जब कोई कह सकता है, नहीं, चाहे दांव पर पूरी जिंदगी लग जाती हो।
और जब एक बार आदमी नहीं, कहना शुरू कर दे, ‘नहीं’ कहना सीख ले, तब पहली दफा
उसके भीतर इस ‘नहीं’ कहने के कारण, ‘डिनायल’ के कारण व्यक्ति का जन्म
शुरू होता है। यह ‘न’ की जो रेखा है, उसको व्यक्ति बनाती है। ‘हां’ की
रेखा उसको समूह का अंग बना देती है। इसलिए समूह सदा आज्ञाकारिता पर जोर
देता है।
बाप अपने ‘गोबर गणेश’ बेटे को कहेगा कि आज्ञाकारी है। क्योंकि
गोबर गणेश बेटे से न निकलती ही नहीं। असल में ‘न’ निकलने के लिए थोड़ी
बुद्धि चाहिए। हां निकलने के लिए बुद्धि की कोई जरूरत नहीं है। हां तो
कम्प्युटराइज्ड है, वह तो बुद्धि जितनी कम होगी, उतनी जल्दी निकलता है। न
तो सोच विचार मांगता है। न तो तर्क आर्गुमेंट मांगता है। न जब कहेंगे तो
पच्चीस बार सोचना पड़ता है। क्योंकि न कहने पर बात खत्म नहीं होती। शुरू
होती है। हां कहने पर बात खत्म हो जाती है। शुरू नहीं होती।
बुद्धिमान बेटा होगा तो बाप को ठीक नहीं लगेगा, क्योंकि
बुद्धिमान बेटा बहुत बार बाप को निर्बुद्धि सिद्ध कर देगा। बहुत क्षणों में
बाप को ठीक नहीं लगेगा, क्योंकि अपने आप को भी वह निर्बुद्धि मालूम पड़
रहा है। बड़ी चोट है, अहंकार को। वह कठिनाई में डाल देगा।
इसलिए हजारों साल से बाप, पीढ़ी, समाज ‘हां’ कहने की आदत डलवा रहा
है। उसको वह अनुशासन कहे, आज्ञाकारिता कहे और कुछ नाम दे लेकिन प्रयोजन
एक है। और वह यह है कहे विद्रोह नहीं होना चाहिए। बगावती चित नहीं होना
चाहिए।
तीसरा सूत्र है कि अगर चित ही चाहिए हो तो सिर्फ
बगावती ही हो सकता है। अगर आत्मा चाहिए हो तो वह ‘रिबैलियस’ ही हो सकती
है। अगर आत्मा ही न चाहिए तो बात दूसरी। कन्फरमिस्ट के पास कोई आत्मा नहीं होती।
यह ऐसा ही है, जैसे एक पत्थर पडा है, सड़क के किनारे। सड़क के
किनारे पडा हुआ पत्थर मूर्ति नहीं बनता। मूर्ति तो तब बनता है। जब छैनी और
हथौड़ी उस पर चोट करती और काटती है। जब कोई आदमी ‘न’ कहता है। और बगावत
करता है। तो सारे प्राणों पर छैनी और हथौड़ियां पड़ने लगती है। सब तरफ से
मूर्ति निखरना शुरू होती है। लेकिन जब कोई पत्थर कह देता है ‘’हां’’ तो
छैनी हथौड़ी नहीं होती वहां पैदा। वह फिर पत्थर ही रह जाता है। सड़क के
किनारे पडा हुआ।
लेकिन समस्त सत्ताधिकारी यों को चाहे वे पिता हो, चाहे मां, चाहे
शिक्षक हो। चाहे बड़ा भाई हो, चाहे राजनेता हो, समस्त सत्ताधिकारी यों को
‘’हां-हुजूर’’ की जमात चाहिए।
महावीर नग्न खड़े हो गए, महावीर जिस दिन बिहार में नग्न
हुए होंगे। उस दिन मैं नहीं समझता कि पुरानी जमात ने स्वीकार किया होगा।
यहां तक बात चली कि अब महावीर को मानने वालों के दो हिस्से है। एक तो कहता
है कि वस्त्र पहनते थे। लेकिन वे अदृश्य वस्त्र थे, दिखाई नहीं देते
थे। यह पुराना कन्फरमिस्ट जो होगा, उसने आखिर महावीर को भी वस्त्र पहना
दिये, लेकिन ऐसे वस्त्र जो दिखाई नहीं पड़ रहे है। इस लिए कुछ लोगों को
भूल हुई कि वे नंगे थे। वे नंगे नहीं थे। वस्त्र पहने थे।
जीसस, बुद्ध, महावीर जैसे लोग सभी बगावती है। असल में मनुष्य
जाति के इतिहास में जिनके नाम भी गौरव से लिये जा सकें वे सब बगावती है।
ओशो
संभोग से समाधि की और
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