एक शिष्य गुरु के पास पहुंचा। उसने पूछा कि मुझे स्वीकार करेंगे? मैं दीक्षित होने आया हूं। गुरु
ने कहा : कठिन होगा मामला। यात्रा दुर्गम है, सम्हाल सकोगे?
पात्रता है? पूछा उस युवा ने : क्या करना होगा?
ऐसी कौन—सी कठिनाई है? गुरु
ने कहा : जो मैं कहूंगा, वही करना पड़ेगा। वर्षो तक तो जंगल से
लकड़ी काटना, आश्रम के जानवरों को चरा आना, बुहारी लगाना, भोजन पकाना—इसमें
ही लगना होगा। फिर जब पाऊंगा कि अब तुम्हारा समर्पण ठीक—ठीक हुआ,
तार ठीक—ठीक बंधे, तब तुम्हारे
ऊपर सत्य के प्रयोग शुरू होंगे, तब ध्यान और तप।
उस युवक ने पूछा : यह तो बड़ी झंझट की बात है। कितने वर्ष लगेंगे
यह जंगल जाना, लकड़ी
काटना, भोजन बनाना, सफाई करना, जानवर चराना? गुरु ने कहा : कुछ कहा नहीं जा सकता। निर्भर
करता है कि कब तुम तैयार होओगे। जब तैयार हो जाओगे, तभी—वर्ष भी लग सकते हैं, कभी—कभी जन्म
भी लग जाते है।
उस युवक ने कहा,
चलिए, यह तो जाने दीजिए, यह मुझे जंचता नहीं। गुरु होने में क्या करना पड़ता है? तो उस गुरु ने कहा : गुरु होने में कुछ नहीं। जैसे मैं यहा बैठा हूं ऐसे बैठ
जाओ और आज्ञा देते रहो। तो उसने कहा : फिर ऐसा करिए, मुझे गुरु
ही बना लीजिए। यह जंचता है।
गुरु कौन नहीं बन जाना चाहता! तुम भी कोई मौका नहीं खोते जब गुरु
बनने का मौका मिले। किसी को अगर तुम पा लो किसी हालत में कि सलाह की जरूरत है, तो तुम्हें चाहे सलाह देने योग्य
पात्रता हो या न हो, तुम जरूर देते हो। तुम चूकते नहीं मौका।
कोई मिल भर जाए मुसीबत में, तुम उसकी गर्दन पकड़ लेते हो। तुम
उसको सलाह पिलाने लगते हो। और ऐसी सलाहें, जो तुमने जीवन में
खुद भी कभी स्वीकार नहीं कीं; जिन पर तुम कभी नहीं चले; जिन पर तुम कभी चलोगे भी नहीं। लेकिन किसी और ने तुम्हारी गर्दन पकड़कर तुम्हें
पिला दी थीं, अब तुम किसी और के साथ बदला ले रहे हो।
दुनिया में सलाहें इतनी दी जाती हैं, मगर लेता कौन! कोई किसी की सलाह
लेता है! तुमने कभी किसी की ली? और खयाल रखना, जिसने भी तुम्हारी असहाय अवस्था का मौका उठाकर सलाह दी है, उससे तुम नाराज हो, अभी भी नाराज हो, तुम उसे क्षमा नहीं कर पाए हो। क्योंकि तुम असमय में थे और दूसरे ने फायदा
उठा लिया। तुम्हारे घर में आग लग गयी थी और कोई ज्ञानी तुमसे कहने लगा : क्या रखा है;
यह संसार तो सब जल ही रहा है; सब जल ही जाएगा,
सब पड़ा रह जाएगा—सब ठाठ पड़ा रह जाएगा जब बांध चलेगा
बंजारा—अरे, यहा रखा क्या है! यह बाते तो
तुम्हें भी मालूम हैं, लेकिन तुम्हारा घर जल रहा है और इन सज्जन
को सलाह देने की सूझी है! तुम्हारी पत्नी मर गयी और कोई कह रहा है कि आत्मा तो अमर
है। तुम्हारी तबियत होती है कि इसको यहीं दुरुस्त कर दो इस आदमी को! मेरी पत्नी मर
गयी है, इसे ज्ञान सूझ रहा है! और तुम भलीभांति जानते हो कि इसकी
पत्नी जब मरी थी तब यह भी रो रहा था—और कल जब इसका बेटा मरेगा
तो फिर यह जार—जार रोका। तब तुम्हारे हाथ में एक मौका होगा कि
तुम भी बदला ले लोगे, तुम भी सलाह दे दोगे।
सलाहें एक—दूसरे का अपमान हैं। सलाह का मतलब यह होता है, तुम सिद्ध
कर रहे हो; मैं जानता हूं तुम नहीं जानते; मैं ज्ञानी, तुम अज्ञानी। तुम मौका पाकर गुरु बन रहे
हो। जांचना। अपने जीवन को जरा परखना। हर किसी को सलाह देने को तैयार हो! कोई सिगरेट
पी रहा है और तुम्हारे भीतर एकदम खुजलाहट होती है कि इसको सलाह दो कि सिगरेट पीना बुरा
है—और तुम पान चबा रहे हो! मगर पान चबाना बात और! —लेकिन तुम सलाह देने का मौका नहीं छोड़ोगे। तुम्हारे बाप ने तुम्हें सलाह दी
थी और तुमने एक न मानी। और वे ही सलाहें तुम अपने बेटों को पिला रहे हो। वे भी नहीं
मानेगे। तुमने नहीं मानी थी। कौन मानता है सलाह! क्यों सलाहें नहीं मानी जातीं?
कारण है। देने वाला अहंकार का मजा लेता है, लेने
वाले के अहंकार को चोट लगती है।
अथातो भक्ति जिज्ञासा
ओशो
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