.... और उसने वजीर को क्रोध में आकर नगर के
बाहर एक बड़ी मीनार पर कैद कर दिया। वजीर के घर के लोग बड़े दुःखी थे, रो
रहे थे। वजीर ने अपनी पत्नी को कहा, घबड़ा मत, जब मैं चला जाऊं और बंद कर
दिया जाऊं, तो गांव में एक फकीर है, तू उसके पास जाना। जब भी कोई उलझन होती
है मुझे ऐसी जिसे मैं नहीं सुलझा पाता, जिसको बुद्धि नहीं सुलझा पाती, मैं उस
फकीर के पास जाता हूं। वह बुद्धि के आगे गया है। वह जरूर कोई रास्ता निकाल
लेता है। वह जरूर कोई सूत्र तुझे बता देगा, कोई रास्ता बन जाएगा। तू घबड़ा
मत, रो मत।
वजीर तो बंद कर दिया गया ऊंची मीनार पर, ताले जड़ दिएगए। भूखा
मरेगा, तड़पेगा। कूदे तो जान निकल जाएगी। कोई पांच सौ फीट ऊंची मीनार है;
कोई द्वार-दरवाजा नहीं है। सब दरवाजे बंद कर दिए गए; नीचे पहरा लगा दिया गया।
पत्नी फकीर के पास गई। उसे बहुत आशा तो नहीं थी कि अब कोई रास्ता बन सकता
है; कैसे निकालेगी पति को? फकीर ने कहा, कोई हर्जा नहीं। तेरे पति ने कहा
था, मुझसे आकर सूत्र पूछ लेना, वह खुद ही बता गया है रास्ता। सूत्र में तो
सारा सार है।
पत्नी ने कहा, मेरी कुछ समझ में नहीं आती, पहेलियां मत बुझाइए।
मैं यहां कोई धर्म-चर्चा, अध्यात्म-चर्चा करने नहीं आई हूं। मेरा पति मरने के
करीब है, भूखा वहां पड़ा है। आप कोई रास्ता बताइए। उस फकीर ने कहा, तू ऐसा
कर, भृंगी नाम का कीड़ा होता है, उसको पकड़ ले। उसकी मूंछों पर थोड़ी शहद
लगा दे और उसकी पूंछमें एक पतला धागा बांधदे–रेशम का पतला धागा। उस पत्नी
ने कहा, इससे क्या होगा? उसने कहा, इससे सब हो जाएगा। और जाकर मीनार पर उस
भृंगी को छोड़ दे। शहद की गंधपा कर वह सरकना शुरू करेगा, बढ़ेगा आगे। और
मूंछों पर शहद लगी है, इसलिए मिलनेवाली तो है ही नहीं। ऐसी तो शहद लगी है
मूंछों पर।
संसार ऐसी ही शहद का नाम है जो तुम्हारी मूंछों पर लगी है। तुम
भागते-फिरते हो, गंधआती चली जाती है। तुम भागते-फिरते हो। अब तुम्हारी
मूंछें तुमसे आगे छलांग लगा जाती हैं। मिलना कभी नहीं होता; गंध आती रहती है।
गंधआती रहती है, मिलना कभी नहींहोता। इसलिए तो ज्ञानियोंने इसे माया कहा
है। मिलती है, मिलती है; अब मिली, अब मिली। मिलती कभी नहीं। पहुंचने के
करीब सदा रहते हैं, लेकिन पहुंचते कभी नहीं हैं। मंजिल आती-आती लगती है, आती
नहीं है। और इतने करीब मालूम पड़ती है कि रुक भी नहीं सकते। मर जाते हैं,
थकजाते हैं, मगर रुक नहींसकते। क्योंकि लगता है अब मिली; यह बिल्कुल पास से आ
रही है गंध। उस भृंगी की दशा समझो।
उसकी मूंछपर बिठा दी है शहद। उसे
गंध आई। दीवाना हो गया। शहद का रस, शहद का प्रेम उसे खींचने लगा, वह भागने
लगाः पास ही है, गंध इतने करीब से आ रही है। और मूंछें आगे सरकने लगीं। और
उसकी पूंछ में बंधा हुआ रेशम का धागा मीनार पर चढ़ने लगा। थोड़ी ही देर में
वह मीनार पर पहुंच गया। पति ने उसको आते देखा, फिर उसकी पूंछ में बंधे
हुएपतले धागे को देखा समझ गया, फकीर ने सूत्र दे दिया। धागे को धीरे-धीरे
खींचा। धागे में फिर एक दूसरा मोटा धागा बंधा आया; फिर मोटे धागे में
एक सुतली बंधी आईः फिर सुतली में एक मोटी रस्सी बंधी आई। और फिर उस रस्सी के
सहारे वजीर मीनार से उतर कर भाग गया, मुक्त हो गया।
ऐसा ही है। एकसूत्र
पकड़ लो। यह जो तुम्हारे जीवन में थोड़ी-सी प्रेम की किरण है, इसे बुझा मत
देना। इससे बड़ी आत्महत्या और कोई नहीं है। इसे बुझा मत देना। इसकी निंदा
मतकरना। यह मत कहना शारीरिक है; यह मत कहना कामुक है; यह मत कहना कि यह तो
संसार की है। संसार में तुम हो तो कुछ संसार मेंहोगा जो परमात्मा से जोड़े,
नहीं तो फिर तो कोई उपाय ही नहीं है। कोई सूत्र होगा जो दोनों किनारों को
जोड़ता होगा। कोई सेतु होगा। संसार में जरूर कोई एक बात होगी जो संसार की
नहीं होगी।
ओशो
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