मैं एक गांव में ठहरा हुआ था। वहां गोली चली। चार लोगों को गोली लग गई,
तो उनका पोस्टमार्टम होता था। मेरे एक मित्र, जो चमड़ी के बड़े प्रेमी हैं…।
अधिक लोग होते हैं। उपनिषद कहते हैं इस तरह के लोगों को चमार–चमड़ी के
प्रेमियों को। चमड़े के जूते बनाने वाले को नहीं; जरूरी नहीं कि वह चमार हो।
लेकिन चमड़ी के प्रेमी को!
तो एक चमड़ी के प्रेमी मेरे मित्र थे। मुझे मौका मिला, मैंने उनसे कहा कि
चलो, डाक्टर परिचित है, मैं तुम्हें पोस्टमार्टम दिखा दूं। उन्होंने कहा,
उससे क्या होगा? मैंने कहा, थोड़ा देखो भी, आदमी के भीतर क्या है, उसे थोड़ा
देखो।
पोस्टमार्टम के गृह में भीतर प्रवेश किए, तो भयंकर बदबू थी, क्योंकि
लाशें तीन दिन से रुकी थीं। वे नाक पर रूमाल रखने लगे। मैंने कहा, मत
घबड़ाओ। जिन चमड़ियों को तुम प्रेम करते हो, उनकी यही गति है। थोड़ा और भीतर
चलो। उन्होंने कहा, बहुत उबकाई आती है। वॉमिट न हो जाए! मैंने कहा, हो जाए
तो कुछ हर्जा नहीं है। और भीतर आओ।
जब हम गए, तो डाक्टर ने एक आदमी, जिसके पेट में गोली लगी थी, उसके पूरे
पेट को फाड़ा हुआ था। तो सारी मल की ग्रंथियां ऊपर फूटकर फैल गई थीं। वे
मेरे मित्र भागने लगे। मैं उन्हें पकड़ रहा हूं, खींच रहा हूं; वे भागते
हैं! कहते हैं, मुझे मत दिखाओ! उन्होंने आंखें बंद कर लीं। मैंने कहा,
आंखें खोलो। ठीक से देख लो। उन्होंने कहा, मुझे मत दिखाओ, नहीं तो मेरी
जिंदगी खराब हो जाएगी! तुम्हारी जिंदगी क्यों खराब हो जाएगी? उन्होंने कहा,
फिर मैं किसी शरीर को प्रेम न कर पाऊंगा। जब भी शरीर को देखूंगा, तो यह सब
दिखाई पड़ेगा।
बुद्ध कहते थे, जब शरीर आकर्षक मालूम पड़े, तो थोड़ा भीतर गौर करना कि है
क्या वहां? तो शायद शरीर का जो राग है, वह टूट जाए और वैराग्य उत्पन्न हो।
गीता दर्शन
ओशो
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