सुना होगा, बहुत
पुरानी कहानी है। सुना होगा कि एक राजमहल के चूहों ने बैठक की और विचार किया कि हम
बहुत परेशान हैं, बल्लियां सदा से हमें परेशान कर रही हैं,
हम क्या करें बचाव का उपाय? तो उन चूहों के
बूढ़े चूहों ने कहा, एक ही रास्ता है कि बिल्ली के गले में
घंटी बांध दी जाए। लेकिन घंटी कोई कैसे बांधे? घंटी कौन
बांधे? फिर हजारों साल बीत गए इस बात को। जब भी बिल्ली ने
चूहों को परेशान किया, चूहों ने सभा की और फिर वही समाधान
बूढ़ों ने दिया कि घंटी बांध दो। लेकिन फिर चूहों ने कहा, घंटी
कौन बांधे? घंटी कैसे बांधी जाए? समाधान
तो मालूम है कि बिल्ली के गले में घंटी बंध जाए, घंटी बजती
रहे तो चूहे सावधान हो जाएं और बिल्ली हमला न कर पाए। लेकिन यह समाधान समाधान ही
है, बिल्ली चूहों को खाती ही चली जाती है। और यह समाधान पूरा
हो नहीं पाता। और चूहों के पुराणों में लिखा है कि यह तो पहले से ही समाधान गुरुओं
ने दिया हुआ है, ऋषि-मुनियों ने। लेकिन समाधान पूरा नहीं हो
सकता।
फिर मैंने सुना है कि बीसवीं सदी में फिर एक महल में यही मुसीबत? यह मुसीबत सदा रहेगी, जब तक चूहे हैं, बिल्ली है, मुसीबत रहेगी। फिर चूहे इकट्ठे हुए और उन्होंने कहा, क्या करें, कैसे बिल्ली से बचें? फिर बूढ़े चूहों ने कहा, समाधान तो हमारे ग्रंथों में लिखा हुआ है। ऋषि-मुनियों ने बताया हुआ है कि बिल्ली के गले में घंटी बांध दो। लेकिन फिर सवाल यह है कि घंटी कौन बांधे? घंटी कैसे बांधे?
दो जवान चूहों ने कहा, घंटी कल सुबह हम बांध देंगे। बूढ़े हंसने लगे और उन्होंने कहा, नासमझ हो, बच्चे हो। घंटी कभी बांधी नहीं गई, बांधोगे कैसे? लेकिन दूसरे दिन सुबह उन चूहों ने घंटी बांध दी। और बूढ़े बहुत हैरान हुए! यह तो कभी न हुआ था। और उन जवान चूहों से पूछने लगे, तुमने घंटी बांधी कैसे?
उन जवान चूहों ने कहा, आपने समाधान पकड़ लिया था। और यह बात भी पकड़ ली थी कि यह हो नहीं सकता। और जो नहीं हो सकता, उसको पकड़ा था और नहीं हो सकता, यह भी पकड़ा था। इसलिए सोचने के आगे द्वार बंद हो गए। यह तो बहुत आसान बात थी। उन दो जवान चूहों का एक केमिस्ट की दुकान में आना-जाना था। वे नींद की गोली निकाल लाए और बिल्ली के दूध में गोली डाल दी और घंटी बांध दी। बिल्ली सो गई, बेहोश हो गई और घंटी बांध दी गई। लेकिन हजारों साल से बूढ़े चूहे यही कह रहे थे कि समाधान यही है, और यह हो नहीं सकता। दोनों बातें पकड़े हुए थे। सोचना मुश्किल हो गया था आगे।
भारत के मन में भी समस्याएं पुरातन हैं, समाधान भी पुरातन हैं। और करीब-करीब सब समाधान ऐसे हैं कि उनके साथ यह भी जुड़ा है कि यह हो नहीं सकता। हिंसा है, अहिंसा समाधान है। और हम सब जानते हैं, अहिंसा हो नहीं सकती। गरीबी समस्या है, अपरिग्रह समाधान है। कि धन का त्याग कर दो, और यह भी हम जानते हैं कि यह हो नहीं सकता। समाधान है, वह भी हम जानते हैं, नहीं हो सकता, यह भी हम जानते हैं। और इन सबको पकड़े हुए बैठे हैं। समस्याएं खाए चली जाती हैं। समाधान दोहराए चले जाते हैं। नहीं हो सकता है, यह भी जाने चले जाते हैं। प्रतिभा के लिए नये उपाय, नये आयाम, नये द्वार तोड़ने का मार्ग नहीं रह जाता।
तीसरे सूत्र में आपसे मैं कहना चाहता हूं, जो समाज भी आदर्शवादी होगा, वह समाज सड़ जाएगा, मर जाएगा, वह समाज विकसित नहीं हो सकता। यथार्थवादी समाज होना चाहिए। प्रतिभा का विकास यथार्थवाद के मार्ग से तो होता है, आदर्शवाद के मार्ग से नहीं होता। वह जो आइडियलिस्ट है, वह बातें तो आकाश की करता है और समस्याएं जमीन की हैं। और उसकी बातें बहुत अच्छी लगती हैं। लेकिन वे आकाश की हैं। और समाधान चाहिए पृथ्वी पर, और पृथ्वी से उसका कोई संबंध नहीं है।
भारत अच्छे लोगों के चक्कर में है और अच्छी बातों के चक्कर में है। और अच्छे लोगों का चक्कर उतना ही खतरनाक है--जैसे किसी आदमी के हाथ में सोने की जंजीरें डाल दी जाएं। जंजीरें तो खतरनाक होती हैं, लेकिन सोने की जंजीरें और खतरनाक होती हैं। क्योंकि वे जंजीरें भी होती हैं और सोने की वजह से उनको छोड़ने की हिम्मत भी जुटानी मुश्किल हो जाती है। भारत के चित्त पर जो जंजीरें हैं, वे जंजीरें भी हैं और साथ सोने की हैं, अच्छी-अच्छी बातों की हैं। संतों की हैं, साधु-संन्यासियों की हैं। उनको छोड़ना भी मुश्किल है। और वे जंजीरें भी हैं और वे चित्त को पकड़े हैं, वे चित्त को विकसित भी नहीं होने देती। वे चित्त को नये ढंग से सोचने की हिम्मत, नये ढंग से सोचने का साहस भी नहीं जुटाने देती।
नए भारत की खोज
ओशो
No comments:
Post a Comment