यह दोनों हैं--हां और नहीं, दोनों--और जीवन की
समस्याओं के लिए सदा ऐसा ही है। एक अर्थ में हर बात पूर्व-निर्धारित है--एक ढंग से
ऐसा ही है। तुम्हारे भीतर जो कुछ भी भौतिक है, तुम्हारे भीतर
जो कुछ भी पदार्थ का है तुम्हारे भीतर जो कुछ भी मानसिक है वह पूर्व-निर्धारित है।
और वह सभी कुछ जिसका कहीं भी कोई कारण हो पूर्व-निर्धारित होता है।
लेकिन फिर भी तुम्हारे पास कुछ ऐसा है जो सदा अनिर्धारित रहता
है और जिसकी भविष्यवाणी कभी नहीं की जा सकती है और वह है तुम्हारी चेतना।
इसलिए यह निर्भर करता है--अगर तुमने अपने शरीर और अपने भौतिक अस्तित्व से बहुत अधिक तादात्म्य कर रखा है तो उसी अनुपात में तुम्हारा निर्धारण कारण के नियम से होता है। तब तुम एक यत्र होते हो—जैव-वैज्ञानिक यंत्र। लेकिन अगर तुमने अपने भौतिक शारीरिक--इसमें मन और शरीर दोनों शामिल हैं अस्तित्व के साथ तादात्म्य नहीं किया हुआ है अगर तुम अपने आप को थोड़ा सा भिन्न अलग, ऊपर इनके पार का अनुभव कर सको--तो उस पार की वह चेतना कभी पूर्व-निर्धारित नहीं होती।
यह सहजस्फूर्त मुक्त होती है। चेतना का अर्थ है स्वतंत्रता और पदार्थ
का अर्थ है : परतंत्रता। पदार्थ परतंत्रता का क्षेत्र है और चेतना स्वतंत्रता का।
इसलिए यह तुम पर निर्भर करता है कि तुम अपने आप को कैसे परिभाषित करते हो। अगर तुम
कहते हो कि 'मैं
सिर्फ शरीर हूं' तो मैं कह दूंगा हां तुम्हारे बारे में हर
बात पूर्व-निर्धारित है।
इसलिए वह व्यक्ति जो कहता है कि मनुष्य मात्र केवल एक शरीर है, कभी यह नहीं कह सकता है कि मनुष्य का जीवन पूर्व-निर्धारित नहीं है। यह बात थोड़ी सी विचित्र लग सकती है क्योंकि आमतौर से वे लोग जो चेतना में विश्वास नहीं करते, पूर्व-निर्धारण में भी विश्वास नहीं करते हैं। और आमतौर पर वे लोग जो धार्मिक हैं, और चेतना में विश्वास करते हैं, वे लोग पूर्व-निर्धारित जीवन में भी विश्वास रखते हैं। इसलिए मैं जो कुछ कह रहा हूं वह बहुत विरोधाभासी दिखाई देगा। लेकिन मेरा कहना है कि यही बात है।
वह व्यक्ति जिसने चेतना को जान लिया है, उसने स्वतंत्रता को जान लिया है। इसलिए कोई आध्यात्मिक व्यक्ति ही कह सकता है कि कहीं भी किसी तरह का कोई पूर्व- निर्धारण नहीं है। लेकिन यह बोध सिर्फ तब आता है जब तुम्हारा अपने भौतिक अस्तित्व शरीर से तादात्म्य पूरी तरह से टूट चुका हो। इसलिए तुम जो भी हो--अगर तुम अपने आप को बस एक भौतिक अस्तित्व के रूप में अनुभव करते हो, तो कोई स्वतंत्रता संभव नहीं है। पदार्थ के साथ स्वतंत्रता संभव नहीं है। पदार्थ का अर्थ है वह जो स्वतंत्र नहीं हो सकता है। इसे तो कारण और परिणाम की शृंखला में बंध कर रहना ही है। इसीलिए मैं कहता हूं दोनों बातें हैं और यह तुम्हारे ऊपर निर्भर करेगा।
एक बार कोई चैतन्य को संबोधि को उपलब्ध कर ले, तो वह कारण और परिणाम के नियम से पूरी तरह से बाहर हो जाता है और पूर्व-निर्धारण को पार कर लेता है। वह पूरी तरह से भविष्यवाणियों के पार हो जाता है। तुम उसके बारे में कुछ भी नहीं कह सकते हो। वह हर क्षण को जीने लगता है इसे दूसरे शब्दों में कहा जाए तो उसका अस्तित्व परमाणु जैसा हो जाता है।
तुम्हारा अस्तित्व एक क्रमबद्धता है नदी के समान क्रमबद्धता जिस में हर कदम अतीत के द्वारा निर्धारित होता है। तुम्हारा भविष्य वास्तव में भविष्य नहीं है यह बस तुम्हारे अतीत की सह-उत्पत्ति है। तुम्हारा भविष्य जरा भी भविष्य नहीं है। यह तो बस अतीत के द्वारा मन को संस्कारित कर देना उसे सूत्रबद्ध करना उसे विकसित करना और उसे एक आकार दे देना है। इसलिए तुम्हारा भविष्य--यही कारण है कि तुम्हारा भविष्य पहले से बताया जा सकता है।
बुद्धत्व का मनोविज्ञान
ओशो
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