आज पश्चिम में महर्षि महेश योगी के ट्रान्सेन्डेन्टल मेडिटेशन का जोर से
प्रचार है। लोरी से ज्यादा नहीं है वह। जो भी किया जा रहा है, वह सिर्फ
इतना है कि एक शब्द दिया जा रहा है, एक मंत्र दिया जा रहा है–इसे दोहराये
चले जाओ। इस दोहराने से तंद्रा पैदा होती है।
पूरब में इतना प्रभाव नहीं पड़ रहा है। भारत में कोई प्रभाव नहीं है,
अमरीका में बहुत प्रभाव है, कारण? अमरीका में नींद खो गयी है, भारत में अभी
भी लोग सो रहे हैं।
अमरीका में नींद सबसे बड़ा सवाल हो गया है। बिना ट्रैंक्विलाइजर के सोना
मुश्किल है। फिर धीरे-धीरे ट्रैंक्विलाइजर का भी शरीर आदी हो जाता है। फिर
उनसे भी सोना मुश्किल है। और नींद इतनी ज्यादा व्याघात से भर गयी है कि
ट्रान्सेन्डेन्टल मेडिटेशन, भावातीत-ध्यान जैसे प्रयोग फायदा पहुंचा सकते
हैं, और नींद आ सकती है।
लेकिन नींद ध्यान नहीं है, नींद मूर्च्छा है। इसके अच्छे परिणाम भी हो
सकते हैं। नींद स्वास्थ्यकृत है, स्वास्थ्य को देगी, थोड़ा सुख भी देगी।
नींद के बाद थोड़ा हलकापन भी लगेगा। और सच्चाई तो यह है कि साधारण नींद की
अपेक्षा मंत्र के द्वारा जो नींद आती है, वह ज्यादा गहरी होती है। क्योंकि
मंत्र के द्वारा जो नींद आती है, वह हिप्नोसिस है, वह सम्मोहन है।
हिप्नोसिस शब्द का अर्थ भी निद्रा ही होता है–चेष्टा से पैदा की गयी
निद्रा; कोशिश से लायी गयी निद्रा; और मन के तंतुओं को शिथिल करके लायी गयी
निद्रा।
आपको जब रात नींद आती, तो कारण आप जानते हैं क्या होता है? कारण यह होता
है कि मन के तंतु खिंचे होते हैं, विचार में लगे होते हैं। इतने विचार में
लगे होते हैं कि खून दौड़ता ही चला जाता है। इस खून के दौड़ने के कारण नींद
मुश्किल हो जाती है। इसलिए बिना तकिये के आप सोएं तो नींद नहीं आती,
क्योंकि खून सिर की तरफ दौड़ता रहता है। तकिया आप रख लें तो खून सिर की तरफ
नहीं दौड़ता, नहीं दौड़ने के कारण जल्दी नींद आ जाती है।
इसलिए जैसे-जैसे लोग बौद्धिक होते जाते हैं, वैसे-वैसे तकियों की संख्या
बढ़ती जाती है। जंगली आदमी बिना तकिये के सो सकता है। जानवरों को तकिये की
कोई फिक्र ही नहीं है। जंगली आदमी सोच भी नहीं सकता कि तकिये की क्या जरूरत
है। बड़ी गहरी नींद सोता है। असल में विचार न होने से खून की गति मस्तिष्क
में वैसे ही कम होती है। लेकिन आपके मन में इतने विचार चल रहे होते हैं, कि
जब तक विचार चल रहे होते हैं, तब तक खून दौड़ता रहता है। क्योंकि बिना खून
दौड़े विचार नहीं चल सकते।
तो मंत्र के द्वारा ये विचार बंद हो जाते हैं। और मंत्र पुनरुक्ति हैं
एक शब्द की। एक शब्द के दोहराने से मन के तंतु शिथिल होने लगते हैं। शिथिल
होने से निद्रा आ जाती है। अगर आपको कोई भी एक मोनोटोनस वातावरण दिया जाये,
वह नींद के लिए अच्छा होता हैं। मोनोटोनस चाहिए।
आपका सोने का जो कमरा है, मनोवैज्ञानिक कहते हैं, बहुत-से रंगों से उसको
नहीं रंगना चाहिए। क्योंकि बहुत रंग मन को उत्तेजित करते हैं। एक रंग होना
चाहिए–और वह भी मोनोटोनस, जिससे ऊब आये, उदासी आये, तंद्रा मालूम पड़े।
कमरे में ज्यादा चीजें नहीं होनी चाहिए।
और हर आदमी के सोने का रिचुअल होता है। वह उसी को रोज दोहराता है। जैसे
छोटे बच्चे हैं–कोई छोटा बच्चा अपनी गुड्डी को हाथ में पकड़कर सो जाता है;
कोई छोटा बच्चा अपने अंगूठे को मुंह में ले लेता है। वह मोनोटोनस हो गया
है। वह रोज वही करता है। अगर आप उसका अंगूठा उसके मुंह से निकाल लें, तो
उसकी नींद तोड़ देंगे। वह जैसे ही अंगूठा मुंह में डाल लेता है, अंगूठा
मंत्र हो जाता है। वह ऊब हो गयी। वही पुराना अंगूठा रोज-रोज–वह सो जाता है।
आप ऐसा मत सोचना कि छोटे बच्चे ही ऐसा करते हैं। आपका भी क्रियाकाण्ड
है। हर आदमी का क्रियाकाण्ड है। सोते वक्त वह वही क्रियाकाण्ड करेगा, उसके
बाद नींद आ जायेगी। नींद आ जायेगी, अगर आपने वही क्रियाकाण्ड किया।
इसलिए नये कमरे में नींद नहीं आती, क्योंकि मोनोटोनी टूट जाती है। नये
मकान में नींद नहीं आती। नया आदमी कमरे में सो रहा हो, तो जरा अड़चन होती
है। वही पत्नी सो रही हो, वही पति सो रहा हो, वही घुर्राटा चल रहा हो सदा
का–ऊब पैदा होनी चाहिए, नींद का सूत्र है। जरा भी नयी चीज अड़चन पैदा करती
है।
तो मन को कुछ लोग उबाकर मूर्च्छित कर लेते हैं। ऐसे लोग, महावीर जिसको
सिद्धावस्था कह रहे हैं, उस तक कभी भी नहीं पहुंच सकते। ये दो ढंग हैं।
दबानेवाला विक्षिप्त हो जाता है, सुलानेवाला धीरे-धीरे सुस्त हो जाता है।
वह शांत भला दिखाई पड़ने लगे, लेकिन उसकी शांति मुरदा है, मरे हुए आदमी की
शांति है, मरघट की शांति है। वह कोई जीवंत शांति नहीं है, जहां भीतर जीवन
प्रवाह ले रहा है और अशांति न हो। इन दो बातों से बचना जरूरी है। लेकिन वही
बच सकता है, जो मन का स्वभाव समझ ले।
महावीर वाणी
ओशो
No comments:
Post a Comment