर्वाण को
नहीं पा सकते।
पहले उन्हें
मनुष्य होना
पड़ेगा।
मनुष्य हुए
बिना कोई
बुद्धत्व को
उपलब्ध नहीं
हो सकता है, क्योंकि
मनुष्य
चौरस्ता है।
देवता
सुखी हैं।
शराब पी रहे
हैं।
अप्सराओं को
नचा रहे हैं।
और उसी तरह के
उपद्रव में
लगे हैं, जिसमें
तुम लगे हो।
कुछ फर्क नहीं
है! थोड़ा बड़े
पैमाने पर है
उनका जरा।
उनकी उम्र
लंबी होगी।
उनकी देह
सुंदर होगी।
मगर सब यही
जाल है, जो
तुम्हारा है, यही
ईर्ष्या यही
वैमनस्य है!
तुमने
कहानियां तो
पढ़ी हैं कि
इंद्र का
सिंहासन बड़े
जल्दी डोल
जाता है। कोई
तपश्चर्या
करता है, इंद्र
का सिंहासन
डोला! घबड़ाहट
चढ़ती है कि यह आदमी
कहीं इंद्र न
हो जाये! वही
राजनीति, वही
दाव—पेंच! और
इंद्र करते
क्या हैं? भेज
देते हैं
अप्सराओं को—मेनका
को, उर्वशी
को कि भ्रष्ट
करो इस तपस्वी
को। यह भ्रष्ट
हो जाए तो मैं
निश्चित सोऊ।
मगर क्या खाक
निश्चित सो
पाओगे! इतनी
बड़ी पृथ्वी है,
कोई न कोई
तपश्चर्या
करेगा, कोई
न कोई ध्यान
करेगा। नींद कहां?
देवता
भी दुखी हैं, उतने
ही जितने तुम।
लेकिन न
तुम्हें पता
है, न
उन्हें पता है।
वे भी बेहोश
हैं। इसलिए
शास्त्र ठीक
कहते हैं कि
मनुष्य हुए बिना.....।
मनुष्य के
चौराहे से तो
गुजरना ही
होगा। यह
चौराहा है। यहां
से पशु की तरफ
रास्ता जाता
है; यहां
मनुष्य की तरफ
रास्ता जाता
है; यहां
से देवत्व की
तरफ रास्ता
जाता है; और
यहां से
बुद्धत्व की
तरफ भी रास्ता
जाता है।
मनुष्य
चौराहा है।
चारों रास्ते यहां
मिलते हैं।
अगर तुम समझो, तो
जीवन एक परम
सौभाग्य है।
अगर तुम जागो,
तो मनुष्य
होने से
बुद्धत्व
होने की तरफ
मार्ग जा रहा
है; तुम
उसे चुन सकते
हो।
लेकिन
लोग शराब
पीयेंगे! अगर
दुखी होंगे, तो
शराब पीयेंगे।
क्यों आदमी
शराब पीता है—दुखी
होता है तो? भुलाने के
लिए। पशु हो
जायेगा शराब
पीकर।
जो
समझदार है, वह
ध्यान करता है।
वह ध्यान की
शराब पीता है।
वह समाधि की
तरफ बढ़ता है।
वह कहता है, ऐसे भुलाने
से क्या होगा!
भुलाने से दुख
मिटता तो नहीं।
फिर कल सुबह
होश आयेगा।
फिर दुख वहीं
के वहीं पाओगे।
और बड़ा हो
जायेगा।
रातभर
में दुख भी
बड़ा हो रहा है।
जब तुम सो रहे
हो,
तब दुख भी
बड़ा हो रहा है।
सुबह चिंताओं
के जाल और खड़े
हो जायेंगे।
कल जब तुमने
शराब पी थी, जितनी
चिंताएं थीं,
सुबह पाओगे—और
ज्यादा हो
गयीं, क्योंकि
शराब पीकर भी
तुम कुछ
उपद्रव करोगे
न! किसी को
गाली दोगे, किसी को
मारोगे, किसी
के घर में घुस
जाओगे। किसी
की स्त्री को
पकड़ लोगे। कुछ
न कुछ उपद्रव
करोगे! सुबह
तुम पाओगे—और
झंझटें हो
गयीं!
हो
सकता है सुबह
हवालात में
पाओ अपने को; कि
किसी नाली में
पड़ा हुआ पाओ।
कुत्ता मुंह
चाट रहा हो! कि
जीवन—जल छिड़क
रहा हो। और
झंझटें हो
गयीं! सुबह घर
पहुंचोगे, तो
पत्नी खड़ी है—मूसल
लिए हुए! इससे
निपटो! दफ्तर
जाओगे, वहां
झंझटें खड़ी
होंगी। हजार
भूल—चूके
होंगी।
क्योंकि नशा
सरकते—सरकते
उतरता है।
थोड़ी—सी छाया
बनी ही रहती
है। कुछ का
कुछ हो जायेगा।
कुछ का कुछ
बोल जाओगे।
कुछ का कुछ कर
गुजरोगे। और
चिंताएं बढ़
जायेंगी और
दुख बढ़
जायेंगे। कल
मुश्किल थी.....।
और हो सकता है
कि जेब ही कट
जाये!
बीमारियां थीं
और बीमार हो
जाओगे!
जिंदगी
वैसे ही उलझी
हुई थी, शराब
से सुलझ नहीं
जायेगी।
गालियां दे
दोगे। झगड़े कर
लोगे। कुट
जाओगे, पिट
जाओगे। किसी
को पीट दोगे, छुरा मार
दोगे—पता नहीं
बेहोशी में
क्या कर
गुजरोगे! इतना
तय है कि
चिंताएं कम
नहीं होंगी; बढ़ जायेंगी।
संताप गहन हो
जायेगा। फिर
और शराब पीना—इसको
भुलाने के
लिए! अब तुम
पड़े दुष्ट—चक्र
में।
एक
ही उपाय है—जागो, होश
से भरो।
अगर
दुख हैं, तो
उनका भी उपयोग
करो। दुख का
एक ही उपयोग
किया जा सकता
है—और वह यह है
कि साक्षी बनो।
और जितना
साक्षी— भाव
बढ़ेगा, उतना
दुख क्षीण
होता जायेगा।
इधर भीतर
साक्षी जगा कि
रोशनी हुई, दुख कटा, अंधेरा
कटा।
जिस
दिन तुम परम
साक्षी हो जाओगे, द्रष्टा
मात्र, उस
दिन जीवन में
कोई दुख नहीं।
उस दिन जीवन
परमात्मा है!
ज्यूं
था त्युं
ठहराया
ओशो
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