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Monday, September 21, 2015

नींद

सोने की जितनी भी तरकीबें हैं, जिन लोगों को नींद नहीं आती उनके लिए सरलतम उपाय यह है कि वे कोई एक चीज को दोहराए चले जाएं, तो थोड़ी देर में ऊब जाते हैं; क्योंकि नया नहीं होता तो जगने का कोई कारण नहीं रह जाता। तो आप अगर राम-राम, राम-राम, राम- राम, राम-राम भी दोहराते रहें तो भी नींद आ जाएगी। इसलिए जप करने वालों को जो नींद आ जाती है, मंदिर में पूजा-प्रार्थना करने वालों को जो नींद आ जाती है, उसका कारण यह है कि एक ही शब्द मे, नवीनता न होने से चुनौती नहीं रहती, जागने का कोई कारण नहीं रह जाता। बच्चे को मां माथे पर थपकी दे देती है दस-पांच–वही थपकी… वही थपकी… वही थपकी… वह सो जाता है। थपकी में कुछ और नहीं है, ऊब जाता है; उसमें कुछ नयापन नहीं है, सो जाता है।

इसलिए आपको अपने कमरे में नींद जल्दी आ जाती है, दूसरे के कमरे में देर लगती है, क्योंकि दूसरे का कमरा थोड़ा नया है, आपको अपने ही तकिए पर, अपने ही बिस्तर पर नींद जल्दी आ जाती है, दूसरे के बिस्तर पर, दूसरे के तकिए पर नींद जल्दी नहीं आती; कुछ नया है जो जगाए रखता है। इसलिए सभी लोगों के सोने का एक रिचुअल होता है, क्रियाकांड होता है।

छोटा बच्चा है, परेशान है, वह अपना अंगूठा ही मुंह में ले लेता है। थोड़ी देर में उससे ऊब जाता है, कुछ नया नहीं है, सो जाता है। छोटे बच्चे और बड़े लोगों में कोई बहुत फर्क नहीं है। कोई आदमी है, जो कि रात जब तक सिगरेट न पी ले तब तक सो न सकेगा। तो वह सिगरेट पी लेता है– अंगूठा चूसने का सब्‍स्‍टियूट है; फिर उसको नींद आ जाती है। फिर उसको नींद आ जाती है! नियमित क्रम है, वह ऊबा देता है जल्दी। नई जगह में, नये लोगों के बीच, नये मकान में नींद मुश्किल से आती है, क्योंकि बहुत कुछ मौजूद है चारों तरफ जो आपको जगाए रखता है– कहता है, मुझे देखो, जगो, कुछ नया है।

पश्चिम में जो नींद टूट गई है उसका कारण यह है कि पश्चिम इतने जोर से बदल रहा है कि रोज वहां नया मौजूद हो जाता है। पूरब अभी भी नींद के लिहाज से सुखी है- ज्यादा दिन रहेगा नहीं।

एक गांव का आदमी गहरी नींद सोता है, शहर का आदमी उतनी गहरी नींद नहीं सो पाता। कारण कुछ भी नहीं है, गांव का आदमी पुराने में ही जीता है, ऊबा हुआ ही जीता है; उसमें नया कुछ होता नहीं जो जगा दे। शहर के आदमी को रोज-रोज सब-कुछ नया है–नई फिल्म चलती है, नया अखबार छपता है, नये लोग मिलते हैं, नये सामान बाजार में आ जाते हैं, दुकानों की शो-विन्डोज़ पर नई चीजें टैग जाती हैं, नई फैशन हो जाती है– रोज नया है। उस नये के कारण जागना सतत हो जाता है, नींद मुश्किल हो जाती है। गांव में सब पुराना है–वही गांव है, वही रास्ता है–सब वही है, वे ही लोग हैं।

मैं अपने गांव कभी जाता हूं साल भर बाद, दो साल बाद, सब वही का वही है। तो गांव में प्रवेश करते हुए मैं जानता हूं स्टेशन पर कौन सा कुली मुझे दिखाई पड़ेगा, वही दिखाई पड़ता है–एक ही कुली है, फिर कौन सा तांगे वाला मुझे मिलेगा, और वह तांगे वाला मुझसे क्या बातें करेगा; क्योंकि वह सालों से वही बातें, जब भी मैं जाता हूं मुझसे करता रहा है। फिर गांव की सड्कों पर से तांगा जाता है तो मैं जानता हूं कि कौन आदमी घर के बाहर सोकर खांस रहा होगा… क्या हो रहा होगा गांव में वह प्रिडिक्टेबल है, वह मुझे पहले से पता है कि यह हो रहा होगा; उसमें कोई न के बराबर फर्क होता है। कभी कोई घटना घटती है. गांव में कोई मर जाता है, कोई जन्मता है–कभी, बाकी सब वैसा ही चलता चला जाता है।

पूरब नींद के संबंध में बड़ा सुखी था, क्योंकि सब ठहरा हुआ था। पश्चिम नींद के संबंध में मुश्किल में पड़ गया, सब बदल रहा है–इतने जोर से बदल रहा है कि पांच साल बाद उसी गांव में जाकर खड़े होकर यह कहना मुश्किल है कि यह वही गांव है, सभी कुछ बदल गया है। तो नींद टूट गई है। नींद… अगर कोई विषय आपको उत्पेरित न करता हो, तो स्वभावत: फलित हो जाती है, और अगर कोई प्रेरणा बाहर बनी रहे तो आप जागे रहते हैं।

सर्वसार उपनिषद 

ओशो 

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