मेरे देखे, एक ही सीढ़ी के दो छोर: जैसे बीज और वृक्ष; जैसे अंडा और मुर्गी। वासना ही एक दिन पंख पा लेती है और प्रार्थना बन जाती है। वासना प्रार्थना है जन्म की प्रक्रिया में। वासना अंधेरे में टटोल रही है मार्ग प्रार्थना होने का। वासना भटकना है, मार्ग की खोज है, द्वार की तलाश है। इसलिए मेरे मन में वासना की कोई निंदा नहीं है।
मेरे मन में निंदा है ही नहीं; किसी भी बात की निंदा नहीं है। मेरे मन में सर्व स्वीकार है क्योंकि मैं देखता हूं, जब सब परमात्मा को स्वीकार है तो उसमें से कुछ भी अस्वीकार करना परमात्मा को अस्वीकार करना है।
मैंने सुना है, सूफी फकीर बायजीद एक पड़ोसी से बहुत परेशान था। सालभर से उसके पड़ोस में था। वह बड़ा उपद्रवी था पड़ोसी। जब बायजीद ध्यान करने बैठता तब वह ढोल बजाने लगता; या बायजीद नमाज पढ़ता तो वह गालियां बकने लगता। बायजीद शिष्यों को समझाता तो वह कुछ उपद्रव मचा देता। कूड़ा—करकट इकट्ठा करके बायजीद के झोंपड़े में फेंक देता।
एक रात बायजीद प्रार्थना करा, प्रार्थना करके उठ रहा था, परमात्मा की झलक से भरा था। झलक इतनी स्पष्ट थी कि उसने कहा, हे प्रभु! इतनी कृपा की है कि मुझे आज झलक दी है, इतना और कर दो कि इस पड़ोसी से छुटकारा करो। और पता है परमात्मा की क्या आवाज बायजीद को सुनाई पड़ी? उसने कहा, बायजीद, इस आदमी को मैं पचास साल से बर्दाश्त कर रहा हूं और तू तो अभी साल ही भर हुआ…..! और पचास साल तो इस जिंदगी के! पिछली जिंदगियों का तो हिसाब ही मत रख। अगर मैं इसे बर्दाश्त कर रहा हूं और मैंने आशा नहीं छोड़ी और मैं आशा बांधे हूं कि यह भी बदलेगा। तू भी आशा न छोड़।
परमात्मा अगर वासना के विपरीत होता तो वासना होती ही नहीं। महात्मा विपरीत है इसलिए मैं कहता हूं, महात्मा गलत है। परमात्मा विपरीत नहीं है वासना के। हर बच्चे को वासना से सजाकर भेजता है, वासना भरकर भेजता है।
वासना ऊर्जा है, शुद्ध ऊर्जा है, संपदा है। कहां लगाओगे इस पर सब कुछ निर्भर करेगा। यही वासना धन में लग जाएगी तो धन—कुबेर हो जाओगे। यही वासना पद के पीछे पड़ जाएगी तो किसी देश के राष्ट्रपति हो जाओगे। यही वासना परमात्मा की दिशा में लग जाएगी तो प्रार्थना हो जाएगी।
वासना शुद्ध ऊर्जा है। वासना तटस्थ है। वासना अपने आप में कोई लक्ष्य लेकर नहीं आयी है, लक्ष्य तुम्हें तय करना है। फिर तुम्हारी ऊर्जा उसी दिशा में बहनी शुरू हो जाती है। स्त्री को प्रेम करोगे तो वासना घर बसाएगी। परमात्मा को प्रेम करोगे, मंदिर बनेगा। परिवार को प्रेम करोगे तो छोटा—सा परिवार होगा सारे संसार के विरोध में। सारे संसार को प्रेम करोगे तो कोई विरोध में न होगा। सारा संसार तुम्हारा घर होगा। तुम पर निर्भर है।
वासना प्रार्थना का बीज है। और जब तक वासना प्रार्थना नहीं बन जाती है तब तक तुम्हें संसार में लौट—लौटकर आना पड़ेगा क्योंकि तुमने पाठ सीखा नहीं। फिर भेज दिए जाओगे कि और जाओ, फिर उसी कक्षा में भर्ती हो जाओ। जब तक तुम उत्तीर्ण न हो जाओ…..। और उत्तीर्ण होने की कसौटी क्या है? जिस दिन तुम्हारी सारी वासना रूपांतरित हो जाए प्रार्थना में, जिस दिन परमात्मा के अतिरिक्त तुम्हें कुछ और दिखाई न पड़े। तुम चाहो तो परमात्मा को। फिर चाहे तुम किसी से भी संबंध जोड़ो, किसी को भी चाहो लेकिन हर चाहत में परमात्मा की ही चाहत हो। तुम्हारी पत्नी में परमात्मा दिखाई पड़े, तुम्हारे बेटे में परमात्मा दिखाई पड़े, तुम्हारे मित्र में परमात्मा दिखाई पड़े, तुम्हारे शत्रु में परमात्मा दिखाई पड़े।
इसलिए जीसस ने कहा है, शत्रु को भी प्रेम करना अपने जैसा। यह मत भूल जाना कि उसमें भी परमात्मा छिपा है। एक क्षण को भी यह बात विस्मरण मत करना, नहीं तो उतनी प्रार्थना चूक जाएगी; उतने तुम प्रार्थना से नीचे गिर जाओगे।
मिट्टी में वासना के कारण ही प्राण पड़ गए हैं, रेगिस्तान में मरुद्यान उगा है। इस जीवन में तुम्हें जितनी हरियाली दिखाई पड़ती है, सब वासना की है। पक्षी गीत गाते हैं, वे वासना के गीत हैं। कोयल अपने प्रेमी को पुकार रही है। मोर अपने प्रेमी के लिए नाच रहा है। वे जो उसने सुंदर पंख फैलाए हैं वे वासना के पंख हैं। वह मोर—पंखों का जो सौंदर्य है वह वासना का ही सौंदर्य है। फूल खिले हैं, पूछो वैज्ञानिक से; वे सब वासना के ही फूल हैं। उन फूलों में वृक्षों के रजकण हैं, वीर्यकण हैं। तितलियां अपने पैरों में लगाकर उन्हें पहुंचा देगी उनकी मंजिल तक।
अगर तुम गौर से देखोगे तो तुम चकित हो जाओगे। तुम जब गुलाब के फूल तोड़कर परमात्मा के चरणों पर चढ़ाते हो तो तुमने गुलाब की वासना परमात्मा के पैरों पर चढ़ायी चढ़ानी थी अपनी वासना।
नाम सुमिर मन बाँवरे
ओशो
No comments:
Post a Comment