Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Sunday, October 13, 2019

मेरी कामवासना नहीं जाती। क्या करूं?




हरिकृष्णदास ब्रह्मचारी,

ब्रह्मचर्य के कारण ही नहीं जाती होगी। वासना गई नहीं, और ब्रह्मचारी तुम हो कैसे गए? वासना जाए तब ब्रह्मचर्य है। लेकिन लोग उलटे कामों में लगे हैं: पहले ब्रह्मचर्य की कसमें खाते हैं, फिर वासना को हटाने में लगते हैं। ऐसे नहीं होगा। ऐसा जीवन का नियम नहीं है। तुम जीवन के नियम के विपरीत चलोगे तो हारोगे, दुख पाओगे। और तब तुम एक मूर्च्छा में जीओगे।

अब तुम मान रहे हो कि मैं ब्रह्मचारी हूं। कसम खा ली है, तो ब्रह्मचारी हूं। मगर कसमों से कहीं मिटता है कुछ? कसमों से कहीं कुछ रूपांतरित होता है? अब ऊपर-ऊपर ढोंग करोगे पाखंड का, ब्रह्मचर्य का झंडा लिए घूमोगे, और भीतर? भीतर ठीक इससे विपरीत स्थिति होगी। यह दुनिया बड़ी विचित्र है, हरिकृष्णदास ब्रह्मचारी।

लास एंजिल्स के एक बाईस वर्षीय युवक ने अखबार में एक विज्ञापन दिया कि मैं अकेला हूं और एक ऐसी लड़की की तलाश में हूं जो मेरे साथ दक्षिण अमेरिका की यात्रा पर चल सके। बाक्स नंबर के साथ दिए इस विज्ञापन के जवाब में केवल एक पत्र आया। जानते हैं, वह किसका था? उसी युवक की अति धार्मिक विधवा मां का। अति धार्मिक विधवा मां! मगर चूंकि बाक्स नंबर था, उसे क्या पता कि अपने ही बेटे को उत्तर दे रही है। पाखंड कहीं न कहीं से खुलेगा ही, खुलना अनिवार्य है।

दादा चूहड़मल फूहड़मल नशे की पीनक में ऊंघ रहे थे। मैं पास ही बैठा अखबार पढ़ रहा था। एक खबर पढ़ कर मैंने कहा, दादा, अरे देखो किसी ने कुएं में गिर कर जान से हाथ धो लिए।

दादा बोले, कोई पागल था, अरे जब कुएं में गिर ही गया तो जान से हाथ क्यों धोए, पानी से धो लेता!
होश नहीं है, एक बेहोशी है। अब तुम कम से कम अपने को ब्रह्मचारी लिखना तो बंद करो! इतना तो कर ही सकते हो। कामवासना जाए या न जाए, कम से कम ब्रह्मचर्य को तो जाने दो। इतना ही कर लिया तो बहुत। मगर दो-दो नाव पर सवार हो, बहुत मुश्किल में पड़ोगे। दो-दो घोड़ों पर सवार होओगे, अड़चन आएगी। बहुत अड़चन आएगी।

फादर पैरट नाम के एक ईसाई पादरी इस बात पर अति क्रुद्ध थे कि मैंने पोप के इस वचन की आलोचना क्यों की कि स्वयं की पत्नी को वासनामयी नजरों से देखना पाप है। फादर पैरट ने एक संन्यासी स्वामी सत्यानंद से कहा, सुनो स्वामी, तुम्हारे भगवान ने ठीक नहीं किया जो पोप की निंदा की। पोप कहीं गलत बोल सकते हैं? जो भी व्यक्ति अपनी बीबी को कामुक नजरों से देखेगा वह निश्चित ही नरक में पाप का फल भोगेगा।

फिर कुछ दिनों बाद ऐसा संयोग हुआ कि सत्यानंद ब्लू डायमंड में नाश्ता कर रहे थे, उन्होंने देखा कि उनकी बगल में ही टेबल पर वेश बदल कर साधारण कपड़े पहने फादर पैरट बैठे हुए हैं और टकटकी लगा कर सामने बैठी एक सुंदर युवती को इस तरह देख रहे हैं, मानो अभी इनकी आंखों से लार टपकने वाली है। सत्यानंद ने आश्चर्य से कहा, हलो फादर, गुड माघनग! आप यहां क्या कर रहे हैं? क्या आप पोप की शिक्षा भूल गए कि अपनी बीबी को वासना की दृष्टि से देखना भी पाप है?

फादर पैरट एक क्षण को तो सकपका गए, फिर सम्हल कर बोले, मगर स्वामी, तुम यह क्यों भूल रहे हो कि यह स्त्री मेरी बीबी नहीं है!

