अगर मेरा संन्यास फैला….. और फैलेगा; क्योंकि विधायक है। जीवन के
स्वीकार पर खड़ा है। तो जैसे तुम फूल के सौंदर्य की प्रशंसा करते हो वैसे ही
किसी दिन पुरुषों के, स्त्रियों के सौंदर्य की भी प्रशंसा कर सकोगे। और
प्रशंसा में जरा भी अपराध और भय का भाव नहीं होगा। क्योंकि परमात्मा की ही
प्रशंसा है। हम किसी की भी स्तुति करें, उसी की स्तुति है। नदी किसी भी
दिशा में बहे, सागर पहुंच जाती है। सभी स्तुतियां उसी की तरफ पहुंच जाती
हैं। स्तुति मात्र उसकी है।
मैंने तुम्हें भोजन से नहीं तोड़ा है कि तुम यह मत खाना, यह मत पीना; कि अगर कहीं तुमने यह खा लिया तो पाप हो जाएगा, नरक में पड़ोगे।
कैसे कैसे लोग हैं! कोई आलू खा लेगा तो नरक में जाएगा। कोई निर्दोष
टमाटर से डरा हुआ है। अब टमाटर से ज्यादा निर्दोष प्राणी देखा तुमने दुनिया
में ? टमाटर बेचारा! एकदम भोला भाला। इससे भोली भाली कोई चीज ही नहीं
होती। इसको खाने से तुम कैसे नरक चले जाओगे? लेकिन टमाटर खाने से कुछ लोग
डरते हैं। उसका रंग मांस जैसा है। बस रंग ही मांस जैसा है, घबड़ाहट हो गई;
भय हो गया।
डरने की तो तुम बात ही मत पूछो कि लोग किस किस चीज से डरते हैं। अगर तुम
सारे डरों को इकट्ठा कर लो तुम्हें इसी वक्त मरना पड़े; तुम जी नहीं सकते।
क्वेकर ईसाई हैं, वे दूध पीने से डरते हैं। तुम कहोगे, यह तो हद हो गई। वे
दही नहीं खाते, वे मक्खन नहीं छूते क्योंकि यह हिंसा है।
बात में अर्थ तो है। क्योंकि गाय के थन में जो दूध है, वह उसके बच्चों
के लिए है, तुम्हारे लिए नहीं है। तुम्हें किसने हक दिया कि तुम उसके
बच्चों का दूध छीनकर पी जाओ। जरा सोचो तो कि यही तुम्हारी स्त्रियों के साथ
किया जाए, कि बच्चे को तो दूध न मिले और कोई भी आकर बच्चे की मां का दूध
पी जाए तो इसको हिंसा कहोगे कि नहीं कहोगे? तुम गाय का दूध पी रहे हो बड़े
मजे से, कह रहे हो दुग्धाहार कर रहे हैं और बछड़े का क्या हुआ?
लोग बछड़ों को मार डालते हैं और गाय को धोखा देने के लिए झूठा बछड़ा खड़ा
कर देते हैं।
क्वेकर कहते हैं, दूध खून का हिस्सा है। इसीलिए तो दूध पीने से खून बढ़
जाता है। तो दूध खून है। दूध पीना खून पीना है। यह तो पाप हो गया। अब मारे
गए! अब क्या करोगे? दही ले नहीं सकते, दूध ले नहीं सकते, घी ले नहीं सकते,
मक्खन ले नहीं सकते। गए सब रसगुल्ले! गए सब संदेश! सारी मिठाइयां पाप हो
गईं।
तुम जरा सारे धर्मों का हिसाब तो लगाकर देख लो। कुछ नहीं बचेगा खाने को।
उधर जैन तेरापंथी है, वह नाक पर पट्टी बांधे बैठा है कि हिंसा न हो जाए।
श्वास से हिंसा हो रही है। गरम श्वास से कीड़े—मकोड़े हवा में छोटे—छोटे मर
जाते हैं, वे मर न जाएं। लेकिन तुम्हारे जीने में ही हिंसा हो रही है।
तुम्हारे शरीर के भीतर प्रतिपल न मालूम कितने जीवाणु मर रहे हैं। वे ही तो
जीवाणु मरकर तुम्हारे बाल बनकर निकलते हैं, नाखून बनकर निकलते हैं। इसलिए
तो बाल को काटने से दुःख नहीं होता क्योंकि वे मरे हुए जीवाणु हैं। नाखून
काटने से दुःख नहीं होता, खून नहीं बहता क्योंकि वे मरे हुए जीवाणुओं की
लाशें हैं; हड्डियां हैं। तुम्हारे भीतर प्रतिपल लाखों जीवाणु मर रहे हैं।
और इसलिए तो रोज भोजन की जरूरत है ताकि नया भोजन नए जीवाणु दे दे।
एकेक शरीर में सात सात करोड़ जीवाणु हैं। पूरी बस्ती हो तुम। पुराने
शास्त्रों ने ठीक ही तुमको पुरुष कहा है। पुरुष का मतलब है, पुर के बीच में
बसा। एक पूरा नगर तुम्हारे चारों तरफ है। सात करोड़! बंबई भी छोटी है। सात
करोड़ जीवाणु, उनके बीच में आप बसे हैं। और उनमें प्रतिपल मरना हो रहा है,
जीना हो रहा है, सब चल रहा है। चलते हो, उठते हो, बैठते हो, उसमें हिंसा हो
रही है। करवट लेते हो, उसमें हिंसा हो रही है। श्वास लेते हो, उसमें हिंसा
हो रही है। जियोगे कैसे? अगर तुम सारे धर्मों का हिसाब करके चलो तो जी ही
नहीं सकते। और ये ही धर्म अब तक आदमी को सिखाते रहे हैं। आदमी की जिंदगी
में जहर घोल दिया है।
मैं तो आदमी की जिंदगी को मुक्ति दे रहा हूं। मैं तो तुमसे कह रहा हूं,
जो परमात्मा ने दिया है उसे भोगो। और मैं तो तुमसे यह कह रहा हूं, कोई मरता
ही नहीं। आत्मा अमर है। कहां की हिंसा, कैसी हिंसा? चिंता छोड़ो। शांति से,
सरलता से, स्वभाव से जियो। और इस जीवन को परमात्मा की भेंट समझकर अनुग्रह
मानो। इस भेंट में ही परमात्मा को खोजो। अगर संगीतज्ञ को खोजना हो तो उसके
संगीत में ही खोजना पड़ेगा। अगर सन्नाटा को खोजना हो तो उसकी सृष्टि में ही
खोजना पड़ेगा। अगर कवि को खोजना हो तो उसके काव्य में ही खोजना पड़ेगा, और
कहां पाओगे? वहीं से सूत्र मिलेंगे, वहीं से सेतु बनेगा।
नाम सुमिर मन बाँवरे
ओशो
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