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Tuesday, September 29, 2015

जीवन-विधेय

जीवन के कुछ नियम हैं। जब एक बार गलत बात प्रभावी हो जाती है, तो हम उसी के प्रभाव में जीए चले जाते हैं। हम फिर सुनते ही नहीं दूसरी बात। हम दूसरी बात को समझने के योग्य भी नहीं रह जाते। अब जैसे समझो, सारी दुनिया समृद्ध होती जा रही, हम अपना चरखा लिए बैठे हैं! मोरारजी देसाई अभी भी चरखा कातते रहते हैं बैठे। चरखे से कहीं कोई दुनिया समृद्ध हुई है! चरखे से होती होती तो तुम दरिद्र ही क्यों हुए, चरखा तो तुम कात ही रहे हो सदियों से। कोई गांधी ने चरखा ईजाद नहीं किया, चरखा तो कत ही रहा है यहां, हजारों साल से कत रहा है। हमें चाहिए बड़ी टेक्नालॉजी। हमें चाहिए तकनीक के नए से नए साधन। समृद्धि तकनीक से पैदा होती है। क्योंकि एक मशीन हजारों लोगों का काम कर देती है, लाखों लोगों का काम कर सकती है। मशीन से लाखों गुना उत्पादन हो सकता है।

लेकिन गांधी इस देश की छाती पर बैठे हैं! गांधी की पूजा चल रही है। गांधी को मानने वाले लोग छाती पर चढ़े हैं। जो भी गांधी बाबा का नाम ले, वही छाती पर चढ़ जाता है। तुम दरिद्र हो गए हो, और दरिद्र होने की तुम्हारी आदत हो गई है। इसलिए जो भी तुम्हारी दरिद्रता से मेल खाता है, वह तुम्हें जंचता है। मैं तुम्हारी दरिद्रता तोड़ना चाहता हूं, मैं तुम्हें नहीं जंच सकता।

तुम्हें यह बात बहुत जंचती है कि गांधी बाबा थर्ड क्लास में चलते हैं। उनके थर्ड क्लास में चलने से क्या होने वाला है? उनके थर्ड क्लास में चलने से तुम सोचते हो सारा देश फर्स्ट क्लास में चलने लगेगा! उनके थर्ड क्लास में चलने से सिर्फ और थर्ड क्लास में भीड़ बढ़ गई। वैसे ही भीड़ थी, और एक सज्जन घुस गए! और एक ही सज्जन नहीं, गांधी बाबा जब चलेंगे थर्ड क्लास में तो पूरा डिब्बा उनके लिए है। जिसमें कोई साठ-सत्तर, अस्सी-नब्बे आदमी चढ़ते हैं, उसमें अब एक आदमी चल रहा है अपने दो-चार सेक्रेटरी वगैरह को लेकर। थर्ड क्लास में चलने से क्या होगा?

अगर मैं गरीब हो जाऊं, नंगा होकर सड़क पर भीख मांगने लगूं, तुम सोचते हो, इस देश की समृद्धि आ जाएगी? अगर मेरे नग्न होने से और सड़क पर भीख मांगने से इस देश की समृद्धि आती होती तो कितने लोग तो नंगे हैं और कितने लोग तो भीख मांग रहे हैं, समृद्धि आई क्यों नहीं?

लेकिन हम इसी तरह की मूढ़ता की बातों में पड़ गए हैं। तुमको भी जंचेगा; अगर मैं नग्न होकर सड़क पर भीख मांगने लगूं, तब तुम देखना कि भारतीयों की भीड़ मेरे पीछे खड़ी हो जाएगी। लाखों भारतीय जय-जयकार करने लगेंगे। हालांकि तब मैं उनके किसी काम का नहीं रह गया, मगर जय-जयकार वे तभी करेंगे। अभी मैं उनके किसी काम का हो सकता हूं, लेकिन अभी वे जय-जयकार नहीं कर सकते। क्योंकि उनकी तीन हजार साल की बंधी हुई धारणाओं से मैं विपरीत पड़ता हूं।

मैं चाहता हूं, इस देश में उद्योग हों, इस देश में बड़ा तकनीक आए, बड़ी मशीनें आएं। इस देश में विज्ञान का अवतरण हो। यह देश फैले।

लेकिन यह देश तभी फैल सकता है, जब हम जीवन को स्वीकार करें—उसके सब रंगों में, सब ढंगों में। जीवन-निषेध की प्रक्रिया आत्मघाती है। जीवन-विधेय की प्रक्रिया ही अमृतदायी है। उस जीवन-विधेय के आयाम में ही मैं सब स्वीकार करता हूं—कामवासना भी अंगीकार है।

श्री मोरारजी देसाई को कहना चाहता हूं कि आप जैसे लोगों की व्यर्थ बकवास के कारण इस देश का दुर्भाग्य सघन होता जा रहा है। इस पर दया करो! पुनः सोचो, पुनर्विचार करो। इस देश को उमंग दो, निराशा नहीं। हताशा मत दो, इस देश के प्राणों को उत्साह दो। इसकी मरी आत्मा में सांस फूंको; इस देश के जीवन में नए खून का संचार करो। वही मैं कर रहा हूं। इसीलिए मेरी बात पश्चिम के लोगों को ज्यादा अनुकूल पड़ रही है। इसलिए अनुकूल पड़ रही है कि वे जीवन के प्रेमी हैं, वे फैलाव के आतुर हैं। उनके और मेरे बीच तर्क ठीक बैठ रहा है।

मुझसे लोग पूछते हैं: यहां भारतीय क्यों कम दिखाई पड़ते हैं? वे इसीलिए कम दिखाई पड़ते हैं कि भारत ने तीन हजार साल में एक गलत ढंग की सोचने की प्रक्रिया बना ली है। मेरा उससे कोई तालमेल नहीं है। मेरे पास तो वे ही भारतीय आ सकते हैं, जो थोड़े आधुनिक हैं; जिनमें थोड़ा सोच-विचार का जन्म हुआ है, जिन्होंने आंखें खोली हैं और जो देख रहे हैं कि दुनिया में क्या हो रहा है। अब कोई देश गरीब रहने के लिए बाध्य नहीं है। अगर हम गरीब रहेंगे, तो अपने ही कारण। अब तो विज्ञान ने इतने साधन उपलब्ध कर दिए हैं कि हर देश समृद्ध होना चाहिए। कोई कारण नहीं है। अगर हम दरिद्र हैं तो हमारी दार्शनिक वृत्ति, हमारे सोचने-विचारने की प्रक्रिया में कहीं कोई भूल है।

कहै  वाजिद पुकार 

ओशो 

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