दुनिया में तीन आयाम हैं। एक--विज्ञान: वह पदार्थ का सत्य जानने
का आयाम है। दूसरा--धर्म: वह चैतन्य का सत्य जानने का आयाम है और तीसरा--दर्शन:
वह सिर्फ विचार करने का आयाम है।
पदार्थ के संबंध में भी विचार करता है, चेतना के संबंध में भी
विचार करता है। लेकिन सिर्फ विचार। अब विचार से किसी का पेट भरता है? तुम लाख विचार करते रहो, भूख है सो भूख रहेगी,
भोजन चाहिए। शरीर का भोजन चाहिए तो विज्ञान से पूछो और आत्मा का
भोजन चाहिए तो धर्म से पूछो। दर्शन तो दोनों के मध्य में है--त्रिशंकु की भांति। न
विज्ञान है दर्शन, न धर्म है दर्शन। सोचता है, बस विचार करता है। अच्छी-अच्छी बातें सोचता है। मगर सोचने में ही कोई
प्रयोजन नहीं है।
ईश्वर के संबंध में कितना ऊहापोह करता है दर्शनशास्त्र! लेकिन उस
ऊहापोह का क्या परिणाम है? रात अंधेरी है, कितना ही सोचो, सोचने से दीया न जलेगा। या तो
विज्ञान से पूछो, अगर बाहर का दीया जलाना हो। और या धर्म से
पूछो, अगर भीतर का दीया जलाना हो। अगर दीया जलाना ही न हो,
सिर्फ समय काटना हो, तो दर्शनशास्त्र उपयोगी
है। बैठ कर विचार करो--कि प्रकाश क्या है? अंधकार क्या है?
अंधकार है भी या नहीं? प्रकाश कैसे अंधकार को
मिटाता है? मिटा सकता है या नहीं?
दर्शनशास्त्र एक बहुत ऊंचे ढंग से शेखचिल्लीपन का ही दूसरा नाम
है।
एक गांव में चोरी हो गई। इंस्पेक्टर आया, बहुत खोज-बीन की, पता न चले चोर का। आखिर गांव के लोगों ने कहा कि ऐसे पता नहीं चलेगा।
हमारे गांव में एक शेखचिल्ली हैं; ऐसा कोई प्रश्न ही नहीं
जिसका वे उत्तर न दे सकते हों। उनसे ही पूछा जाए। अभी कुछ ही दिन पहले की बात है,
रात एक हाथी गांव से गुजर गया। इस गांव में से कभी हाथी नहीं निकला
था। सुबह हम सब चिंता में पड़े--इतने-इतने बड़े पैर के निशान किस जानवर के हो सकते
हैं? कोई हल न हो सका। आखिर शेखचिल्ली को बुलाया, उसने मिनट में हल कर दिया। उसने कहा: कुछ मामला नहीं है। यह सरल सी बात है,
इसमें इतनी क्या चिंता कर रहे हो? पैर में
चक्की बांध कर हरिणा कूदा होय! उसने कहा: यह सीधी-सीधी बात है कि कोई हिरण पैर में
चक्की बांध कर कूदा है।
इंस्पेक्टर को बात जंची तो नहीं कि ऐसे आदमी से पूछना चाहिए, मगर कोई और उपाय न देख कर,
कि संभावना नहीं दिखती, गया। शेखचिल्ली ने
पहले तो बहुत आना-कानी की, कि भाई मैं झंझटों में नहीं पड़ना
चाहता। मेरा तो ऊंची दार्शनिक बातों में रस है। ये कहां की भौतिक बातें--चोरी
इत्यादि! अरे कौन चोर, किसकी चोरी! सबै भूमि गोपाल की! सब
उसी का है। कौन चोर, कौन मालिक! वही एक मालिक है!
इंस्पेक्टर ने बहुत ही कहा कि देखो तुम सुनते हो कि नहीं, नहीं तो तुम्हीं को पकड़ कर ले
जाएंगे। जब हालत बिगड़ने लगी तो उसने कहा: हम बताए देते हैं, मगर
एकांत में बताएंगे। दूर चलना पड़ेगा गांव के बाहर, किसी को
पता न चले। हम झंझट-झगड़े में पड़ना नहीं चाहते।
तब तो जरा इंस्पेक्टर को भरोसा आया कि इसको मालूम होता है मालूम
है। लगता है पता है। ले गया उसको दूर शेखचिल्ली गांव के बाहर। एकदम बिलकुल दूर।
इंस्पेक्टर ने कहा: भाई, अब तो यहां कोई पक्षी भी नहीं, कोई कुत्ता भी नहीं,
अब तो तू बोल दे!
बिलकुल कान में आकर फुसफुसाया कि अब तुम मानते नहीं हो तो बताए
देता हूं। लेकिन खाओ कसम अपने बाप की कि किसी को कहना मत।
उसने कहा: भैया,
बाप की कसम, मगर तू कह तो!
उसने कहा कि किसी चोर ने चोरी की है।
बस दर्शनशास्त्र इस तरह की बातों में लगा हुआ है: किसी चोर ने
चोरी की है! तुम पूछो...तुमको समझ में नहीं आती यह बात एकदम से...तुम पूछो कि सृष्टि की रचना किसने की? दर्शनशास्त्र कहता है: किसी श्रष्टा ने श्रुष्टि की रचना है। मतलब तुम समझे?
वही--किसी चोर ने चोरी की है। मगर जब कहते हैं कि किसी श्रष्टा ने की है, तब तुम समझते हो कि बड़ी ऊंची बात हो रही है! श्रष्टा ने तो की ही होगी श्रुष्टि जब श्रुष्टि है। और चोरी जब की है तो चोर ने ही की
होगी। मगर उत्तर कहां है इसमें?
धर्म के अतिरिक्त परमात्मा को जानने का कोई उपाय नहीं है। धर्म
विज्ञान है अंतर-खोज का।
रहिमन धागा प्रेम का
ओशो
No comments:
Post a Comment