एक मित्र मेरे शराब पीते हैं। उनकी पत्नी तीस साल से उनके पीछे पड़ी है कि
शराब छोड़ो! वह मेरे पास भी बार बार आकर कहती है कि आपकी ये मानते हैं, आप
अगर एक दफा कह दो, ये जरूर छोड़ेंगे। मगर आप चुप बैठे हो, आप कहते ही नहीं!
मैंने कहा, तू तीस साल से कह रही है, कुछ परिणाम न हुआ, तू मेरे शब्द भी
खराब क्यों करवाना चाहती है; व्यर्थ जाएंगे। उसने कहा कि नहीं जाएंगे, वे
भी कहते हैं कि अगर भगवान कह दें तो मैं छोड़ दूंगा; क्योंकि उनको पक्का
भरोसा है कि आप कहेंगे ही नहीं। आप एक दफा कह दो, देख तो लें, एक यह भी
प्रयोग हो ले!
मैंने उससे कहा, तो एक काम कर, तू तीस साल से कह रही है कि शराब छोड़ दो।
उसने कहा, हां। तो मैंने कहा, पहले तू यह कर कि तू यह कहना छोड़ दे सात दिन
के लिए सिर्फ। अगर सात दिन तूने यह बात नहीं उठायी अपने पति से, तो आठवें
दिन मैं तेरे पति से कहूंगा। उसने कहा, राजी। अरे, यह कोई बड़ी कठिन बात है!
सात ही दिन की बात है न, आठवें दिन आप कहोगे? आठवें दिन बिलकुल पक्का है;
सात दिन तू कहना ही मत, बात ही मत उठाना।
और पति को बुलाकर मैंने कहा कि यह वायदा हुआ है। यह सात दिन का सौदा हुआ
है। सात दिन में अगर यह एक बार भी वचन तोड़ दे, तुम फौरन मुझे खबर करना। और
नोट करते जाना कितनी दफे वचन तोड़ा। उनकी पत्नी बोली कि अरे, सात दिन का
सवाल है, सम्हाल लूंगी। मगर जिस ढंग से वह कह रही थी, ‘सम्हाल लूंगी’ और
उसके चेहरे पर पसीना दिखायी पड़ रहा था, मैंने कहा कि तू देख, सोच समझ की
बात कर! अरे, उसने कहा, मेरा क्या बिगड़ता है, नहीं कहूंगी! फायदा भी क्या
है तीस साल तो कहकर देख लिया, चलो सात दिन का ही तो सवाल है! कुल सात दिन
की ही तो बात है।
मगर वह तीसरे दिन मेरे पास आ गयी। उसने कहा कि न मैं सो सकती, न मैं खाना
खा सकती, मेरा सब गड़बड़ हो गया है, बिना कहे मैं नहीं रह सकती! मैं तो
कहूंगी! मैंने कहा, अब तू जरा सोच; जो आदमी तीस साल से शराब पी रहा है,
उसको तू छुड़वाने की कोशिश कर रही है और तूने तो शराब पी ही नहीं, सिर्फ
शराब छुड़वाने का अभ्यास तुझे हो गया है हालाकि फायदा भी कुछ नहीं हुआ तीस
साल में। उस अनुभव से भी तुझे कुछ सीख नहीं आयी। और मैंने कुछ ज्यादा मांग न
की थी, सिर्फ सात दिन की और तू चाहती है कि तेरा पति जिंदगीभर के लिए शराब
छोड़ दे! अब जरा होश की बात कर। तेरा तो कुल इतना हां, तेरा क्या जाता है,
तू कोई शराब तो पीती नहीं! तेरे कोई शरीर में तो शराब घुस नहीं गयी है!
तेरे कोई शरीर की जरूरत तो हो नहीं गयी है! तू तो सिर्फ कहती है, बकवास ही
करती है और तीस साल का अनुभव यह है कि उससे कुछ फायदा भी नहीं है। फिर भी
तू सात दिन चुप नहीं रहती। तू कहती है कि मैं सो भी नहीं सकती। बस मुझे एक
ही धुन सवार रहती है। और मैं डरी रहती हूं कि कहीं निकल न जाए मुंह से।
खाना खाने बैठते हैं ये तो मैं अपने को सम्हाल लेती हूं। इतना तनाव मुझसे
नहीं सहा जाता। मैं तो कहूंगी! मैंने कहा, तू कहेगी तो तूकह! लेकिन फिर
इतना पक्का समझ, लेकिन जब तू कहना नहीं छोड़ सकती तो यह बेचारा शराब कैसे
छोडेगा! और इसलिए तो मैं नहीं कह रहा हूं।
आदमी हर चीज का अभ्यासी हो जाता है। पचहत्तर साल तक जिसने टाला है, पचहत्तर
साल तक जिसने टालने का अभ्यास किया है, तुम सोचते हो पचहत्तर साल के बाद
एकदम से वह संन्यस्त हो जाएगा। वह पचहत्तर जन्मों तक टालेगा। मगर इन
सूत्रों ने भांति दे दी इनके अर्थों ने, व्याख्याओं ने कि मरने के बाद
ब्रह्मलोक उपलब्ध होता है। जिंदगी में तो कुछ होनेवाला नहीं है। जब जिन्दगी
में कुछ होनेवाला नहीं है, तो क्यों व्यर्थ परेशान होओ! अरे, अभी तो खा
लो, पी लो, मजा कर लो, यह चार दिन की चांदनी है, फिर देखेंगे, निपट लेंगे
बाद में! और कोई हम अकेले थोड़े ही हैं, इतने लोग हैं, जो सब पर गुजरेगी वह
हम पर भी गुजरेगी। और हम से भी बड़े बड़े पापी पड़े हैं। अगर कतार भी लगेगी,
‘क्यू भी लगेगा कयामत के दिन निर्णय का, तो हमारा नम्बर तो न मालूम कब
आएगा!
अजहुँ चेत गंवार
ओशो
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