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Tuesday, September 29, 2015

अंधे आदमी से प्रकाश के संबंध में कुछ कहो:

इसाई समझ नहीं पाए जीसस को। जीसस तो कहते हैं कि मैं और मेरा पिता अर्थात् ब्रह्म, परमात्मा, हम दोनों एक हैं। लेकिन ईसाइयों ने इस बात को बिलकुल गलत ढंग से पकड़ा है। वे कहने लगे कि यह बात सिर्फ जीसस के संबंध में सच है कि जीसस परमात्मा से एक हैं, किसी और के संबंध में यह सच नहीं है। जबकि जीसस अपने संबंध में कुछ भी नहीं कह रहे हैं। जब जीसस कहते हैं, मैं और परमात्मा एक हैं, तो वे जोसफ और मरियम के बेटे जीसस के संबंध में कुछ भी नहीं कह रहे हैं, वे तो उस भीतर छिपे हुए परम चैतन्य के संबंध में कह रहे हैं। वही परम चैतन्य हमारा असली ‘मैं’ है। वही हमारा असली अस्तित्व है। वही हमारी अस्मिता है। वही हमारी आत्मा है।’मैं’ उसकी तरफ ही इशारा कर रहा है। लेकिन ईसाइयों ने यूं पकड़ ली बात!
अंधे आदमी से प्रकाश के संबंध में कुछ कहो, वह कुछ का कुछ पकड़ लेगा। बहरे को संगीत के संबंध में कुछ समझाओ, वह कुछ—का—कुछ पकड़ लेगा। ईसाइयों ने यह समझा कि जीसस अपने संबंध में कह रहे हैं। जीसस उन सबके संबंध में कह रहे हैं जिन्होंने भी जाना है। मगर ईसाइयत उस तल तक ऊंचा न उठ पायी; ईसाइयत उस ऊंचाई को न छू सकी; ईसाइयत में वह फूल न खिल सका।

वही परिणाम इस्लाम में हुआ। इसलिए अलहिल्लाज मैसूर को मुसलमानों ने सूली पर लटका दिया। क्यों? क्योंकि उसने अनलहक की घोषणा की। उसने कहा कि मैं परमात्मा हूं? और मुसलमानों में इस तरह की घोषणा कुफ्र है, पाप है, महापाप है। कोई कहे कि मैं परमात्मा हूं परमात्मा के साथ कोई बराबरी ‘ करे! अलहिल्लाज मंसूर परमात्मा के साथ बराबरी नहीं कर रहा था, क्योंकि अलहिल्लाज यह कह रहा था, मैं तो हूं ही नहीं, परमात्मा है; बराबरी का सवाल कहां था! बराबरी तो तब हो जब दो हों! दो तो हैं ही नहीं! अनलहक का मतलब है : मैं सत्य हूं। मैं और सत्य, ऐसी दो चीजें नहीं हैं। अलहिल्लाज अपने संबंध में कोई घोषणा नहीं कर रहा है। अलहिल्लाज तो मिट गया। ध्यान में जौ गया, उसका अहंकार तो मिट ही जाता है। फिर जो शेष रह जाता है, वह परमात्मा है।

अलहिल्लाज मंसूर का गुरु था जुन्नैद। उसने अलहिल्लाज को बहुत बार समझाया कि देख, इस बात को भीतर ही पी जा! मैं भी जानता हूं लेकिन मत कह! जुन्नैद का था, जीवन के कड़वे—मीठे अनुभव उसने लिए थे; अलहिल्लाज जवान था! जुन्नैद अलहिल्लाज को समझाता रहा कि तू यह बात कहेगा तो आज नहीं कल तू मुश्किल में पड़ेगा और मुझे भी मुश्किल में डालेगा। क्योंकि अंततः यह दोष मुझ पर भी आएगा, कि तेरा शिष्य घोषणा कर रहा है। अलहिल्लाज हमेशा स्वीकार कर लेता था कि अब नहीं करूंगा। लेकिन जब भी ध्यान में बैठता था, बस भूल ही जाता था! जब मैं ही न रहा, तो मैं के द्वारा दिये गये वचन कौन याद रखे? जिसने वचन दिये थे वह तो गया और जो प्रगट होता, वह फिर वही धुन उठा देता; वही अनलहंक का नाद। और जुन्नैद कहता, कितनी बार तुझे समझाया कि यह बात अगर फैल गयी तो मुश्किल खड़ी होगी। तू तो मारा ही जाएगा, तेरे साथ मेरा भी जो काम चल रहा है, जो सैकड़ों लोग ध्यान को, समाधि को उपलब्ध हो रहे हैं, इनकी प्रक्रिया भी अवरुद्ध हो जाएगी। फिर वह वायदा करता। और फिर वायदा टूट जाता!

अंततः अलहिल्लाज ने एक दिन कहा कि अब और वायदा न करूंगा, क्योंकि बहुत वायदा किया, वह टूट—टूट जाता है; असलियत यह है कि जो वायदा करता है, वह तो मौजूद नहीं होता, और जो मौजूद होता है, उसने कभी वायदा नहीं किया। मैं वहां होता नहीं और जो वहां होता है, वह घोषणा करता है। मैं रोकूं तो कैसे रोकूं!
जुन्नैद ने कहा कि ऐसा कर, तू काबा की यात्रा कर आ!……. उन दिनों पैदल ही यात्रा करनी होती थी। वर्ष लग जाते थे। जुन्नैद ने सोचा कि काबा की यात्रा कर आएगा, तब तक तो बात टलेगी। इस बीच कुछ भी हो सकता है। समझ आ जाए!……. लेकिन पता है अलहिल्लाज मंसूर ने क्या किया? वह उठा और उसने कहा, ठीक, आप आज्ञा देते हैं तो जाकर तीर्थयात्रा कर आता हूं। उठा और उसने जुन्नैद के तीन चक्कर लगाए और फिर बैठ गया सामने। जुन्नैद ने कहा, यह क्या किया? उसने कहा, मेरे लिए तुम ही काबा हो। तुम्हारे अलावा और कहां काबा है! जब जीवित गुरु को पा लिया, तो अब किस पत्थर की पूजा करने जाऊं! और किसलिए? तुम्हारे तीन चक्कर लगा लिए, यात्रा पूरी हो गयी। अब कहां जाना है! और वही अनलहक का नाद।

वह नाद मैसूर के संबंध में नहीं है। मुसलमान गलत समझे। उन्होंने व्यर्थ ही मैसूर को सूली दे दी।

लेकिन इस देश में धर्म के ऊंचे—से—ऊंचे शिखर छुए गये। वे दिन भी जा चुके हैं। आज भारत की मनोदशा वैसी नहीं है, जो उपनिषद् के काल में थी। आज तो भारत बहुत दयनीय है। अब तो यहां भी आदमी जमीन पर घिसट रहा है; आकाश में उड़ने की क्षमता उसने खो दी। आज तो यह घोषणा करना कि मैं ब्रह्म हूं खतरे से खाली नहीं है। लेकिन जो जानेगा, वह रुक भी नहीं सकता है।

दीपक बारा नाम का

ओशो 

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