फिर आदमी तर्क निकालता है। फिर एक से एक अर्थ निकालता है। फिर बचने के उपाय निकालता है।

पहली तो बात यह समझ लो कि इस ब्रह्मचर्य को जाने दो--यह दो कौड़ी का ब्रह्मचर्य। लेकिन अहंकार इस तरह की सजावटें पसंद करता है।
एक जिज्ञासु खट्टमल ने दादा चूहड़मल फूहड़मल से पूछा कि दादा, एक प्रश्न तो बताओ। मेरा बेटा मुझे बहुत परेशान किए हुए है, बार-बार पूछता है और मैं उत्तर नहीं दे पाता।

दादा ने कहा, पूछो-पूछो। अरे जिज्ञासा न करोगे तो ज्ञान कैसे होगा? क्या प्रश्न है?

खट्टमल बोले, मेरा बेटा मुझसे पूछता है कि पाजामा एक वचन है या बहुवचन?

दादा कुछ सोचे, आंख बंद करके धारणा साधी, धारणा से ध्यान मजबूत किया, ध्यान से समाधि मजबूत की, फिर बोले, बच्चा, ऊपर से एक वचन और नीचे से बहुवचन।

आदमी को अपनी रक्षा तो करनी ही पड़ेगी।

दादा चूहड़मल फूहड़मल के सत्संगी खट्टमल को कुछ दिनों से बुखार आ रहा था। दादा गए देखने, बोले, बच्चा, अब बुखार का क्या हाल है?

खट्टमल ने कहा, दादा, अब बुखार तो टूट गया है, अब केवल कमर में दर्द है।

दादा बोले, घबड़ाओ मत, ईश्वर ने चाहा तो वह भी टूट जाएगी।

ज्ञानियों से बचो। किसी ज्ञानी के चक्कर में पड़े हो। नहीं तो यह ब्रह्मचारी कैसे हो गए तुम? पहले तो कामवासना जानी चाहिए, फिर ब्रह्मचर्य तो अपने आप आ जाएगा; लाना तो नहीं पड़ता है। मगर कोई ज्ञानी का सत्संग कर रहे हो; उसने तुम्हें उलझन में डाल दिया, फांसी लगा दी।
एक दिन दादा चूहड़मल फूहड़मल सत्संग करवा रहे थे। बोले कि कल रात मैं दो बजे तक शास्त्रों का अध्ययन करता रहा। एक गोपी से न रहा गया और उसने कहा, दादा, अरे झूठ तो न बोलो। रात तो कल ग्यारह बजे के बाद सारे गांव की बिजली ही चली गई थी।

दादा बोले, चली गई होगी, मैं तो शास्त्र-अध्ययन में इतना मगन था कि मुझे पता ही नहीं चला कि बिजली कब चली गई।

थोड़ी होश की बात करो। इतने मगन न हो जाओ।

कामवासना जीवन की एक अनिवार्यता है; अनुभव से जाएगी, कसमों से नहीं; ध्यान से जाएगी, व्रत-नियम से नहीं। छोड़ना चाहोगे, कभी न छोड़ पाओगे, और जकड़ते चले जाओगे। इसलिए पहली तो बात, यह छोड़ने की धारणा छोड़ दो। जो ईश्वर ने दिया है, दिया है। और दिया है तो कुछ राज होगा। इतनी जल्दी न करो छोड़ने की, कहीं ऐसा न हो कि कुंजी फेंक बैठो और फिर ताला न खुले।

कामवासना कोई पाप तो नहीं। अगर पाप होती तो तुम न होते। पाप होती तो ऋषि-मुनि न होते। पाप होती तो बुद्ध महावीर न होते। पाप से बुद्ध और महावीर कैसे पैदा हो सकते हैं? पाप से कृष्ण और कबीर कैसे पैदा हो सकते हैं? और जिससे कृष्ण और कबीर, बुद्ध और महावीर, नानक और फरीद पैदा होते हों, उसे तुम पाप कहोगे? जरूर देखने में कहीं चूक है, कहीं भूल है।

कामवासना तो जीवन का स्रोत है। उससे ही लड़ोगे तो आत्मघाती हो जाओगे। लड़ो मत, समझो। भागो मत, जागो। मैं नहीं कहता कि कामवासना छोड़नी है; मैं तो कहता हूं समझनी है, पहचाननी है। और एक चमत्कार घटित होता है; जितना ही समझोगे उतनी ही क्षीण हो जाएगी, क्योंकि कामवासना का अंतिम काम पूरा हो जाएगा। कामवासना का अंतिम काम है तुम्हें आत्म-साक्षात्कार करवा देना। 

सहज आसिकी नाहीं 

ओशो 

No comments:

Post a Comment

Popular Posts