Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Sunday, September 20, 2015

मेरे गांव में बड़ी सुंदर नदी बहती है.....

      और गांव के लिए वही स्नान की जगह है। सर्दियों के दिन में लोग, जैसा सदा जाते हैं, सर्दियों के दिन में भी जाते हैं। मैं बचपन से ही चकित रहा कि गर्मियों में कोई भजन-कीर्तन करता नहीं दिखाई पड़ता। सर्दियों में लोग जब स्नान करते हैं नदी में तो जोर-जोर से भगवान का नाम लेते हैं, “भोलेशंकर! भोलेशंकर! “ तो मैंने पूछा कुछ लोगों से कि गरमी में कोई भोलेशंकर का नाम नहीं लेता, भूल जाते हैं लोग क्या? तो पता चला कि सर्दियों में इसलिए नाम लेते हैं कि वह नदी की ठंडक, और उनके बीच भोलेशंकर की आवाज परदे का काम करती है। वे “भोलेशंकर “ चिल्लाने में लग जाते हैं, उतनी देर डुबकी मार लेते हैं–ठंड भूल गई!

लोग नदी से बचने को भगवान का नाम ले रहे हैं। और तब मुझे लगा कि ऐसा पूरी जिंदगी में हो रहा है। भगवान सब तरफ से तुम्हें घेरे हुए हैं, तुम उससे घिरना नहीं चाहते। तुम्हारे भगवान का नाम भी तुम्हारा बचाव है। परमात्मा का स्मरण करना हो तो नदी को बहने दो, वही उसी की है। वही उसमें बहा है, बह रहा है। तुम डुबकी ले लो। इतना बोध भर रहे कि परमात्मा ने घेरा। ऊपर उठो तो परमात्मा के सूरज ने घेरा। डुबकी लो तो पानी ने, परमात्मा के जल ने घेरा। भूखे रहो तो परमात्मा की भूख ने घेरा और भोजन लो तो परमात्मा की तृप्ति ने घेरा।
और यह कोई शब्दों की बात नहीं है कि ऐसा तुम सोचो, क्योंकि तुम सोचोगे तो वही बाधा हो जाएगी। ऐसा तुम जानो। ऐसा तुम सोचो नहीं। ऐसा तुम दोहराओ नहीं। ऐसा तुम्हारा बोध हो। ऐसा तुम्हारा सतत स्मरण हो।

भक्तिसूत्र 

ओशो 

No comments:

Post a Comment

Popular Posts