उद्दालक ने अपने बेटे श्वेतकेतु को कहा था–जब वह लौटा ब्रह्मविद्या की
शिक्षा पूरी करके, वेदों को कंठस्थ करके–तो उद्दालक ने अपने बेटे को कहा था
कि तूने वह भी जाना या नहीं, वह एक, जिसको जानने से सब जान लिया जाता है?
श्वेतकेतु ने कहा: कौन-सा एक? मैंने चारों वेद जाने, मैंने सारे उपनिषद
जाने, मैंने सब शास्त्र पढ़े, मगर आप किस एक की बात कर रहे हैं?
उद्दालक उदास हो गया, उसने कहा: बेटा तू वापिस जा, अभी तूने जो जाना, वह
जानकारी है। उस एक को जानकर आ, जिसको जान लेने से कोई सभी जानने के पार हो
जाता है। और मैं तुझे याद दिला दूं कि हमारे कुल में नाममात्र के ब्राह्मण
नहीं होते रहे हैं, हमारे कुल में वस्तुतः ब्राह्मण होते रहे हैं। पूछा
श्वेतकेतु ने: क्या अर्थ है वस्तुतः ब्राह्मण का? तो उसने कहा: जो ब्रह्म
को जान ले, वह ब्राह्मण।
बुद्ध ने भी यही कहा कि जो ब्रह्म को जान ले, वही ब्राह्मण।
महावीर ने भी यही कहा: जो ब्रह्म को जान ले, वही ब्राह्मण।
ब्राह्मण घर में पैदा होने से कोई ब्राह्मण नहीं होता। यह एक मूढ़ता की
बात चल रही है कि ब्राह्मण घर में पैदा हो गए तो ब्राह्मण हो गए! इस मूढ़ता
का उत्तर गांधी ने दूसरी मूढ़ता से दिया कि अछूत हरिजन हैं। भंगी के घर में
पैदा होने से कोई हरिजन नहीं हो जाता। “हरिजन’ बड़ा बहुमूल्य शब्द है; इसे
मत लथेड़ो! हां, अछूत मिटना चाहिए; लेकिन एक बीमारी को दूसरी बीमारी से नहीं
मिटाया जा सकता, और एक अतिशयोक्ति को दूसरी अतिशयोक्ति से नहीं मिटाया जा
सकता। न तो ब्राह्मण ब्राह्मण है, न हरिजन हरिजन है। दोनों आदमी हैं।
ब्राह्मण से ब्राह्मण शब्द छीन लो, हरिजन से हरिजन शब्द छीन लो, दोनों को
आदमी रहने दो। हां, जिस दिन वे जागेंगे और परमात्मा को जानेंगे, उस दिन फिर
उनको ब्राह्मण कहो या हरिजन कहो, एक अर्थ ही होता है।
हरिजन बड़ा प्यारा शब्द है, उसे खराब कर दिया! उसे राजनीति की गंदगी में घसीट दिया।
कहै वाजिद पुकार
ओशो
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